लालगंज का दलित नेता प्रकरण : आदित्य ठाकुर तो मोहरा है…!
विष्णुकांत मिश्र
19 अप्रैल, 2023
HAJIPUR : राकेश पासवान की इलाके में जो खौफ मिश्रित लोकप्रियता थी उसके मद्देनजर इत्मीनान में रहना स्वाभाविक था. इसे उनका दुर्भाग्य कहा जायेगा कि उस दिन वह कुछ अधिक इत्मीनान में आ गये थे. शायद अम्बेेदकर जयंती (Ambedkar Jayanti) पर शोभायात्रा निकालने की व्यस्तता की वजह से. शोभायात्रा दूसरे दिन 14 अप्रैल 2023 को निकलनी थी. ताक में लगे दुश्मनों को उस दिन (13 अप्रैल 2023) की व्यस्तता में अवसर मिल गया. चार की संख्या में शूटरों ने दिन-दहाड़े दरवाजे पर चढ़ गोलियों की बरसात कर उन्हें मौत के मुंह में झोंक दिया. जनप्रियता जान नहीं बचा पायी. लालगंज (Lalganj) बाजार में उपद्रव मचाने भर में ही काम आयी. दलित (Dalit) समाज के दबंग नेता राकेश पासवान (Rakesh Paswan) लालगंज के पंचदमिया गांव के रहने वाले थे. लालगंज-रेपुरा रोड में है यह गांव. ऐसा कहा जाता है कि पंचदमिया में पासवान समाज के लोगों की बहुतायत है. तकरीबन 65 प्रतिशत लोग इसी बिरादरी के हैं. इसके बाद भी अपराधी दिन के उजाले में राकेश पासवान का बेखौफ सीना छेद गांव (Village) से निकल गये. लोकप्रियता मुंह देखती रह गयी. क्या इससे इस आशंका को बल नहीं मिलता कि वारदात में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष गांव के भी कुछ ‘अपनों’ की संलिप्तता है?
तब गोलीमारने का अवसर नहीं मिलता
स्थानीय लोगों की बातों पर भरोसा करें, तो लगभग डेढ़ दशक के दौरान राकेश पासवान ने कथित रूप से गरीब-गुरबों के हक में जिस ढंग की दबंगता पसार रखी थी उसमें स्थानीय स्तर पर उनके अनेक दुश्मन पैदा हो गये थे. हत्या के मामले में जिस आदित्य ठाकुर (Aditya Thakur) को नामजद किया गया है, उससे उनकी संभवतः कोई जानी दुश्मनी नहीं थी. यह परिजनों के बयान से भी स्पष्ट होता है. उस बयान के मुताबिक गोली मारने से पहले शूटरों में से एक ने राकेश पासवान के पांव छुए. अंबेदकर जयंती और शोभायात्रा की बाबत बातें भी की. सामान्य बात है कि नामजद आदित्य ठाकुर से जानी दुश्मनी होती, तो उसे देख राकेश पासवान हमले का प्रतिकार करते या फिर बचने की कोशिश करते. कुर्सी पर बैठे-बैठे गोली मारने का अवसर नहीं देते. उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया. इससे स्पष्ट होता है कि आदित्य ठाकुर से जानी दुश्मनी नहीं थी. जानकारों के मुताबिक आदित्य ठाकुर तो उन तथाकथित दुश्मनों का मोहरा भर है, जो बहुत दिनों से उनकी जान के पीछे पड़े थे. ऐसे लोगों में दो पूर्व विधायक (Ex MLA) और एक विधानसभा चुनाव (Vidhan Sabha Election) के प्रत्याशी के नाम दबी जुबान से लिये जा रहे हैं.
लोजपा से भी नहीं था अखंड जुड़ाव
लालगंज केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) के हाजीपुर (Hajipur) संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. राकेश पासवान रालोजपा से संबद्ध दलित सेना के राष्ट्रीय सचिव थे. पूर्व में भीम आर्मी (Bhim Army) के जिला संरक्षक भी रहे. वैसे, वह किसी एक संगठन से ही जुड़े नहीं थे. यहां तक कि लोजपा से भी अखंड जुड़ाव नहीं था. वैसा होता तो 2020 के विधानसभा चुनाव में लालगंज क्षेत्र में लोजपा उम्मीदवार पूर्व विधायक राजकुमार साह (Rajkumar Sah) के खिलाफ मैदान में नहीं उतरते. वैसे, पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान (Rambilas Paswan) के समय से उनका संबंध पशुपति कुमार पारस से था. लोजपा (रामविलास) सुप्रीमो सांसद चिराग पासवान (Chirag Paswan) से भी निकटता थी. पशुपति कुमार पारस शवयात्रा और अंतिम संस्कार के समय मौजूद थे. चिराग पासवान शोकाकुल परिजनों के बीच दूसरे दिन पहुंचे. एक दिन बाद जन अधिकार पार्टी (जाप) सुप्रीमो राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Rajesh Ranjan urf Pappu Yadav) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक जनता दल (रालोजद) सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा भी अलग-अलग समय में पधारे. दोनों ने शोक संतप्त परिजनों को सांत्वना दी. विधि- व्यवस्था की बदतर स्थिति के लिए नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार को कोसने की औपचारिकता पूरी कर पटना लौट गये. मामला दलित का था. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) भी आंसू पोंछने पहुंच गये. संवाद लिखने के वक्त तक इन सबके अलावा मातमपूर्सी में और कोई बड़ा नेता नहीं आया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की संवेदना तो जगती ही नहीं है, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) ने इसकी जरूरत नहीं समझी.
सीना किसने छेदा?
शवयात्रा के दिन राकेेश पासवान के समर्थकों ने लालगंज बाजार (Lalganj Bazar) में हिंसा और आगजनी का जो नंगा नाच किया उसकी आलोचना किसी ने नहीं की. हत्या का गुनहगार कोई और, नुकसान निर्दोषों को उठाना पड़ गया. राकेश पासवान की हत्या से उनकी विधवा सिया सुंदरी देवी (Siya Sundari Devi) के साथ-साथ उनके दो पुत्रों और दो पुत्रियों के भविष्य पर ग्रहण लग गया है. राकेश पासवान की मां शैल देवी के समक्ष भी वैसी ही परिस्थिति है. राकेश पासवान के बड़े भाई हैं मुकेश पासवान (Mukesh Paswan). 2016 में वैशाली जिला परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए थे. 2021 में हार गये. ऐसा माना जाता है कि राकेश पासवान की हत्या से उनकी राजनीति भी प्रभावित हो जायेगी. सवाल यह है कि राकेश पासवान का सीना किसने छेदा? बड़े भाई मुकेश पासवान ने प्राथमिकी दर्ज करायी है. आदित्य ठाकुर को नामजद किया गया है. तीन अज्ञात की भी चर्चा है. चर्चा लालगंज नगर परिषद (Lalganj Nagar Parishad) के अध्यक्ष कंचन साह (Kanchan Sah) के नाम की भी है. वैशाली के पुलिस अधीक्षक रवि रंजन (SP Ravi Ranjan) के मुताबिक सदर अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ओमप्रकाश (Omprakash) के नेतृत्व में विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाया गया है. राकेश पासवान की पत्नी सिया सुंदरी देवी और 16 वर्षीया पुत्री रौशनी कुमारी हत्या के बदले हत्या के रूप में त्वरित न्याय चाहती हैं. मां शैल देवी फांसी की बात करती हैं. शैल देवी का यहां तक कहना है कि हत्यारों को फांसी नहीं मिली, तो पूरा परिवार जहर खाकर जान दे देगा.
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शैल देवी और रौशनी कुमारी का कहना है कि राकेश पासवान को गोली आदित्य ठाकुर (Aditya Thakur) ने मारी. उसके साथ तीन और लोग थे, जिन्हें पहचान नहीं पायी. रौशनी कुमारी का यह भी कहना है कि वारदात स्थल से कुछ दूर कंचन साह मौजूद थे. हत्या क्यों हुई इसका खुलासा अभी नहीं हुआ है. आदित्य ठाकुर बगल के पोंझिया गांव का रहने वाला है. डा. विपिन ठाकुर (Dr. Vipin Thakur) का पुत्र है. विपिन ठाकुर अब इस धरा पर नहीं हैं. आदित्य ठाकुर छात्र जीवन से ही उग्र स्वभाव का रहा है. छोटा-मोटा अपराध भी करता रहा है. कुछ दिनों पहले उसने अपने चचेरे भाई (रजनीकांत ठाकुर के पुत्र) के पैर में गोली मार दी थी. उस सिलसिले में गिरफ्तारी हुई थी. राकेश पासवान की हत्या से तीन-चार दिन पहले जेल से बाहर आया था. इस हत्या में उसकी संलप्तिता है या नहीं, इसका निर्णय अदालत (Court) करेगी. लेकिन, इस बाबत जो चर्चाएं हो रही हैं, उसके मुताबिक राकेश पासवान की हत्या की साजिश जेल में रची गयी थी. राकेश पासवान से आदित्य ठाकुर का कोई सीधा टकराव नहीं था. ऐसा माना जा रहा है कि ‘मोहरे’ के तौर पर इस्तेमाल कर उससे इस वारदात को अंजाम दिलाया गया. इसके एवज में उसे क्या मिला, यह नहीं मालूम. लालगंज के लोगों की समझ है कि आदित्य ठाकुर अपराध जगत और राजनीति में पूर्व बाहुबली विधायक विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला (Munna Shukla) सरीखी हैसियत पाने के लिए हथियार भांज रहा है.
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