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गाथा गहलौर की: सबने मुंह फेर लिया…

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दीपक कोचगवे
03 जुलाई 2023
Gaya : वैसे तो दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) के जीवित रहते ही उनकी उपेक्षा होने लगी थी. निधन के बाद प्रायः सबने उनके परिवार से मुंह फेर लिया. दशरथ मांझी की पुत्री थीं लौंगिया देवी (Laungia Devi). भागीरथ मांझी और लौंगिया देवी, दोनों के परिवारों में 25 सदस्य हैं. एक-दो को छोड़ सभी मजदूरी करते हैं. उन्हें कोई खास सरकारी सुविधा नहीं मिलती है. जरूरत पड़ने पर सूद पर पैसा लेकर काम चलाना पड़ता है. ऐसी ही गरीबी में जी रही लौंगिया देवी सांस की बीमारी की चपेट में आ 04 दिसम्बर 2020 को दुनिया से रुखसत हो गयी. पैसे की किल्लत की वजह से इलाज नहीं हो पाया. गया जिला प्रशासन ने बसंती देवी (Basanti Devi) की तरह लौंगिया देवी को भी अस्पताल में भर्ती करा अपने कर्त्तव्य का इतिश्री कर लिया.

पैसे नहीं थे श्राद्ध के लिए
कमोबेश ऐसे ही हालात में बसंती देवी की मृत्यु हुई थी. उनके पति भागीरथ मांझी (Bhagirath Manjhi) के पास श्राद्धकर्म के लिए भी पैसे नहीं थे. बोधगया की कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने हाथ बंटाकर श्राद्धकर्म संपन्न करवाया था. बसंती देवी के निधन पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने शोक जताया था. लौंगिया देवी के निधन पर भी वैसी औपचारिकता निभायी थी. इसके अलावा कुछ नहीं किया. परिवार के लोगों का सवाल स्वाभाविक है कि सिर्फ शोक जता देने से क्या मिलेगा? समस्याएं खत्म हो जायेंगी? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दशरथ मांझी के घर जाकर गहरायी समस्याओं का स्थायी निदान निकालना चाहिये.

दशरथ मांझी के परिजन : सहानभूति बस इतनी ही !

टूट गये थे हाथ-पांव
लौंगिया देवी की पोती और गया मांझी की पुत्री पिंकी कुमारी (Pinki Kumari) कुछ साल पूर्व दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थी. हाथ-पांव टूट गये थे. आर्थिक तंगी की वजह से उसका भी ढंग से इलाज नहीं हो पाया. फूस की झोपड़ी में रहने वाले दशरथ मांझी के परिवार में दो ही शिक्षित सदस्य हैं. दशरथ मांझी की पोती और भागीरथ मांझी की पुत्री लक्ष्मी कुमारी (Laxmi Kumari) तथा उसके पति मिथुन मांझी (Mithun Manjhi). लक्ष्मी कुमारी पारा शिक्षक हैं. मिथुन मांझी खेती करते हैं. दिवंगत लौंगिया देवी के बिन्दा मांझी (Binda Manjhi) समेत तीन पुत्र और एक पुत्री हैं, जो गहलौर गांव से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर ईंट-भट्ठे पर काम करते हैं. सबकी जिंदगी दैनिक मजदूरी पर कटती है. भागीरथ मांझी को वृद्धावस्था पेंशन मिलती थी. इधर नहीं मिल रही थी. अब मिलने लगेगी. क्योंकि जदयू (JDU) से जुड़ाव हो गया है.


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मुख्यमंत्री की कुर्सी
2006 में नीतीश कुमार ने पद्मश्री के लिए दशरथ मांझी का नाम अनुशंसित किया था. किस्मत का साथ नहीं मिला. उसी दौरान ‘जनता दरबार’ में पटना आये दशरथ मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ससम्मान बैठाया था. इससे उन्हें नयी पहचान मिली. सरकार ने निधन के बाद गहलौर में उनका स्मारक बनवाया, पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित भी कराया. लेकिन, उनके परिवार के लोगों की फटेहाली-बदहाली दूर करने की कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं की. इलाके का विकास दशरथ मांझी का सपना था. समझ यह कि इससे अन्य परिवारों के साथ उनके परिवार का भी विकास होगा. पर, वैसा कुछ नहीं हुआ.

दे दिया राजनीतिक रंग
हालात ऐसे हैं कि अब दशरथ मांझी के परिवार की आर्थिक तंगी, इससे उबारने में प्रशासन की लापरवाही और तथाकथित लोक कल्याणकारी सरकार की संवेदनशून्यता पर भी फिल्म बनाने की जरूरत हो गयी है. इधर, दशरथ मांझी के असाध्य श्रम को पद्म सम्मान दिलाने का बीड़ा पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) ने उठाया, गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मुलाकात की तो अप्रत्यक्ष रूप से जदयू ने उसे राजनीतिक रंग दे दिया. जीतनराम मांझी को महागठबंधान (Mahagathbandhan) से अलग होने के लिए विवश कर दिया.

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