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चौर के पानी में तैर रहा स्टील फैक्ट्री का सपना

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अरविन्द कुमार झा
19 अगस्त 2021

हाजीपुर. लोजपा के दिवंगत सुप्रीमो रामविलास पासवान तब केन्द्र की कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार में इस्पात मंत्री थे. जैसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार में अभी जद(यू) के रामचंद्र प्रसाद सिंह हैं. तकरीबन तेरह साल बाद यह मंत्रालय फिर से बिहार के हाथ में है. इससे उस खंडित ख्वाब के साकार होने की उम्मीदें हरी हो उठी हैं जिसे रामविलास पासवान ने संयो कर खुद इस हालात में ला दिया था. तो क्या नये इस्पात मंत्री के तौर पर रामचंद्र प्रसाद सिंह इस अधूरे ख्वाब को हकीकत में बदलने में रुचि दिखायेंगे? आज की तारीख में यह एक बड़ा सवाल है जिसका जवाब रामचन्द्र प्रसाद सिंह के पास ही है. वैसे, उनकी जो सोच हो, बिहार उनसे ऐसी अपेक्षा रखता है. सवाल यह भी है कि इसके लिए दिवंगत रामविलास पासवान के भाई हाजीपुर के सांसद पशुपति कुमार पारस, जो संयोगवश केन्द्र में मंत्री भी हैं, की भी कोई पहल होगी?

स्टील फैक्ट्री की कथा बहुत रोचक है. इस्पात मंत्रालय से पहले रामविलास पासवान रेल और फिर संचार मंत्रालय को संभाल चुके थे. उन दोनों मंत्रालयों का जनता से कुछ न कुछ प्रत्यक्ष सरोकार था. सीधे तौर पर लाभान्वित करने का. ज्यादा कुछ नहीं तो उनके सौजन्य से मुफ्त रेल यात्रा का पास और टेलीफोन का आसान कनेक्शन तो मिल ही जाता था. प्रतिद्वंद्वियों की मानें तो रामविलास पासवान ने यह सब खैरात की तरह बांटा. समर्थकों और अपने लोगों ने भर इच्छा प्राप्त किया. इतना कि आगे की संभावना ही सिमट गयी. कालांतर में रेलवे पास के अनुपयोगी वितरण पर प्रतिबंध लग गया और टेलीफोन की उपलब्धता इतनी आसान हो गयी कि उसके लिए पैरवी-पहुंच की जरूरत ही नहीं रह गयी. जो हो, खैरात वितरण से रामविलास पासवान का जनाधार मजबूत हो गया. फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाभी उनके हाथ आ गयी. यह अलग बात है कि चाभी लिये वह घूमते रहे और इधर लोजपा विधायक दल में बहुत बड़ी सेंध लग गयी. काफी संख्या में विधायक उनसे दूर हो गये. यह खबर की पृष्ठभूमि है. अब बात मूल मुद्दे की.

आरसीपी सिंह और पशुपति कुमार पारस.

इस्पात मंत्रालय में सीधे तौर पर जनता को लाभ पहुंचाने का कोई प्रावधान या इंतजाम नहीं था. उर्वरक और रसायन मंत्रालय में भी नहीं. गौरतलब है कि तब यह मंत्रालय भी उन्हीं के पास था. 2009 का संसदीय चुनाव करीब था . रामविलास पासवान हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ते थे. बेहिसाब जन विक्षोभ और हवा के रुख विपरीत रहने से परेशान थे. इसे पक्ष में मोड़ने के लिए विशेष कुछ कर नहीं सकते थे. लेकिन, कुछ न कुछ तो करना था सो उन्होंने अपने हाजीपुर संसदीय क्षेत्र में भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) के नियंत्रणाधीन स्टील प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित करने की घोषणा कर दी. हाजीपुर संसदीय क्षेत्र के तहत है महनार विधानसभा क्षेत्र. 8 मार्च 2008 को महनार बाजार के अम्बेडकर चौक पर रामविलास पासवान ने बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया और लगे हाथ महनार में स्टील फैक्ट्री खोलने की घोषणा कर दी. लोग बाग-बाग हो उठे. उनकी आंखों में टाटा स्टील फैक्ट्री या फिर बोकारो इस्पात संयंत्र जैसे बड़े कारखाने का सपना बस गया. कल्पनाओं में औद्योगिक नगरी और इलाकाई समृद्धि छा गयी. जैहस कि घोषणा के ठीक एक माह बाद 8 अप्रैल 2008 को महनार के पड़ोस के गांव अफजलपुर में स्टील फैक्ट्री का शिलान्यास भी हो गया. उस वक्त लोगों को जमीनी हकीकत की जानकारी मिली कि वहां टाटा स्टील या बोकारो इस्पात जैसा नहीं, सरिया और शीट्स बनाने बाला छोटा-मोटा स्टील प्रोसेसिंग प्लांट खुलेगा. दुर्भाग्य देखिये कि वह भी नहीं खुल सका. ऐसा सिर्फ इसी मामले में नहीं हुआ. हाजीपुर संसदीय क्षेत्र की बाबत रामविलास पासवान ने जितनी भी घोषणाएं की, जितने भी काम शुरू कराये, सभी का हश्र प्रायः ऐसा ही हुआ. हाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र को इलेक्ट्राॅनिक सिटी बनाने की बात हो या महनार में टेलीफोन एसडीओ का कार्यालय खोलने की, धरातल पर कुछ नहीं हुआ.

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