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सादगी के चोले में घुसा बेईमान अधिकारी

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राजनीतिक विश्लेषक
16 अगस्त 2021

पटना. गांवों की कई कहावतें शहरों में भी शान से चलती रहती हैं. एक कहावत है, जिसका भाव यह है कि चोर का धन उसे छिपाकर रखने वाला ही खा जाता है. बेचारा चोर कहीं शिकायत भी नहीं कर पाता है. थाना में शिकायत लिखवाने जाये तो थानेदार यही पूछ कर जान खा जायेगा कि आखिर इतना धन तुम्हारे पास आया कहां से है. थानेदार कड़क मिजाज का रहा तो डंडा मारकर चोरी का राज पता कर लेगा. फिर उसी पर चोरी का आरोप लगेगा. जेल जायेगा. गांव-घर का चोर भी इतनी बात जानता है. खयानत करने वाले के खिलाफ शिकायत नहीं करता है. मन मारकर रह जाता है. खुद को तसल्ली देता है कि कहीं और चोरी करके वह क्षति की भरपाई कर लेगा. गांव का चोर बेचारा मूरख होता है. उस पर रहम खाया जा सकता है. यहां जिस चोर की बात हो रही है, वह अधिकारी टाइप का है. राज्य के आधे दर्जन बड़े और रसूखवाले अधिकारियों में उनका नाम है. निहायत सादगी वाला जीवन है. कपड़े पर इस्त्री तक नहीं करते हैं. गांव का घर ऐसा कि न जानने वाला यही समझे कि किसी गरीब का है और जरूर इसका निर्माण इंदिरा आवास या प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत किया गया होगा. उन्हें जानने वाले लोग आज तक यही नहीं समझ पाये थे कि दोनों हाथ से कमाने वाला यह आदमी घूस का रुपया आखिर रखता कहां है. कोरोना संकट ने इस राज को खोल दिया. साहब ने निवेश के लिए बंग प्रदेश को चुना था. रिश्वत या कमीशन की रकम का भुगतान भी वहीं होता था. उनके ससुराल पक्ष के एक रिश्तेदार रिश्वत की रकम लेने के लिए अधिकृत किये गये थे. हुआ यह कि रिश्तेदार की तबीयत बिगड़ी. वही सर्दी, बुखार और जुकाम की बीमारी. अस्पताल में दाखिल कराया गया. खबर मिली तो ये अधिकारी दौड़े-भागे बंग प्रदेश पहुंचे. अस्पताल के बाहर इंतजार करते रहे. यह सोचकर कि होश आये तो पूछ लें कि निवेश का कागज-पत्तर कहां हैं. यह मौका उन्हें नहीं मिला. आईसीयू से सीधे उनकी मृत काया ही बाहर निकली. ऐसा नहीं है कि उस रिश्तेदार के परिजनों को नहीं पता होगा कि घूस का मोटा माल कहां खपाया गया है. सबको पता है. बस, अधिकारी को कुछ नहीं बताया गया. आप उनकी हालत समझ रहे हैं. वक्त ही बुरा चल रहा है. दरबार में भी पहले वाली हैसियत नहीं रह गयी है. आसपास के लोग बताते हैं कि साहब के बड़े साहब को भी पता चल गया कि सादगी के चोले में जबरदस्त किस्म का बेईमान घुसा हुआ है.

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