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आर सी पी सिंह पर मौन क्यों हैं नीतीश कुमार?

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रंजन यादव, सतीश कुमार, नागमणि वाली कतार में तो नहीं बैठ जायेंगे आर सी पी सिंह.

राजनीतिक विश्लेषक
15 अगस्त 2021

पटना. पूरा नतीजा आने में अभी वक्त लगेगा. इस समय केंदीय मंत्री आर सी पी सिंह की जद(यू) के संदर्भ में भूमिका पर गौर कीजिये. नतीजा से पहले के रूझान को देखिये. साफ नजर आ रहा है. जद(यू) की पूरी कतार भारी द्वंद्व में है. पूरी कतार विभाजित है. यह विभाजन इसलिए है कि लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार किसके पक्ष में हैं. आज न कल नीतीश कुमार को अपना रूख साफ करना ही होगा. तब तक पार्टी को जितना नुकसान हो गया होगा, उसकी भरपाई में काफी देर लगेगी.

नीतीश कुमार गंभीर व्यक्ति हैं. किसी मामले में नफा-नुकसान का हिसाब करके ही अपनी राय देंगे. फिर उनकी राय जैसी भी हो, वह जद(यू) कार्यकर्ताओं के लिए मान्य होगा. यहां पहुंच कर नीतीश कुमार के अगले कदम के बारे में कई संभावनाएं जाहिर की जा रही हैं. सबसे सहज यह कि आर सी पी सिंह की भूमिका को सीमित कर दें. उन्हें अधिक तरजीह न दें. यह ऐसी प्रक्रिया होगी, जिसमें आर सी पी सिंह जद(यू) की मुख्यधारा की राजनीति से किनारे लगते जायेंगे. यह अलगाव की प्रक्रिया होगी, जो अगले साल के अप्रैल-मई महीने में पूरी होगी. उसी समय आर सी पी सिंह का राज्यसभा का दूसरा कार्यकाल समाप्त होने वाला है.

भाजपा से उम्मीद है
इस समय भाजपा पूरी तरह आर सी पी सिंह के साथ है. आर सी पी सिंह भी मंत्री बनाने के चलते भाजपा के प्रति आभार व्यक्त करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते हैं. कई अवसरों पर उन्होंने केंद्र में मंत्री बनने का जरा भी श्रेय नीतीश कुमार को नहीं दिया. भाजपा दूसरे दलों के लोगों के बारे में अक्सर भ्रम में रहती है. राजस्थान में कांग्रेसी सचिन पायलट, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और महाराष्ट्र में एनसीपी के नेता शरद पवार के भतीजे अजित पवार को गले लगाने का हश्र देख चुकी है. भाजपा ने इन नेताओं को इस मुगालते में गले लगाया कि ये सब अपनी-अपनी पार्टियों की मुख्यधारा में उथल-पुथल मचा देंगे. कुछ नहीं हुआ. सब के सब अपना उल्लू सीधा कर घर लौट आये. अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी जोड़ दें तो हाल के दिनों में भाजपा ने दूसरे दलों के चार नेताओं पर अपनी होशियारी दिखाने की कोशिश की. तीन में भाजपा फेल रही. ज्योतिरादित्य सिंधिया के मामले में उसे कामयाबी मिली. प्रतिशत में देखें तो इस कारोबार में भाजपा को सिर्फ चैथाई कामयाबी मिली. भारतीय परीक्षाओं की मूल्यांकन प्रणाली में इस हासिल को फेल दर्जा दिया जाता है.

ज्योतिरादित्य नहीं हैं आर सी पी सिंह
जनाधार और राजनीतिक असर के मामले में ज्योतिरादित्य सिंधिया और आर सी पी सिंह में कोई तुलना नहीं की जा सकती है. आर सी पी सिंह राजनेता नहीं हैं. वह नीतीश कुमार के पावर हाउस से जुड़े रहने तक ही असरदार नजर आते हैं. उनमें ज्योरादित्य सिंधिया की तरह जद(यू) विधायक दल में विभाजन कराने की कुवत नहीं है. जद(यू) संसदीय दल में भी वह कोई विभाजन नहीं करा सकते हैं. हां, साथ रहने पर वह जद(यू)-भाजपा की लड़खड़ाती दोस्ती को अगले लोकसभा चुनाव तक जारी रख सकते हैं. लेकिन, यह भी तब होगा, जब नीतीश कुमार उनके प्रति पहले जैसे विश्वास का प्रदर्शन करें. लोगों ने वह दौर भी देखा है, जब सिर्फ इस खबर से आर सी पी सिंह के दरबार में सन्नाटा पसर जाता था-आजकल एक अणे मार्ग से इनकी दूरी बढ़ गयी है. अधिक दूर जाने की जरूरत नहीं है. संदर्भ के रूप में उन दिनों को याद किया जा सकता है, जब प्रशांत किशोर एक अणे मार्ग में रह रहे थे. संगठन पर पकड़ बना रहे थे. आर सी पी सिंह की तरह प्रशांत किशोर को भी जद(यू) कार्यकर्ताओं में अपनी पूछ देखकर आलाकमान हो जाने का भ्रम हुआ. नतीजा याद कीजिये. अगर नहीं संभले तो आर सी पी सिंह के मामले में भी ऐसे ही नतीजे का इंतजार कीजिये.

एक और गति है
बिहार की राजनीति में आर सी पी सिंह से पहले कई आर सी पी हुए. वे सब रंजन प्रसाद यादव, सतीश कुमार और नागमणि की गति को प्राप्त हुए. रंजन प्रसाद यादव के लालू शासन की लौ को याद करने की जरूरत है. आज कहां हैं? किसी को यह जानने की जरूरत नहीं है. कुर्मी चेतना रैली की जबरदस्त सफलता के बाद तत्कालीन भाकपा विधायक सतीश कुमार का क्या जलवा था. भीड़ देखकर मुख्यमंत्री बनने जा रहे थे. और पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि! उनका नारा-हम जिसके साथ रहते हैं, सरकार उसी की बनती है. सरकार जिसकी बननी होती है, बन जाती है. सिर्फ नागमणि कुछ नहीं बन पाते. भरोसा किया जा सकता है कि अगर आर सी पी सिंह समय रहते अपनी हैसियत और भाजपा की चाल नहीं समझ पाये तो राजनीति में एक समय चमकने वाले उपरोक्त सितारों की कतार में वह दो-चार साल बाद बैठे मिलेंगे.

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