धंधा है,पर गंदा है: आखिर, कब तक चलेगा यह सिलसिला?
अशोक कुमार
17 जुलाई 2023
Purnia : रौटा हाट (Rauta Haat) की देह की मंडी से एक युवती की बरामदगी से यह सवाल फिर खड़ा हो गया है कि आखिर यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा? इस पर अंकुश लग पायेगा भी या यह इसी तरह समाज को शर्मसार करता रहेगा? पूर्णिया पुलिस की मदद से पूर्वी चंपारण की पुलिस उस अभागन को मंडी से मुक्त करा अपने साथ ले गयी. ऐसा बताया गया कि धंधे से जुड़ीं तीन महिला दलालों ने हसीन ख्वाब में फंसा उसे इस मंडी में लाया था. उन महिलाओं की भी गिरफ्तारी हुई. युवती का अपहरण पूर्वी चंपारण (East Champaran) जिले के पिपरा (Pipra) थाना क्षेत्र से हुआ था.
सीमांचल में हैं अनेक मंडियां
सीमांचल (Seemanchal) में एक नहीं, रौटा जैसी अनेक अघोषित मंडिया हैं. उन्हें देह के धंधे का अड्डा भी कह सकते हैं. ऐसे अड्डों से अपहरण कर देह के धंधे में धकेली गयी युवतियों की अक्सर बरामदगी होती रहती है. दलालों और धंधेबाजों की गिरफ्तारी भी . इसकेे बावजूद धंधे की रफ्तार व रौनक बनी रहती है. किसी भी दृष्टि से ‘कुछ हुआ है’ ऐसा नहीं दिखता है. इसे संवदनहीनता कह सकते हैं. पर, मंडियों में संवेदना रहती कहां है! गंभीर सवाल यह है कि छापामारी, बरामदगी और गिरफ्तारी का क्रम बने रहने के बाद भी धंधेबाजों में कानून का भय क्यों नहीं समाता है? कानून के रखवालों ने ही तो यह भय नहीं मिटा दिया है?
पिल पड़ते हैं फिर पाप में
सीमांचल के विभिन्न जिलों में संचालित ऐसे अवांछित अड्डों की गतिविधियां हमेशा खुर्खियों में रहती हैं. धंधेबाज महिलाओं और युवतियों की खरीद-फरोख्त करने वाले गिरोहों को बेनकाब किया जाता है. कुख्यात धंधेबाज और दलाल सलाखों के पीछे धकेले भी जाते हैं. तब भी धंधे की अनवरतता बनी रहती है. ऐसा इसलिए कि जमानत पर निकलते ही सभी फिर से इस पाप में पिल पड़ते हैं. यही वह चक्र है जिस पर धंधा टिका है. लाख प्रयत्नों के बावजूद इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है.
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दिख रहा बदलाव
इधर के दिनों में सामाजिक स्तर पर इसमें एक बदलाव दिख रहा है. इस रूप में कि देह का जो पुश्तैनी धंधा सीमांचल एवं अन्य जगहों के कुछ घरों में सिमटा था, वह तमाम सीमाओं को लांघ अंतर्प्रांतीय हो गया है. बिहार, पश्चिम बंगाल और असम तक एक ‘कोरिडोर’ (Corridor) सा बन गया है जिसमें ये गंदगियां पसरी दिखती हैं. हाल में पूर्णिया (Purnia) के खुश्कीबाग कटिहार मोड़ (Khushkibagh Katihar Mor) की बदनाम बस्ती से सीतामढ़ी (Sitamarhi) निवासी एक महिला की बरामदगी हुई थी. उससे पहले गुलाबबाग (gulababag) की लखनझड़ी से कई युवतियों को देह के धंधे से मुक्त कराया गया था. अनगढ़, विशनपुर, प्रेमनगर में पुलिस छापामारी करते – करते थक गयी. धंधे की रफ्तार पर कोई असर नहीं पड़ा.
इस अकड़ का तोड़ नहीं
किशनगंज (Kishanganj) के खगड़ा के अड्डे की अकड़ का तो तोड़ ही नहीं. इस अड्डे के लिए कानून, पुलिस और प्रशासन कोई मायने ही नहीं रखता है. बिहार के खगड़ा से पश्चिम बंगाल के पांजीपाड़ा और इस्लामपुर तथा वहां से खगड़ा , धंधे वालियों के बेखौफ आदान- प्रदान का क्रम दिन भर बना रहता है. ऐसा कहा जाता है कि पुलिस प्रशासन की छापेमारियों और धर-पकड़ के बावजूद सीमांचल में इस घिनौने कारोबार पर अंकुश नहीं लगने का बड़ा कारण सीतामढ़ी से भाग कर इस अंचल के विभिन्न हिस्सों में पांव पसार रखा वह संगठित गिरोह है,जो धन के बल पर अपनी करतूतों को विस्तार दे रहा है.
सबके लिए है चिंता की बात
पूर्णिया में रानीपतरा से कटिहार मोड़ (Ranipetra to Katihar Mor) तक कई दलाल सक्रिय हैं. लोगों का कहना है कि इन सब पर शिकंजा नहीं कसा गया तो धंधे पर अंकुश नहीं लग पायेगा. हरदा बाजार की बदनाम बस्ती की संचालिका एक विकलांग महिला है. उसके पति ने कई मुस्टंडों को पाल रखा है. आश्चर्य है कि पुलिस उस ओर कभी रुख नहीं करती है. हैरान करने वाली बात यह भी है कि आमतौर पर पहले यह एक जाति विशेष का पुश्तैनी धंधा था. अब आय का आसान जरिया समझ दूसरी जातियों के लोग भी इससे जुड़ गये हैं. बदनाम बस्तियों में परसती उनकी रईसी इसको विस्तार दे रही है. सरकार और समाज दोनों के लिए यह चिंता की बात है.
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