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तारापुर उपचुनाव : इस वजह से बना ही हुआ है भितरघात का खतरा

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निरंजन कुमार मिश्र
24 अक्तूबर, 2021

TARAPUR (MUNGER): भगवान न करे, इनके साथ भी वैसा ही हो, जैसा उनके साथ हुआ! याद कीजिये, 2020 के विधानसभा चुनाव (Assembly Election) से कुछ समय पूर्व ऐसा ही सनसनीखेज मिलन समारोह हुआ था. उस समारोह के बाद विधानसभा का चुनाव हुआ, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) फिर से सत्ता में आ गये और उसके साथ ही वह (शामिल होने वाले) विस्मृत कर दिये गये.

विधानसभा चुनाव में गुंजाइश नहीं थी. आश्वासन विधान पार्षद बनाने का मिला, जो पूरा नहीं हुआ. कोई सांगठनिक पद भी नहीं मिला. बल्कि जिस गर्मजोशी से आमंत्रित कर पार्टी में शामिल कराया गया था, अघोषित तौर पर लगभग वैसे ही तीव्र उपेक्षा भाव से ‘तिरस्कृत’ कर दिया गया.

तब अपनी पहचान नहीं बनती
वह तो पिता की प्रथम पुण्यतिथि पर बड़ा आयोजन कर राजनीति को अपने वजूद का अहसास करा दिया, अन्यथा राजनीति की स्मृति से ही वह उतर जाते. लोग इतना भर जानते-पहचानते कि कर्पूरी ठाकुर युग के सरल-सहज समाजवादी नेता डा. रघुवंश प्रसाद सिंह (Dr Raghubansh Prasad Singh) के पुत्र सत्यप्रकाश सिंह (Satyaprakash Singh) हैं. इससे आगे शायद अपनी कोई पहचान नहीं बन पाती.

JDU में उनके ‘उपेक्षित’ रहने की बाबत निकट के लोगों का मानना है कि पार्टी नेतृत्व ने छल किया. विधान परिषद की सदस्यता का आश्वासन भूला हाशिये पर डाल दिया. सत्यप्रकाश सिंह को जदयू नेतृत्व का आश्वासन क्या मिला क्या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता.


यह ‘बेमौसम मिलन’ क्यों? इससे रोहित चौधरी को कुछ हासिल हो पायेगा? जवाब नकारात्मक ही हो सकता है. इसलिए कि राज्यसभा या विधानपरिषद की सदस्यता मिलने की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं है.


कोई बदलाव नहीं
आश्वासन मिला तो उस पर अमल क्यों नहीं हुआ, यह भी नहीं. बहरहाल, मुख्य बात यह है कि उनके प्रति पार्टी नेतृत्व के रुख में अब भी कोई विशेष बदलाव नहीं आया है. भविष्य अनिश्चितताओं में झूल रहा है.

लगभग वैसी ही हड़बड़ाहट में ठीक उपचुनाव के बीच रोहित चौधरी (Rohit Chaudhary) को जदयू में शामिल कराया गया. उपचुनाव दो विधानसभा क्षेत्रों में हो रहे हैं. तारापुर (Tarapur) और कुशेश्वर स्थान (Kusheshwar Sthan) में. तारापुर एक जमाने में उनका पुश्तैनी गढ़ था. डा. रघुवंश प्रसाद सिंह की तरह रोहित चौधरी के पिता पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी (Shakuni Chaudhary) भी बिहार के बड़े सियासी चेहरा रहे हैं. तारापुर से विधायक निर्वाचित होते रहे हैं. रोहित चौधरी के छोटे भाई विधान पार्षद सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली राजग सरकार में भाजपा कोटे से मंत्री हैं.

लम्बे समय से हैं प्रयासरत
खगड़िया (Khagaria) जिले के परबत्ता (Parbatta) विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले सम्राट चौधरी ही सामान्य समझ में शकुनी चौधरी के राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं. वैसे, पिता की सियासी सक्रियता में हमेशा साथ रहे रोहित चौधरी भी अपनी पहचान एवं सम्मान के लिए लंबे समय से प्रयासरत हैं.

2015 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बेहतरीन अवसर उपलब्ध हुआ भी. खगड़िया से पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (Jitanram Manji) की पार्टी ‘हम’ की उम्मीदवारी के रूप में. उस वक्त ‘हम’ BJP के साथ राजग में थी. अभी JDU के साथ राजग में है. रोहित चौधरी दुर्भाग्यवश उस अवसर को सफलता में बदल नहीं पाये.


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जदयू में भी भिड़ायी थी जुगत
तारापुर के उपचुनाव में दलीय उम्मीदवारी के लिए उन्होंने खूब हाथ-पांव चलाये. शकुनी चौधरी और सम्राट चौधरी की नीतीश कुमार से संबंधों में कटुता से संभावना सीमित रहने के बावजूद जदयू में भी जुगत भिड़ायी. उस वक्त बात बननी नहीं थी, नहीं बनी. महागठबंधन में राजद और कांग्रेस में ताक-झांक कर संभावना टटोली. निराशा पसरी नजर आयी.

आखिरी प्रयास लोजपा (रामविलास) की उम्मीदवारी के लिए हुआ. उम्मीदों का चिराग वहां भी नहीं जल पाया. चतुर्दिक अंधकार के बीच निर्दलीय मैदान में उतरने की चर्चा पसरी. वह भी निराधार निकली. फिर भितरघात की बातें होने लगीं. इन्हीं चर्चाओं-आशंकाओं के बीच रोहित चौधरी का अचानक जदयू से जुड़ाव हो गया. लोग चकित रह गये.

रोहित चौधरी जब जदयू में शामिल हुए.

नीतीश भी नहीं रहे समझ
मंगलवार 19 अक्तूबर को हुए इस ‘बेमौसम मिलन’ पर राजनीति भी चकरा गयी. और की बात छोड़ दें, उनका जुड़ाव जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार की सहमति से ही हुआ होगा, पर वर्तमान हालात में इसका गणित वह (नीतीश कुमार) भी नहीं समझ पा रहे हैं.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो कुशवाहा (Kushwaha) मतों में बिखराव रोकने के लिए यह सब जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajiv Ranjan Singh urf Lalan Singh) की पहल पर हुआ. वैसे, रोहित चौधरी के जुड़ने या नहीं जुड़ने से कुशवाहा मतों पर कोई खास असर न पड़ने वाला था और न पड़ेगा. इसलिए कि स्वभावतन सब एकजुट हैं.

एकजुटता में अगर-मगर नहीं
इसकी झलक तारापुर के पंचायत चुनाव परिणामों में दिख जाती है. जिला परिषद की दोनों सीटों और कुल दस पंचायतों में से पांच में मुखिया पद पर कुशवाहा समाज के ही लोग काबिज हुए हैं. इससे स्पष्ट है कि इस समाज की एकजुटता में कोई अगर-मगर नहीं है.

ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि तब यह ‘बेमौसम मिलन’ क्यों? इससे रोहित चौधरी को कुछ हासिल हो पायेगा? जवाब नकारात्मक ही हो सकता है. इसलिए कि राज्यसभा या विधानपरिषद (Vidhan Parishad) की सदस्यता मिलने की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं है.

उम्मीद 2025 के चुनाव पर
मई-जून 2022 में द्विवार्षिक चुनाव होंगे. तीन-चार सीटें जदयू के हिस्से में जायेंगी. आश्वासन पाये लोगों की कतार इतनी लंबी है कि इनकी गुंजाइश शायद ही बन पायेगी. उपचुनाव में जदयू की जीत हुई, तो मन बहलाने के लिए कोई सांगठनिक पद मिल जा सकता है. संभावना ले-देकर 2025 के विधानसभा चुनाव पर टिक जाती है.

वह भी जदयू प्रत्याशी राजीव कुमार सिंह (कुशवाहा) की तकदीर नहीं चमक पायी तब. उपचुनाव में वह जीत गये तब उनकी (रोहित चौधरी) वह संभावना भी समाप्त हो जा सकती है. इस संभावना को बनाये रखने के लिए उपचुनाव में उनकी क्या भूमिका हो रही होगी इसे आसानी से समझा जा सकता है.

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