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आरक्षण में आरक्षण : डर गये चिराग पासवान!

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विकास कुमार

06 अगस्त 2024

Patna : सर्वाेच्च अदालत (supreme court) के ऐतिहासिक फैसले से अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) एवं अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) के आरक्षण में आरक्षण यानी जातियों (Castes) को समूहों में बांटने और क्रीमी लेयर (Creamy layer) की पहचान करने का रास्ता साफ हो गया है. फैसले में यह भी कहा गया है कि आरक्षण का लाभ एक पीढ़ी तक सीमित रहना चाहिये. मतलब आरक्षित वर्ग के जिस किसी ने इसका लाभ उठा पद और प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली है उसकी अगली पीढ़ी को इसका लाभ नहीं मिलना चाहिये. सामान्य समझ में सर्वाेच्च अदालत की सात सदस्यीय संविधान पीठ का यह फैसला इन दोनों वर्गों की उन छोटी-छोटी जातियों के व्यापक हित में है जिन्हें आजादी के 77 साल बीत जाने के बाद भी किसी रूप में इसका लाभ नहीं मिल रहा है.

सबके सुर समान

लेकिन, यह फैसला दलितों की ‘हित चिंतक राजनीति’ के गले नहीं उतर रहा है. अस्पृश्यता और सामाजिक असमानता के आरक्षण का संवैधानिक आधार रहने के तर्क पर वह इससे असहमति जता रही है. उसके मुताबिक अस्पृश्यता और सामाजिक असमानता अब भी लगभग उसी रूप में विद्यमान है. इस मुद्दे पर एक-दो अपवादों को छोड़ दलित राजनीति (Dalit Politics) के सभी नेताओं के सुर करीब-करीब समान हैं. लोजपा -आर सुप्रीमो चिराग पासवान (Chirag Paswan) की भी त्वरित व तीखी टिप्पणी आयी. सर्वाेच्च अदालत के फैसले से उन्होंने खुले तौर पर असहमति जतायी. पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही.

फिर राजनीति का क्या होगा?

चिराग पासवान के इस रूख से राजनीति चकित रह गयी. इसलिए कि कल तक वह आरक्षित वर्ग (Reserved Category) के संपन्न लोगों को आरक्षण की सुविधा छोड़ देने का सुझाव दे रहे थे. अब उनका वह विचार बदल गया है. लोग सवाल उठा रहे हैं कि सर्वाेच्च अदालत के फैसले से वैसी संभावना बन सकती है तो फिर यह उन्हें नागवार क्यों गुजर रहा है? कहीं उनकी राजनीति तो उन्हें डराने नहीं लग गयी है? विश्लेषकों का मानना है कि सर्वाेच्च अदालत के फैसले पर अमल अभी दूर की बात है. कभी अमल होगा भी, इसकी कोई गारंटी नहीं है. तब भी चिराग पासवान में यह डर समा गया है कि कहीं क्रीमी लेयर का प्रवधान लागू हो गया और आरक्षण का लाभ एक पीढ़ी तक सिमट गया तो फिर उनकी राजनीति का क्या होगा?


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जीतनराम मांझी का जवाब

दूसरी तरफ ‘हम’ के संरक्षक केन्द्रीय मंत्री जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) ने फैसले का स्वागत किया है. कहा है कि इससे उन जातियों के उत्थान का मार्ग खुलेगा जो अनवरत हाशिये पर कराह रहे हैं. जीतनराम मांझी के मुताबिक फैसले का विरोध वही कर रहे हैं जिनकी राजनीति प्रभावित हो जा सकती है. अब चिराग पासवान की राजनीति को समझिये. दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) और उनकी विरासत संभाल रहे पुत्र चिराग पासवान की राजनीति में आम दलित के लिए कोई जगह नहीं है. पासवान समाज के लिए भी नहीं. इसमें महत्व है तो सिर्फ और सिर्फ परिवार का.

परिवार से बाहर नहीं

इस तथ्य को संसदीय चुनावों (Parliamentary Elections) में उनकी पार्टी की उम्मीदवारी से आसानी से समझा जा सकता है. न रामविलास पासवान के प्रभुत्व काल में परिवार से बाहर के किसी दलित नेता को अवसर उपलब्ध कराया गया और न चिराग पासवान के कार्यकाल में कराया जा रहा है. अपवाद स्वरूप 2024 के संसदीय चुनाव में दलित समाज की दूसरी जाति की शांभवी चौधरी (Shambhavi Chaudhary) को समस्तीपुर (Samastipur) से उम्मीदवारी दी गयी. विश्लेषकों की मानें तो ऐसा इसलिए हुआ कि परिवार में इस लायक कोई उपयुक्त चेहरा नहीं था. चाचा पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) और चचेरे भाई प्रिंस पासवान (Prince Paswan) से रिश्ता सामान्य रहता तो शांभवी चौधरी को अवसर मिलता क्या? कतई नहीं मिलता. वैसे, शांभवी चौधरी की उम्मीदवारी को लेकर और भी कई तरह की बातें होती हैं.

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