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निकलता है यहां… सांपों का खौफनाक जुलूस!

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विकास कुमार

28 जुलाई 2024

Samastipur : सांप…! कहीं एक दिख जाता है तो कमजोर दिल आदमी सिहर उठता है. वहां तो सांप ही सांप नजर आते हैं. जमीन पर सरकते-रेंगते नहीं. हजारों की भीड़ में सैंकड़ों बूढ़े, जवान और बच्चों के हाथों में लटकते, गले, सिर और कमर में मटकते-इठलाते. इस जुलूसनुमा खौफनाक मंजर को देख बाहर के लोग मूर्छित हो जा सकते हैं, पर उस भीड़ में कोई भय नहीं. ऐसा लगता है कि सांप (Snake) नहीं, प्लास्टिक का खिलौना हो. दिलचस्प बात यह है कि सांपों का ऐसा डरावना जुलूस बिहार क्या, पूरे देश में कहीं नहीं निकलता है. बिहार में गाजे-बाजे के साथ सांपों का जूलूस ही नहीं निकलता है, सांपों का मेला (snake fair) भी लगता है.

तीन सौ वर्षों की परम्परा

श्रावण कृष्ण पक्ष (Shravan Krishna Paksha) की नागपंचमी (Nagpanchami) के दिन समस्तीपुर जिले के विभूतिपुर (Vibhutipur) और रोसड़ा (Rosera) प्रखंडों के कुछ खास गांवों में यह परम्परा तीन सौ वर्षों से बनी हुई है. नागपंचमी के दिन उन गांवों में ‘सांप उत्सव’ की शुरुआत गहवरों में नाग देवता (Nagdewta) व विषहरी माता (Vishahari Mata) तथा आम लोगों के घरों में गोसाईं की पूजा-अर्चना के साथ होती है. इस साल भी गुरुवार को हुई. लोगों ने नाग देवता की पूजा कर परिवार की सुरक्षा और समृद्धि की कामना की. देव समान नागों की पूजा की परम्परा काफी पुरानी है. सनातन धर्म (Sanatan Dharm) में उन्हें शक्ति, समृद्धि और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है.

ऐसा इन्हीं गांवों में होता है

संबद्ध गांवों में उस दिन गहवरों यानी विषहरी स्थानों में अनुष्ठान के बाद भगत स्नान के लिए जाते हैं और उसी क्रम में बूढ़ी गंडक नदी (Budhi Gandak River) से सांप निकालने का करतब दिखाते हैं. दस-बीस की संख्या में नहीं, सैंकड़ों की संख्या में सांप निकालते हैं. यह जानकर हैरानी होगी कि ऐसा सिर्फ समस्तीपुर जिले के विभूतिपुर प्रखंड के नरहन (Narhan), सिंघियाघाट (Singhiyaghat) एवं रोसड़ा प्रखंड के लक्ष्मीपुर (Lakshmipur) एवं थतिया (thattia) विषहरी स्थानों में ही होता है. और कहीं नहीं. जबकि पश्चिम चम्पारण (West Champaran) के रामनगर (Ramnagar)  व बगहा (Bagaha) के बीच स्थित चऊतरवा चौर से निकली बूढ़ी गंडक नदी खगड़िया से थोड़ा आगे गंगा में विलीन होती है. उत्तर बिहार की यह सबसे लम्बी नदी है. इसका दायरा 320 किलोमीटर है.

और कहीं क्यों नहीं?

यह खोज का विषय है कि इतनी लम्बी नदी में विभूतिपुर और रोसड़ा को छोड़ और कहीं इतनी बड़ी संख्या में सांप क्यों नहीं निकलते हैं?इस संदर्भ में कुछ लोगों का कहना है कि यह भगतों की कारस्तानी है. आयोजन से पहले भगत लोग इधर-उधर से सांप इकट्ठा कर सब की विष ग्रंथि निकाल देते हैं. सांप निकालने से पहले गुपचुप तरीके से नदी में सांप डाल देते हैं और भीड़ जुटने पर पानी से निकालने का करिश्मा दिखाते हैं. ऐसा हो सकता है, पर सवाल यहां यह उठता है कि नदी में डाल दिये गये विषहीन सांप भीड़ जुटने से पहले पानी में इधर-उधर भाग नहीं जा सकते हैं? सैंकड़ों की संख्या में वहीं कैसे जमे रहते हैं?

सिर्फ भगत ही दिखाते हैं करतब

यहां गौर करने वाली बात है कि बूढ़ी गंडक नदी से सांप निकालने का करतब सिर्फ भगत (Bhagat) ही दिखाते हैं. सामान्य लोग ऐसा नहीं करते हैं और कर भी नहीं सकते हैं. तीन सौ से अधिक वर्षों से यही परम्परा चली आ रही है. भगत कहीं दूर दराज के नहीं, नदी किनारे के गांवों के ही हैं. नाग पंचमी के दिन नदी से सांप निकालने की विरासत संभाल रहे हैं इसलिए भगत कहलाते हैं. हालांकि, उनके पूर्वज भी भगत ही कहलाते थे. ऐसा भी नहीं कि भगत परिवार का कोई भी सदस्य सांप निकालने का करतब दिखा देता है. बस्ती में जिन चार- पांच भगतों को इस गुण की सिद्धि प्राप्त है वही सांप पकड़ने के लिए नदी में घुसते हैं.

विषहीन ही नहीं, विषधर भी

अलग-अलग स्थानों में भगत डुबकी लगाते हैं और सांप निकाल नदी किनारे जुटी भीड़ के बीच उछाल देते हैं. इसे दैवीय चमत्कार (Daiviy Chamatkar) ही कहेंगे कि गिरते सांपों के भय से कभी भीड़ में भगदड़ नहीं मचती, बल्कि प्रसाद स्वरूप सांप को लपकने के लिए होड़ मच जाती है. जिन्हें हासिल होता है वे श्रद्धा पूर्वक गर्दन और माथे में लपेट लेते हैं. कमर से बांध लेते हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो नदी से सिर्फ विषहीन सांप ही नहीं, विषधर भी निकलते हैं. लेकिन, कभी किसी को काटते नहीं हैं. ऐसी मान्यता है कि नागपंचमी के दिन वहां सांप किसी को काटता नहीं है.


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तीन किलोमीटर लम्बा जुलूस

सांप निकालने के बाद भगत की अगुवाई में लोग सांपों को गले से लटकाये, कमर व सिर में लपटे और मुंह को चुमते हुए जुलूस के शक्ल में नदी घाट से तीन किलोमीटर दूर मेला स्थल पर पहुंचते हैं और घूम-घूम कर वहां करतब दिखाते हैं. फिर दूध और लाबा खिला-पिला तमाम सांपों को आसपास के जंगलों में छोड़ देते हैं. इस बार भी वही सब हुआ. यहां जिज्ञासा अवश्य पैदा हुई होगी कि आखिर भगत और श्रद्धालु सांपों के साथ ऐसा बर्ताव क्यों करते हैं?

मानते हैं अंधविश्वास

तो जानिये, सनातन धर्म (Sanatan Dharm) में नागपंचमी के दिन सर्प दर्शन को शुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि उस दिन सांप को हाथ में लेने से वर्ष भर वह काटता नहीं है. मुख्यतः इसी उद्देश्य से सांपों का जुलूस निकलता है, मेला लगता है. बहरहाल, परम्परा और मान्यताएं जो हों, बुद्धिजीवियों की नजर में एक तरह से यह अंधविश्वास ही है, उसके अलावा कुछ नहीं.

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