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कुशवाहा के बदले कुशवाहा या रावत? असमंजस में JDU

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अरविन्द कुमार झा
01 सितम्बर2021

PATNA. अब प्रदेश JDU अध्यक्ष उमेश कुशवाहा की विदाई की बेला है. पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष केन्द्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के साथ उनकी सियासी सक्रियता की अनवरतता से बल मिल रहा है.

पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक उमेश कुशवाहा की रूख्सती का परवाना कट चुका है. बस अमल होना है. अमल इस वजह से रुका है कि उमेश कुशवाहा का ‘स्थानापन्न’ उनकी ही बिरादरी का कोई हो या अत्यंत पिछड़ा वर्ग का, रणनीतिकार अभी इस पर अंतिम निर्णय नहीं कर पाये हैं.

नहीं दिख रहा अन्य कोई दमदार नेता

मंथन इस पर भी हो रहा है कि JDU को राष्ट्रीय विस्तार देने की महत्वाकांक्षा को धरातल पर उतारने के लिए प्रदेश अध्यक्ष पद पर ऐसे किसी नेता को बैठाया जाये जो पार्टी के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के साथ कदमताल कर सकें. पर, बड़ी परेशानी यह है कि JDU की ‘सामाजिक समरसता’ के दायरे में वैसा कोई दमदार नेता नहीं दिख रहा है. वैसे, इस पद को चाहने वाले नेता अनेक हैं.

दायें से ललन सिंह, आरसीपी सिंह और उपेन्द्र कुशवाहा.

सूत्रों के मुताबिक इस मामले में किस्मत भले किसी और की खुल जाये, नेतृत्व के स्तर पर ले देकर निर्णय दो ही नेताओं के इर्द-गिर्द घूम रहा है. JDU संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग से आने वाले पूर्व मंत्री दामोदर रावत के इर्द-गिर्द.

उपेन्द्र कुशवाहा हालांकि, ऐसी किसी संभावना से इनकार करते हैं, लेकिन उनके इस इनकार पर भरोसा नहीं जमता. आम समझ है कि आमतौर पर वह जो कहते हैं, काम उसके विपरीत होता है. वैसे, पूर्व का जो अनुभव है उसके मद्देनजर वह ललन सिंह को इस रूप में स्वीकार होंगे, यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता.

एक विकल्प संतोष कुशवाहा भी

इस बिरादरी में एक विकल्प पूर्णिया के सांसद संतोष कुशवाहा को भी माना जा रहा है. जहां तक दामोदर रावत की बात है तो ललन सिंह के साथ उनका रिश्ता कभी मधुर नहीं रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में यह कटुता खुलकर सामने आ गयी थी. चकाई से JDU की उम्मीदवारी को लेकर. जमुई की राजनीति में पूर्व मंत्री नरेन्द्र सिंह और दामोदर रावत में आपसी समन्वय रहा करता है.

यह अलग बात है कि कभी-कभी खटास भी पैदा हो जाती है. दामोदर रावत चकाई से सुमित कुमार सिंह को JDU की उम्मीदवारी के पक्ष में थे. ललन सिंह के दबाव में उम्मीदवारी राजद से आये निवर्तमान विधान पार्षद संजय प्रसाद को मिल गयी. सुमित कुमार सिंह निर्दलीय लड़ गये और निर्वाचित भी हो गये. संजय प्रसाद को हार का मुंह देखना पड़ गया.

ललन सिंह को रास नहीं आएंगे दामोदर रावत 

सिंह के निकटवर्ती लोगों का मानना रहा कि इस हार में दामोदर रावत की खतरनाक भूमिका रही. अंदरुनी तौर पर उन्होंने लोजपा उम्मीदवार अर्जुन मंडल की मदद की. दामोदर रावत झाझा से विधायक हैं. इस बार भी मंत्री पद के प्रबल दावेदार थे. अवसर उपलब्ध नहीं हुआ. अपने लोगों के बीच यह कहते सुने गये कि ललन सिंह ने ऐसा नहीं होने दिया.

इन बातों में यदि सच्चाई है तो दामोदर रावत को प्रदेश JDU का अध्यक्ष पद शायद ही मिल पायेगा. वैसे, JDU के अंदर संभावित प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अभी उनके ही नाम की ज्यादा चर्चा है.

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