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एआईएमआईएम : मजबूरी का नाम … अख्तरूल ईमान!

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अशोक कुमार
06 अप्रैल 2024

Purnea : 2019 के संसदीय चुनाव (Election) में मुस्लिम बहुल किशनगंज में सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) को प्राप्त तकरीबन तीन लाख मतों ने राजनीति को चौंका दिया. उन मतों के रूप में सीमांचल में बढ़ रहे प्रभाव की चर्चाओं पर विराम लगा नहीं था कि उसी साल किशनगंज (Kishanganj) विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में एआईएमआईएम की अप्रत्याशित जीत हो गयी. इससे तुष्टिकरण की राजनीति (Politics) करने वालों के पांव ‌तले की जमीन खिसक गयी. कामयाबी का क्रम वहीं नहीं रुका. 2020 के‌ विधानसभा चुनाव में एक नहीं, पांच सीटों पर जीत दर्ज कर एआईएमआईएम ने खुद को सीमांचल (Simanchal) में बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित कर दिया. हालांकि, बाद के दिनों में इसके पांच में से चार विधायक राजद के प्रलोभन में फंस ‘पथभ्रष्ट’ हो गये. वैसे तो सच अब तक रहस्य ही है, पर कहा जाता है कि उन विधायकों को फांसने का जाल राजद का नहीं, जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार द्वारा बुना हुआ था.

भंवर में भविष्य
बहरहाल, तात्कालिक लाभ के लिए विधायकों के दलबदल से एआईएमआईएम को कितना नुकसान हुआ, हुआ भी या नहीं, इसका निर्धारण 2024 के संसदीय चुनाव (Election) में हो जायेगा. पर, एकाध को छोड़ अन्य बागी विधायकों का भविष्य भंवर में फंस गया है, इस आशंका को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता. इन सबके बीच इस सवाल पर भी खूब बहस हो रही है कि सीमांचल (Simanchal) में एआईएमआईएम के जनाधार को जो विस्तार मिला है और मिल रहा है वह पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल ईमान (Akhtarul Iman) की मेहनत का फल है या पार्टी सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी की रणनीतिक सफलता है? इस पर मतभिन्नता तो है, पर मतों के रूप में फायदा मिले या नहीं, मुस्लिम युवाओं में असदुद्दीन ओवैसी के प्रति गजब की दीवानगी दिख रही है.

यही है दीवानगी
विश्लेषकों की समझ में जनाधार के विस्तार के मूल में यही दीवानगी है. लेकिन, कुछ लोगों का कहना है कि चुनावों के दौरान अख्तरूल ईमान की कथित तानाशाही प्रवृति और रूखे व्यवहार उस दीवानगी को सुस्त व कुंद कर देती है. सामान्य समझ में यही वह मुख्य कारण है कि मजबूत जनाधार वाले मुस्लिम बहुल किशनगंज संसदीय क्षेत्र में पूरा जोर लगाने के बाद भी पार्टी को कामयाबी नहीं मिल पा रही है. वैसे, इस सच को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी संभाल रहे अख्तरूल ईमान संगठन की मजबूती के लिए सदैव सक्रिय रहते हैं,‌ परिश्रम भी खूब करते हैं. परन्तु, आम धारणा है कि अकड़ भरी उनकी कार्यशैली और अहंकार भरा व्यवहार अधिसंख्य कार्यकर्ताओं को अखड़ जाता है.

आरोप-दर-आरोप
कुछ पीछे चलें, तो कई दमदार नेताओं के पार्टी छोड़ने के प्रकरणों से इसकी पुष्टि हो जाती है. एआईएमआईएम के अररिया जिला महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष पूर्व जिला पार्षद गुलशन आरा (Gulsan Ara) ने प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल ईमान पर दुर्व्यवहार और तानाशाही का आरोप मढ़ते हुए पार्टी छोड़ दी थीं. कमोबेश ऐसे ही आरोप लगाते हुए किशनगंज के पूर्व विधायक कमरूल होदा (Kamrul Hoda) एआईएमआईएम से अलग हो गये. उसके बाद पार्टी के चार विधायकों ने भी अख्तरूल ईमान की अव्यावहारिक कार्यशैली को कोसते हुए एकमुश्त राजद की चादर ओढ़ ली. बायसी विधानसभा क्षेत्र से एमआईएम का एक बार उम्मीदवार रहे समाजसेवी गुलाम सरवर (Gulam Sarwar) ने पत्नी वाहिदा सरवर (Vahida Sarwar) को पूर्णिया जिला परिषद के अध्यक्ष पद पर आसीन करा राजनीति में अपनी अलग राह बना ली. हालांकि, एमआईएम से अलग होने के बाद उन्होंने किसी दूसरे दल का दामन नहीं थामा है.


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धकेल दिया हाशिये पर
बताया जाता है कि एमआईएम सुप्रीमो सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) का वह बहुत सम्मान करते हैं लेकिन पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल ईमान उन्हें फूटी आंखों नहीं सुहाते हैं. अमौर विधानसभा क्षेत्र में प्रख्यात समाजसेवी डा. अबू सायम ने अपना सब कुछ न्योछावर कर एमआईएम के लिए जमीन तैयार की थी, 2020 के‌ विधानसभा चुनाव में उन्हें धकिया कर अख्तरूल ईमान (Akhtarul Iman) स्वयं विधायक बन गये. फिर धीरे – धीरे डा. अबू सायम (Dr Abu Sayam) को हाशिये पर धकेल दिया गया. चर्चाओं में यह बात कही जाती है कि बायसी विधानसभा क्षेत्र के गुलाम सरवर और अमौर विधानसभा क्षेत्र के डा. अबू सायम सरीखे लोकप्रिय नेताओं को दरकिनार कर दिये जाने के कारण ही अख्तरूल ईमान संसद की सीढियां नहीं चढ़ पा रहे हैं.

कोई विकल्प नहीं
इधर के दिनों में कुछ बड़े नेताओं के जुड़ाव से एमआईएम को मजबूती मिली है. जुड़ने वाले ऐसे नेताओं में किशनगंज जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष तसीर उद्दीन (Tasir Uddin) भी हैं जो कुछ‌ साल पूर्व एमआईएम से अलग हो गये थे. बहरहाल, तमाम प्रतिकुलताओं के बाद भी अख्तरूल ईमान संसद असदुद्दीन ओवैसी के प्रिय बने हुए हैं तो सिर्फ इस वजह से कि एआईएमआईएम को पार्टी संगठन के संचालन के लिए बिहार में अख्तरूल ईमान से बेहतर कोई विकल्प नहीं दिख रहा है. सीमांचल (Simanchal) की जनता को बखूबी मालूम है कि बुरा है भला है ,जैसा भी है अख्तरूल ईमान सरीखा बेबाक अल्पसंख्यक नेता सीमांचल क्या, संपूर्ण बिहार (Bihar) में दूसरा कोई नहीं है.

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