तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

मृत्युभोज खाना सही है या गलत? क्या कहते हैं श्रीकृष्ण…

शेयर करें:

प्रदीप कुमार नायक

हिन्दू परिवार (Hindu Family) में किसी सदस्य की मृत्यु (Death) हो जाने पर तेरहवें दिन मृत्युभोज (Mrtyubhoj) आयोजित होता है. कई लोगों के मन-मिज़ाज में यह सवाल उठता है कि मृत्युभोज में खाना सही है या नहीं. तो, चलिए जानते हैं इस सवाल का जवाब और साथ में यह भी कि भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) ने इस बारे में क्या कहा है. किसी मृतक के दाह संस्कार (Cremation of the Deceased) को हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में से सबसे अंतिम संस्कार माना गया है. इसके साथ ही पृथ्वी पर से उस आत्मा (Soul) की यात्रा समाप्त हो जाती है. लेकिन दाह-संस्कार में कई सारे रीति-रिवाज निभाये जाते हैं, जिसमें से एक है तेरहवीं (Thirteenth) के दिन मृत्यु भोज का आयोजन. मृत्युभोज में अपने सभी सगे-संबंधी, जान-पहचान वाले एवं जाति-बिरादरी (Caste-Community) के लोगों को बुलाया जाता है. भोज‌ खाने के लिए लोगों का हुजूम भी उमड़ता है. लेकिन, कुछ लोगों के मन में यह सवाल भी रहता है कि क्या मृत्युभोज में खाना सही है?

क्या कहते हैं शास्त्रों के ज्ञाता?

एक जानकार के मुताबिक़ मृत्यु के बाद दशमी, एकादशा और द्वादशा को कर्मकांड (Rituals) किया जाता है. दसवें दिन घर की सफाई या लिपाई-पुताई की जाती है, जिसे दशगात्र कहते हैं. एकादशा गात्र को पिंडदान (Pindadaan) व महापात्र दान (Mahapatra Daan) किया जाता है और द्वादशा को मासिक पिंडदान, पितरों के लिए पिंडदान कर घर में गंगाजल (Gangaajal) इत्यादि छिड़का जाता है. फिर तेरहवें दिन घर पर 13 या 16 पंडितों, रिश्तेदारों व परिवार के लोगों के साथ सामूहिक भोज (Group Dinner) होता है, जिसे मृत्यु भोज कहा जाने लगा है.तेरहवीं पर केवल गायत्री (Gayatri) का जाप करने वाले यानी विद्वान और तपस्वी ब्राम्हणों को ही खिलाने का विधान है. ब्राम्हण कच्ची सामग्री लेकर अपना भोजन खुद बनाते थे.

यह थी वैदिक परम्परा

वैदिक परम्परा (Vedic Tradition) के अनुसार, सगे-संबंधी क्षमतानुसार अपने घरों से अनाज, राशन, फल, सब्जियां, दूध, दही, मिष्ठान्, कपड़े इत्यादि लेकर मृतक के घर पहुंचते थे. उन आत्मीय जनों को भी भोजन कराया जाने लगा और उन्हें स्मृति चिन्ह (Memento) दिये जाने लगे ताकि मृतक के दुनिया से चले जाने के बाद भी उसके संबंधियों का घर से नाता बना रहे. लेकिन, अब बात अलग हो गयी है. इन रिवाजों (Customs) को तोड़-मरोड़ दिया गया है और गलत तरीके से समझा जाने लगा है. मृत्युभोज में लाखों खर्च करना और हजारों लोगों को खिलाना लगभग सभी जानकारों के हिसाब से शास्त्र सम्मत नहीं है. मृत्युभोज केवल करीबियों और जरूरतमंदों के लिए आयोजित किया जाना चाहिए और अगर कोई संपन्न परिवार इस भोज का हिस्सा बनता है, तो उसके कर्मों का क्षय होता है.


ये भी पढ़ें :

चिराग पासवान : यह भी मिला है विरासत में…!

झटका पर झटका : लालू प्रसाद बेबस !

तरारी : पिता खारिज… पुत्र को मिलेगी उम्मीदवारी !

सीमांचल में जनसुराज : राजद, एमआईएम का…!


भगवान श्रीकृष्ण ने क्या कहा ?

मृत्युभोज में खाना सही है या नहीं, इसका जवाब बहुत हद तक महाभारत (Mahabharata) के एक प्रसंग से मिलता है. इस प्रसंग के अनुसार, महाभारत का युद्ध शुरू होने ही वाला था. युद्ध को टालने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर संधि करने का आग्रह किया. दुर्योधन के समक्ष युद्ध न करने का प्रस्ताव रखा. लेकिन, दुर्योधन ने श्रीकृष्ण की एक नहीं सुनी. इससे श्रीकृष्ण को काफी कष्ट हुआ. वह वहां से निकल गये. जाते समय दुर्योधन ने श्रीकृष्ण से भोजन ग्रहण करने का अनुरोध किया. लेकिन, श्रीकृष्ण ने इनकार कर दिया. दुर्योधन को बुरा लगा. इसपर श्रीकृष्ण ने कहा- ‘सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’.

ऊर्जा का विनाश

अर्थात, हे दुर्योधन! जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए. जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के मन में पीड़ा हो, वेदना हो, तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए. महाभारत के इसी प्रसंग को ही मृत्युभोज से जोड़ा गया है . इसके अनुसार, अपने किसी परिजन की मृत्यु के बाद मन में अथाह पीड़ा होती है. परिवार के सदस्यों के मन में काफी बहुत दु:ख होता है. वहीं दूसरी ओर मृत्युभोज में आमंत्रित लोग भी प्रसन्नचित होकर भोज में शामिल नहीं होते. ऐसा कहा गया कि इससे उर्जा का विनाश होता है.

अपनी राय दें