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कहानी है यह करोड़पति दरिद्रों की!

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महर्षि अनिल शास्त्री

20 अगस्त 2021

गोपालगंज. इसे सच मानें या झूठ, राज्य के सहकारी क्षेत्र  में लूट – खसोट से संबंधित जो सामान्य धारणा है उसको अपनी करतूतों  से गोपालगंज के तथाकथित सहकारी नेता और अधिक मजबूत बना रहे हैं. छोटे-बड़े सहकारी संस्थाओं पर काबिज ऐसे नेताओं को जब जहां मौका मिलता है, बहती गंगा समझ हाथ साफ कर ले रहे हैं. इन दिनों व्यापार मंडल और पैक्स इनके लिए कामधेनु, वर्तमान दौर के हिसाब से एटीएम जैसे हो गये हैं. जब जितना मन किया बेरोकटोक निकाल लिया. न कोई देखन हार और न पूछन हार! जन सामान्य के बीच से आ रही सूचनाओं के मुताबिक धांधली पैक्सों में भी खूब है, पर ज्यादा अंधेरगर्दी व्यापार मंडलों में है. उस पर काबिज लोग बेखौफ सीना तान कर लूट मचा रहे हैं. लोकलाज तो घोर कर पी ही गये हैं, कानून का भी उन्हें तनिक भय नहीं है. व्यापार मंडल और पैक्स से संबंधित उनकी कारगुजारियों से तो ऐसा ही कुछ परिलक्षित होता है. कारोबार में गोरखधंधों के साक्ष्य स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं. इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती है. यह संबंधित तमाम लोगों की संलिप्तता के संदेह को आधार प्रदान करता है.

इस क्षेत्र में किस-किस तरह के गुल खिलाये जा रहे हैं, उसे जानने-समझने के लिए एक-दो उदाहरण ही काफी हैं. सत्येंद्र तिवारी गोपालगंज जिले के सहकारी क्षेत्र के काफी चर्चित,पर प्रतिद्वंद्वियों की नजर में बदनाम चेहरा हैं. गोपालगंज जिला सेण्ट्रल को-आपरेटिव बैंक के उपाध्यक्ष रह चुके हैं. वर्तमान में बेलही पैक्स के अध्यक्ष हैं, कटैया व्यापार मंडल के भी अध्यक्ष हैं. गांव के बड़े काश्तकार हैं. बेटा आलोक तिवारी का देहरादून में निजी स्कूल चलता है. गांव में ईंट भट्ठा का बड़ा व्यवसाय है. पिता-पुत्र ने बेलही पैक्स को सौ-सौ क्विंटल धान भी बेचे हैं. इतनी बड़ी हैसियत को कुछ विशेष अधिकार तो रहना ही चाहिए. वैसा सत्येन्द्र तिवारी ने  हासिल कर रखा है. इस रूप में कि इन्होंने अपने पुत्र आलोक तिवारी के नाम राशन कार्ड बनवा रखा है. राशन कार्ड गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों का बनता है. प्रचलित भाषा में कहें तो बीपीएल वालों का. बेलही पैक्स को सौ क्विंटल धान बेचने वाले संपन्न किसान आलोक तिवारी का राशन कार्ड बनवाने के पीछे मकसद क्या है, यह नहीं कहा जा सकता. वैसे, आम समझ है कि सरकारी खैरात प्राप्त करने के लिए उन्होंने ऐसा कर रखा है. इलाकाई लोग इसे धान खरीद में फर्जीवाड़े के नजरिये से देख रहे हैं. ऐसा मामला सिर्फ आलोक तिवारी का ही नहीं है, बेलही पैक्स को तकरीबन सौ क्विंटल धान बेचने वाले अनेक रैयती और गैर रैयती किसान हैं जिनके नाम राशन कार्ड है. सवाल स्वाभाविक है कि ये सब ‘किसान’ जब सौ क्विंटल धान बेचने की हैसियत रखते हैं तो फिर राशन कार्डधारी कैसे हैं? यदि वास्तव में बीपीएल हैं तो इतनी भारी मात्रा में धान कहां उपजाते हैं? उपजाते नहीं तो लाते कहां से हैं? इन्हीं सवालों के जवाब में व्यापार मंडलों एवं पैक्सों के धान क्रय केन्द्रों की कथित घपलेबाजी का रहस्य छिपा है.

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