रामवृक्ष बेनीपुरी : शब्दों से तौला गेहूं और गुलाब को
अश्विनी कुमार आलोक
02 जनवरी 2024
‘… उसका प्रथम संगीत निकला, जब उसकी कामिनियां गेहूं को उखल और चक्की में पीस-कूट रही थीं. पशुओं को मारकर, खाकर ही वह तृप्त नहीं हुआ, उनकी खाल का बनाया ढोल और उनकी सींग की बनायी तुरही. मछली मारने के लिए जब वह अपनी-अपनी नाव में पतवार का पंख लगाकर जल पर उड़ा जा रहा था, तब उसके छप-छप में उसने ताल पाया, तराने छेड़े. बांस से उसने लाठी ही नहीं, बंशी भी बनायी. …’ गेहूं किसी पिपासा का आदिम उद्वेग नहीं, प्रतिहिंसा और ‘प्रजातीय दंभ’ की असंवेदी उद्दंडता भी है. शरीर को अस्थिर करने वाली भूख का आह्वान करता हुआ गेहूं प्रकृति के प्रति अविनम्रता से प्रस्तुत होने वाले मनुष्य का वह विकट व्यवहार भी है, जो सुविधाएं तलाशता है, परहित का ध्यान नहीं करता, समाज के समावेशी स्वरूपों के लिए व्यवधान रचता है.
पेट और पाखंड
सबसे विकट कि वह सौंदर्य, संगीत एवं प्रकृति के संसर्ग का विरोध करता है. कला एवं कलाकारों को आसन तथा कुर्सी के आगे नत होने को विवश करता है. लेकिन, पेट और पाखंड के विरुद्ध खड़ी प्रकृति के संदर्ग में जीनेवाली कला सुगंध का सातत्य सहेजना नहीं छोड़ती और इस प्रकार वह ‘गुलाब’ के गुणगान का दायित्व निर्वहन करती हुई सदियों से जीवित और जीवंत है. कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी (Ramvriksha Benipuri) ने गेहूं और गुलाब को अपने शब्दों से तौला. उन्होंने विकास की वैज्ञानिक अतिवादी का गेहूं को प्रतीक बताकर सौंदर्यशील, सहजता एवं मानसिक स्वच्छता के प्रतीक गुलाब का गुणगान किया. यह राजनीति की स्वेच्छाचारिता (Volunteerism) का भी विरोध था और मनुष्यत्व के प्रति बढ़ते व्यभिचार (Debauchery) का भी.
विश्वास भी था और अनुराग भी
रामवृक्ष बेनीपुरी ने गद्य की भाषा को भारतीयता की तरह सहज और लोकमानस की तरह सरल बनाया, छोटे समझे जाने वाले विषयों को छोटे वाक्यों की छटा देकर सजा दिया. यह विषय का विश्वास भी था और देश की अंतिम पंक्ति के लोगों के प्रति अनुराग भी. इसी अनुराग में उन्होंने भारत की संपूर्ण भारतीयता का भूगोल (Geography) भी लिखा, उसके इतिहास (History) की अर्थवत्ता बताकर मर्यादा के संदर्भ भी जोड़े और स्वतंत्र भारत के विकास एवं उल्लास के लिए देखे जाने वाले सपनों, सद्भाव-शांति के समाजिक समन्वय एवं जटिल समस्याओं के समाधान का साहित्य रचा. साहित्य ऐसा कि विधाओं ने पहचान पायी. एक-एक शब्द चित्र की तरह दिखता-बोलता हुआ प्रतीत हुआ.
न बेनीपुरी रहे न बेनीपुर
हिन्दी साहित्य (Hindi Literature) में ‘कलम के जादूगर’ नाम से प्रसिद्ध रामवृक्ष बेनीपुरी मुजफ्फरपुर जिले में बागमती के प्रकोपों से संत्रस्त जिस गांव के निवासी थे, उसका नाम है बेनीपुर. आज बेनीपुरी जी नहीं हैं, तो वह गांव बेनीपुर भी न रहा. बाढ़ और कटाव की अनेक चोटों से लड़ता हुआ वह गांव रेत और पानी में समाधिस्थ हो गया. कोई एक दशक पूर्व उस गांव ने हार मान ली और धीरे- धीरे बांध के बहाने आबादी वाले मानचित्र से बहिष्कृत (Excluded) भी हो गया. लेकिन, रामवृक्ष बेनीपुरी का वह गांव उनके शब्दों की तरह सत्ता से अधिकार लेने में सफल भी हो गया. मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से कोई बीस किलोमीटर दूर बागमती नदी के किनारे नया बेनीपुर बसाया गया है!
कहां रहते हैं वंशज
पुराने बेनीपुर में बचे हुए कुछ घरों को बागमती की कृपा ने अस्तित्व में रखा है, पर रामवृक्ष बेनीपुरी का वह घर ध्वस्त-सा हो गया है, उसकी खिड़कियों तक पर मिट्टी और रेत का कब्जा है. सत्ता के संपन्न लोगों से आशा की जा रही है कि उस घर को बचा लिया जाये और जीर्णोद्धार (Renovation) कर हिन्दी साहित्य के स्वनामधन्य लेखक का आदिम-पैतृक स्वारस्य जीवित रखा जाये. लेकिन, इसमें व्यावहारिक कठिनाइयां हैं. तब, सवाल उठता है कि रामवृक्ष बेनीपुरी के वंशज कहां रहते हैं और किस हाल में हैं? रामवृक्ष बेनीपुरी के कुल पांच बच्चे हुए, जिनमें चार बेटे और एक बेटी थी.
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वित्तरहित की भेंट चढ़ गयी
बड़े बेटे देवेन्द्र बेनीपुरी भगवानपुर (वैशाली) के एक महाविद्यालय में प्राध्यापक थे. उनके दिन सरकार की वित्तरहित शिक्षा नीति (Unfunded Education Policy) की भेंट चढ़ गये. देवेन्द्र बेनीपुरी के बच्चे सिलीगुड़ी और पटना में रहते हैं. दूसरे बेटे जितेन्द्र बेनीपुरी वायु सेना में स्क्वाड्रान लीडर थे. इनके बाल-बच्चे अमेरिका एवं बंगलोर में रहते हैं. तीसरे बेटे थे प्रो. महेन्द्र बेनीपुरी, जो समदयालु सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर में जंतु विज्ञान के प्राध्यापक थे. उनके एक बेटे राजेन्द्र गांधी की असमय मृत्यु हो गयी थी. एक बेटी थीं प्रभा बेनीपुरी, वह रामवृक्ष बेनीपुरी महिला महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर में प्राचार्य थीं, अब वह भी न रहीं.
पटना का घर भी बिक गया
प्रभा बेनीपुरी के पति महंथ श्यामसुंदर दास सीतामढी से विधायक और सांसद थे. उनके बेटे महंथ राजीव रंजन दास मुजफ्फरपुर में रहते हैं. अर्थात रामवृक्ष बेनीपुरी का कोई भी वंशज बेनीपुर में नहीं रहता. लेकिन, अन्य अनेक साहित्यकारों के वंशज अब अपने घर-परिवार में झांकने भी नहीं आते. रामवृक्ष बेनीपुरी के बाहर रहनेवाले प्रायः सभी वंशज साल में उनके जन्मदिवस और पुण्यतिथि में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए आते रहते हैं. रामवृक्ष बेनीपुरी जिन दिनों विधायक थे, पटना (Patna) के श्रीकृष्णपुरी में एक घर लिया था. अफसोस कि बीते वर्ष उसे उनके परिजनों ने बेच दिया.
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