फरकिया : ‘माय जी थान’ की ऐसी उपेक्षा क्यों ?
राहत रंजन
21 जुलाई 2023
Khagaria : स्थानीय भाषा में इस इलाके को फरकिया कहा जाता है. सहरसा, मुंगेर, बेगूसराय, भागलपुर और मधेपुरा यानी पांच जिलों की संयुक्त सीमा पर बसा है यह फरकिया (Pharakiya) . पहचान खगड़िया जिला की मिली हुई है. खासियत यह कि पिछड़ा-अतिपिछड़ा बहुल इस छोटे से जिले में छोटी-बड़ी सात नदियां बहती हैं- गंगा, कमला बलान, कोशी, कारी कोशी, बूढ़ी गंडक, करेह और बागमती. यह भौगोलिक बनावट इलाके की दुरुहता और दुर्गमता को दर्शाती है. संभवतः यही वह कारण था कि बादशाह अकबर (Emperor Akbar) के नवरत्नों में शामिल टोडरमल (Todermal) ने उस कालखंड में इस क्षेत्र को अलग-थलग छोड़ दिया था. क्यों और कैसे, यह इतिहास के पन्नों में कुछ इस तरह दर्ज है. बादशाह अकबर के आदेशानुसार टोडरमल ने मुगल साम्राज्य की जमीन की पैमाइश करायी थी. पर, लाख कोशिशों के बावजूद नदियों की चंचल-चपल प्रकृति और घने झाड़-झंखाड़ वाले इस क्षेत्र की पैमाइश नहीं हो पायी.
‘फरक किया’ लिख दिया
टोडरमल ने तब मुगल साम्राज्य के मानचित्र में इस इलाके को लाल स्याही से घेर ‘फरक किया’ लिख दिया था.‘फरक किया’ का मतलब अलग किया होता है. वही ‘फरक किया’ कालांतर में फरकिया हो गया. आम समझ में तभी से यह ‘शासनिक सोच’ इसके दुर्भाग्य का वाहक बनी हुई है. बिहार (Bihar) के मानचित्र के मध्य में रहने के बाद भी यह सदियों से फरक है. मुगल साम्राज्य के अवसान के बाद न अंग्रेजी दासता के दौरान हालात में कोई खास बदलाव आया और न स्वतंत्र भारत (Independent India) में इसके फूटे भाग्य को संवारने का सार्थक प्रयास हुआ. हद तो यह कि ‘न्याय के साथ विकास’ के दावे वाले ‘सुशासन’ में भी यह विकास की मुख्यधारा से करीब-करीब अलग है.
जनप्रतिनिधि भी जिम्मेवार
इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि फरकिया की भौगोलिक स्थिति अन्य क्षेत्रों की तुलना में कुछ अधिक विषम-विकट और जटिल है, लेकिन उतना भी नहीं कि इस आधार पर इसे विकास से महरुम रखा जाये. हैरानी की बात यह कि तकरीबन 33 वर्षों से राज्य की सत्ता पिछड़ा वर्ग के हाथ में है तब भी पिछड़ा-अतिपिछड़ा बहुल फरकिया अपनी फूटी किस्मत पर आंसू बहाने को विवश है! इतना ही नहीं, पासवान परिवार के चार सांसद इस जिले के रहे हैं. वर्तमान में तीन है. इसके बावजूद फरकिया का यह हाल! वैसे, इसकी इस नियति के लिए सिर्फ सरकार (Government) ही जिम्मेवार नहीं है, क्षेत्र के जनप्रतिनिधि (Public Representative) भी उतने ही दोषी हैं. इस रूप में कि इसके ‘उद्धार’ के लिए शायद कभी किसी ने कोई ठोस पहल नहीं की, जोरदार आवाज नहीं उठायी.
मां कात्यायनी की कृपा
इसी वंचित-उपेक्षित फरकिया में ‘दूध की देवी’ मां कात्यायनी प्रतिष्ठापित हैं ‘दूध की देवी’ मां कात्यायनी – मां दुर्गा (Maa Durga) का छठा रूप. नवरात्र के छठवें दिन मां दुर्गा के इस रूप की पूजा का विधान है. ऐसी आम धारणा है कि शासन-प्रशासन ने भले इस क्षेत्र को उपेक्षित छोड़ रखा है, पर मां कात्यायनी की कृपा क्षेत्रीय लोगों पर खूब बरस रही है. अभी से नहीं, सदियों से यह निरंतरता बनी हुई है. तभी तो बाढ़ और सुखाड़ का दंश अनवरत झेलने के बावजूद कभी उन्हें दुर्भिक्ष का सामना नहीं करना पड़ता. समृद्धि भले मुंह चिढ़ाती हो, पर खुशहाली हर वक्त खिलखिलाती रहती है.
सबसे बड़ी रेल दुर्घटना
मां कात्यायनी स्थान खगड़िया-सहरसा रेल खंड के बहुचर्चित धमारा घाट स्टेशन के समीप है. यह वही धमारा घाट स्टेशन (Dhamara Ghat Station) है जहां 6 जून 1981 को देश की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी बड़ी रेल दुर्घटना (Train Accident) हुई थी. संभवतः इंजन समेत पूरी ट्रेन बागमती नदी में गिर गयी थी. सैकड़ों लोग हताहत हुए थे. उस वक्त इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) प्रधानमंत्री थीं. पीड़ित परिवारों को सांत्वना देने पहुंची थीं. उस क्रम में उन्होंने मां कात्यायनी का दर्शन एवं पूजन किया था. बागमती और कोशी नदियों पर सड़क पुल बनाने की बात कही थी. धमारा घाट स्टेशन 19 अगस्त 2013 को भी सुर्खियों में आया था.
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काफी कष्टकर है पहुंचना
उस दिन मां कात्यायनी (Maa Katyayani) की पूजा करने मंदिर जा रहे 28 श्रद्धालु राजरानी एक्सप्रेस ट्रेन (Rajrani Express Train) से कट गये, सबकी मौत हो गयी. उस हादसे के बाद धमारा घाट स्टेशन पर ऊपरी रेल पुल का निर्माण हुआ. इसके अलावा शायद और कुछ नहीं. स्थानीय स्तर पर ‘माय जी थान’ की पहचान रखने वाला मां कात्यायनी स्थान सहरसा (Sarhasa) एवं खगड़िया जिलों की सीमा पर स्थित रोहियार पंचायत के बंगलिया गांव (धमारा घाट) में है. यह गांव खगड़िया जिले के चौथम प्रखंड के तहत आता है, थाना मानसी है. ‘माय जी थान’ तक पहुंचना काफी कष्टकर है, पर आस्था असीम रहने के कारण हजारों की संख्या में श्रद्धालु वहां पहुंचते हैं.
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