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तरस गये… दूसरों को तरसाने वाले!

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विष्णुकांत मिश्र
01 अप्रैल 2024

Patna : कबीर का काफी चर्चित पद्यांश है – ‘माया महाठगिनी हम जानी…’ यहां उसकी व्याख्या की जरूरत नहीं है. रामचंद्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी सिंह (RCP Singh) और पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) के वर्तमान राजनीतिक हालात पर नजर दौड़ा लीजिये, सब कुछ खुद-ब- खुद समझ में आ जायेगा. जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सत्ता को खुली चुनौती देकर आरसीपी सिंह और लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान (Chirag Paswan) को ‘राजनीतिक रूप से ‘टूअर’ बना पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) कितने आत्ममुग्ध हुए थे! उस दरमियान पांव जमीन पर नहीं दिखते थे उनके. हाव- भाव और बात – व्यवहार ऐसा कि उनके सामने नीतीश कुमार और चिराग पासवान की कोई बिसात ही नहीं हो.

कहीं के नहीं रह गये
प्रदर्शन ऐसा कि जदयू (JDU) का जनाधार आरसीपी सिंह और लोजपा (LJP) की लोकप्रियता पशुपति कुमार पारस की वजह से ही है. जबकि हकीकत यह थी कि दोनों अपनी-अपनी पार्टी पर अमरबेल की तरह छाये थे. इन दोनो कथित जड़विहीनों की पीठ पर हाथ रख भाजपा (B J P) नेतृत्व ने तब के राजनीतिक हालात में स्वार्थ साधने के लिए उनके दिमाग को आसमान पर चढ़ा दिया. ऐसा कि बदले हालात में आसमान से गिरने के बाद दोनों कहीं के नहीं रह गये हैं. विडंबना देखिये, जो उम्मीदवार तय करते थे, जिनके आवास पर उम्मीदवारी चाहने वालों की भीड़ लगी रहती थी, आज खुद एक अदद सीट के लिए तरस गये, किसी ने भी घास नहीं डाली.

आश्वासन मिला था
पहले पशुपति कुमार पारस की ‘दुर्गति’ के बारे में जानिये. चिराग पासवान से दगाबाजी कर लोजपा के चार सांसदों को झोली में डाल इठला रहे थे. राजनीति ने ऐसी पटकनी दी कि सिर्फ उनका ही नहीं, साथ के चारो सांसदों के भी दिमाग चक्करघिन्नी बन गये. किसी का कोई ठौर ठिकाना नहीं रह गया. बड़ी मशक्कत के बाद उनमें से सिर्फ एक के दिन फिरते दिख रहे हैं. ऐसी चर्चा हुई थी कि चिराग पासवान के इन्हें दूर रखने की जिद ठान लेने पर पशुपति कुमार पारस को भाजपा नेतृत्व का कुछ आश्वासन मिला था. प्रतिष्ठित पद का आश्वासन. विश्लेषकों की समझ है कि राजनीति में अपनी ‘जड़़विहीनता’ को देखते व समझते हुए चिराग पासवान को ललकारने की बजाय उन्हें भाजपा नेतृत्व के आश्वासन पर भरोसा कर लेना चाहिये था. उस आश्वासन में उनके और सांसद भतीजा प्रिंस पासवान (Prince Paswan) के भविष्य की गारंटी थी. इससे कुछ न कुछ भाव बना रहता. खोखले जनाधार के भ्रमजाल में उन्होंने सब कुछ गंवा दिया. खैर देर से ही सही, पशुपति कुमार पारस की सद्बुद्धि लौट आयी. नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व को फिर से स्वीकार कर राजग से जुड़े रहने की उन्होंने घोषणा कर दी.


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अरमानों पर पानी फिर गया
बात अब रामचन्द्र प्रसाद सिंह की जिन्हें राजनीति के लोग संक्षेप में आरसीपी सिंह कहते हैं. याद कीजिये, नीतीश कुमार से नाता टूटने के बाद आरसीपी सिंह हुलस कर भाजपा में शामिल हुए थे. वह भाजपा और जदयू में तनातनी का दौर था. भाजपा में खूब आवभगत हो रहा था. राज्यसभा (Rajya Sabha) की सदस्यता और मंत्री-पद के दोहराव की उम्मीदें कुलांचे भर रही थीं. पर, इसे उनका दुर्भाग्य ही कहेंगे कि मनोकामना पूर्ण होती उससे पहले भाजपा और जदयू की सियासी शत्रुता समाप्त हो गयी. दोनों पूर्व की तरह साथ हो गये. नतीजतन आरसीपी सिंह के अरमानों पर सैंकड़ों घड़ा पानी पड़ गया.

भजन गा रहे हैं मंदिर में !
यह जान कर हैरानी होगी कि राज्यसभा की सदस्यता की उनकी आस तब भी बनी हुई थी, जो हालिया चुनाव में टूटी. आखिरी टकटकी लोकसभा चुनाव पर थी. आरसीपी सिंह मुंगेर (Munger) या नालंदा (Nalanda) से उम्मीदवारी चाहते थे. चाहत पूरी नहीं हुई. भाजपा और जदयू के सभी उम्मीदवार घोषित हो गये, किसी की भी सूची में उनका नाम न रहना था, न रहा. हद तो यह कि बीच के दिनों में भाजपा में अप्रत्यक्ष रूप से बेइज्जती- दर – बेइज्जती तो हुई ही, इधर महा बेइज्जती इस रूप में कर दी गयी कि संसदीय चुनाव (parliamentary elections) के लिए घोषित पार्टी के 40 स्टार प्रचारकों में उन्हें नहीं रखा गया. आगे क्या होता है, यह अभी नहीं कहा जा सकता, फिलहाल वह, नालंदा जिला स्थित अपने पैतृक गांव में खुद के द्वारा बनाये मंदिर में भजन गा रहे हैं !

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