पोद्दार रामावतार अरुण : इस राह से कोई गुजरा नहीं…
अश्विनी कुमार आलोक
10 फरवरी 2024
पोद्दार रामावतार अरुण बड़े साहित्यकारों एवं प्रसिद्ध राजनीतिज्ञों से घिरे रहे. उनके जीवित रहने तक लेखकों-कवियों के लिए पेठिया गाछी तीर्थ-क्षेत्र की तरह था. वरिष्ठ पत्रकार और ‘समय सुरभि अनंत’ के संपादक नरेन्द्र कुमार सिंह पोद्दार रामवतार अरुण से 1984-85 से जुड़े रहे. नरेन्द्र कुमार सिंह मूलतः समस्तीपुर के विभूतिपुर के निवासी हैं. उन्होंने बताया कि वह जब पहली बार उनसे मिले थे, तो अपने संपादन में निकली पुस्तक भेंट कर उनसे आशीर्वाद लिया था. जब नरेन्द्र कुमार सिंह ने ‘समय सुरभि अनंत’ का प्रकाशन शुरू किया, तो दिनकर (Dinkar), महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) और नागार्जुन (Nagarjuna) पर विशेषांक निकालने के बाद पोद्दार रामावतार अरुण पर विशेषांक प्रकाशित करना चाहते थे. पर, यह हो न सका.
‘अक्षर गंधा’ ने विशेषांक निकाला
हुआ यह कि 4 नवम्बर 1999 को साहित्यकार एवं प्रशासनिक अधिकारी जियालाल आर्य साहित्यकार संसद द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए समस्तीपुर गये थे. 5 नवम्बर को ‘राजभाषा’ पत्रिका के संपादक कुणाल कुमार, वरिष्ठ कवि-लेखक डा. शिवनारायण तथा साहित्यकार संसद के अध्यक्ष डा. हरिवंश तरुण के साथ पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण (Poddar Ramavatar Arun) से मिलने गये थे. उनसे बातचीत करते हुए पोद्दार रामावतार अरुण को दूसरी बार पक्षाघात हुआ और अगले दिन उन्होंने अस्पताल में दम तोड़ दिया. उनके देहांत के बाद डा. नरेश कुमार विकल एवं योगेन्द्र पोद्दार के सहयोग से डा. हरिवंश तरुण ने अपने द्वारा संपादित पत्रिका ‘ अक्षर गंधा’ का विशेषांक प्रकाशित (Published) किया. वर्ष 2000 के जून माह में प्रकाशित इस पत्रिका के अतिरिक्त पोद्दार रामावतार अरुण जैसे महाकवि के जीवन एवं साहित्य-अवदान को मूल्यांकित (Appraised) करने वाला कोई लेखकीय आयोजन या प्रकाशन नहीं हो सका.
1966 में मिला पद्मश्री सम्मान
जिन दिनों बिहार में डा. जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री थे और एआर किदवई राज्यपाल, उन दिनों पोद्दार रामावतार अरुण विधान पार्षद (Legislative Councilor) बनाये गये थे. डा. राधाकृष्णन के राष्ट्रपतित्व काल में 1966 में उन्हें ‘पद्मश्री’ का सम्मान दिया गया था. इनके अतिरिक्त वह फिल्म प्रमाणन बोर्ड में भी सदस्य रहे, उन्हें दर्जनभर बड़े पुरस्कार दिये गये. लेकिन, साहित्य एवं समाज के कृतघ्न षड्यंत्रों ने इस महाकवि को इस लायक भी नहीं समझा कि पेठिया गाछी या आसपास के इलाकों में इनके नाम पर कोई चौक-चौराहा या मार्ग ही नामित किया जाये. इस संबंध में डा. नरेश कुमार विकल एवं ‘दूर देहात’ के संपादक योगेन्द्र पोद्दार ने समस्तीपुर के जिलाधिकारी से निवेदन किया था.
नहीं हुआ नामकरण
किंतु जिलाधिकारी पर दबाव पड़ने लगा कि पेठिया गाछी का नामकरण पोद्दार रामावतार अरुण के नाम पर करने की बजाय राजनीति क्षेत्र के एक बाहुबली पर किया जाये. बात बढ़ने लगी, तो जिलाधिकारी ने इस मामले को किनारे कर देना ही बेहतर समझा. बाद में राज्यसभा सदस्य एवं कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) के सुपुत्र रामनाथ ठाकुर ने भी इस संबंध में पत्र लिखकर जिलाधिकारी (District Magistrate) से मांग की कि पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण के नाम पर पेठिया गाछी वाली सड़क का नामकरण किया जाये, लेकिन वह भी नहीं हो सका.
उपेक्षा का दंश
कवि डा. नरेश कुमार विकल का मानना है कि साहित्य के प्रति रुचि रखने वाले डा. जियालाल आर्य जैसे आईएएस अधिकारी समस्तीपुर के जिलाधिकारी होते, तो पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण की स्मृति को सरकार की उपेक्षा का दंश नहीं झेलना पड़ता. इधर के दिनों में पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण के घर की खोजबीन करते हुए कवि निवास तक जाने वाला मैं दूसरा आदमी था. पोद्दार रामावतार अरुण के पुत्र किरण शंकर पोद्दार ने बताया कि समस्तीपुर के सदर एसडीओ रवीन्द्र कुमार दिवाकर की गाड़ी दो माह पूर्व पेठिया गाछी के ‘कवि निवास’ के सामने रुकी थी.
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पुस्तकालय का आश्वासन
रवीन्द्र कुमार दिवाकर ने किरण शंकर पोद्दार को आश्वासन दिया था कि महाकवि की पुण्यतिथि के अवसर पर नवम्बर में समस्तीपुर जिला प्रशासन की ओर से साहित्यिक कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें श्रद्धांजलि देने की परंपरा शुरू की जायेगी. लेकिन, यह भी नहीं हुआ. किरण शंकर पोद्दार महाकवि पिता की पुस्तकों और पांडुलिपियों (Manuscripts) को सुरक्षित नहीं कर पा रहे हैं. इस संबंध में उन्होंने एसडीओ से भेंट की, तो पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण के नाम पर एक पुस्तकालय स्थापित करने का आश्वासन (Assurance) मिला.
विलुप्त हो रही विरासत
पेठिया गाछी की सड़क पर बिकते मसालों की छौंक और व्यावसायिक व्यवहारों की प्रपंचकारी हवा के बीच कवि रामावतार अरुण का ‘कवि निवास’ अपनी पहचान बचा पाने में असफल हो रहा है. भाइयों के बंटवारे में घर बंट रहा है, कवि की विरासत विलुप्त (Legacy Extinct) हो रही है. सड़क, पेठिया गाछी और महाकवि की किताबें किसी रुचिवान उद्धारक की अरसे से बाट जोह रही हैं-
मैं एक सदी से बैठी हूं
इस राह से कोई गुजरा नहीं
कुछ चांद के रथ तो उतरे थे
पर रथ से कोई उतरा नहीं.
(समाप्त)
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