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तारापुर उपचुनाव : इस कारण चकरा रहे पंडितों के दिमाग

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रंजीत विद्यार्थी
25 अक्तूबर, 2021

TARAPUR (MUNGER). तारापुर उपचुनाव में JDU और RJD के बीच आमने-सामने की टक्कर है. वैसे, इसे राजग और महागठबंधन का मुकाबला कहा जा सकता है. थोड़ा अगर-मगर के साथ दोनों के समर्थक सामाजिक समूहों की गोलबंदी उसी अनुरूप है. दोनों गठबंधनों से मतदाताओं का कुछ तबका टूटा है तो कुछ जुड़ा भी है. लगभग बराबर के महासंग्राम में बाजी किसके हाथ लगेगी, इसका आकलन करना कठिन है. सामान्य लोगों की बात दूर, राजनीति के बड़े-बड़े पंडितों के दिमाग भी चकरा रहे हैं.

यह सच है कि चुनाव की अपनी परंपरागत लीक से हट राजद ने वैश्य बिरादरी के अरुण साह को उम्मीदवारी दे जदयू का गणित उलझा दिया है. मुस्लिम और यादव मत तो उसके साथ हैं ही, वैश्य बिरादरी के मतों के जुड़ जाने का परिणाम क्या निकल सकता है, यह बताने की जरूरत नहीं.वैसे, इन मतों में मुकम्मल एकजुटता हो ही जायेगी, ऐसा भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. इसलिए कि स्थानीय राजनीति के कुछ अपने भी गुणा-भाग होते हैं. तब भी इस समीकरण को अपेक्षाकृत अधिक मजबूत माना जा सकता है.

राजद ने उलझा दिया गणित
राजद द्वारा फंसाया गया यह पेंच सुलझ गया यानी BJP समर्थक वैश्य मतों में ज्यादा बिखराव नहीं हुआ, तब JDU प्रत्याशी राजीव कुमार सिंह (Rajiv Kumar Singh) की राह आसान हो जा सकती है. अन्यथा सवर्ण समाज का संपूर्ण साथ मिलने के बाद भी बेड़ा गर्क हो जा सकता है. वैसे, अतिपिछड़ा समाज कोई गुल खिला दे तो वह अलग बात होगी. आज की तारीख में यही तस्वीर है तारापुर उपचुनाव की.

दिलचस्प बात यह कि गठबंधनों की इस ‘भैंसा भिड़ंत’ में कांग्रेस के भी उम्मीदवार हैं और चिराग पासवान (Chirag Paswan) की लोजपा (रामविलास) के भी. दोनों अपनी-अपनी पार्टी का वजूद तलाश उसे मजबूत बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. राजद की ‘दादागिरी’ को लेकर रिश्तों में पैदा हुई या यूं कहें कि रणनीति के तहत पैदा की गयी खटास के बावजूद कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा बनी हुई है.

सबकुछ बनावटी है
उपचुनाव बाद भी यह महागठबंधन में बनी ही रहेगी. विश्लेषकों के मुताबिक राजद के साथ अभी जो रार-तकरार दिख रही है, वह बनावटी है. राजनीति का थोड़ा-बहुत भी ज्ञान रखने वाले गांव के लोग तक भी इसे अच्छी तरह से समझ रहे हैं.

चिराग पासवान की Lojpa (रामविलास) के उम्मीदवार मुख्य मुकाबले में आने के लिए जूझ रहे हैं. चिराग पासवान के चाचा केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) राजग के साथ है. मूल लोजपा के दोनों धड़ों का जनाधार सिमटा-सिकुड़ा हुआ है. ऐसे में इनके रहने या न रहने से परिणाम पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है. थोड़ा बहुत विभाजन के साथ पासवान बिरादरी के मत लोजपा ( रामविलास) के पक्ष में दिखते हैं. इसके अलावा स्थानीय सामाजिक-राजनीतिक समीकरण में यह कहीं नहीं है. बाहरी उम्मीदवार का तो बड़ा मुद्दा है ही.

मीना देवी की उपेक्षा क्यों?
2020 में लोजपा की उम्मीदवारी पूर्व जिला पार्षद मीना देवी (Meena Devi) को मिली थी. उन्हें 11 हजार 264 मत प्राप्त हुए थे. मीना देवी की उपेक्षा कर जमुई जिला निवासी चंदन सिंह (Chandan Singh) को मैदान में उतारने का मतलब पार्टी के लोग भी नहीं समझ पा रहे हैं. इससे ऐसा लगता है कि चिराग पासवान (Chirag Paswan) का ज्यादा जोर अपनी जीत पर नहीं, JDU की हार पर है. लाभ RJD को मिल जाये तो इसकी उन्हें कोई चिंता नहीं. लोजपा (रामविलास) की उम्मीदवारी जिस चंदन सिंह को मिली है वह रिश्ते में जमुई (Jamui) की भाजपा विधायक श्रेयसी सिंह (Shreyashi Singh) के चचेरा भाई है.

चंदन सिंह और उनके भाई दीप सिंह जमुई से चिराग पासवान के सांसद बनने के वक्त से ही लोजपा से जुड़े हैं. इसके अलावा चंदन सिंह की उल्लेख करने लायक कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं है. सहकारिता के क्षेत्र में सक्रियता जरूर है. इस क्षेत्र में उनका जुड़ाव बिहार हाउसिंग को-ऑपरेटिव फेडेरेशन लिमिटेड के अध्यक्ष विजय कुमार सिंह (Vijay Kumar Singh) से है. सबसे बड़ी बात यह कि तारापुर विधानसभा क्षेत्र में उन्हें पहचान के संकट से भी जूझना पड़ रहा है. यह विधानसभा क्षेत्र जमुई संसदीय क्षेत्र के तहत है. उपचुनाव 30 अक्तूबर 2021 को होना तय है.

कुछ और है जमीनी हकीकत
Congress राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है. बाहरी दुनिया को लगता होगा कि जीत-हार अपनी जगह है, तारापुर उपचुनाव (By-Election) के मुख्य मुकाबले में वह जरूर होगी. लेकिन, जमीनी हकीकत वैसी नहीं दिख रही है. बिहार में चुनाव के मुद्दे क्या होते हैं, राजनीतिक-सामाजिक समीकरण का आधार क्या होता है, राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले हर किसी को मालूम है. कांग्रेस के उम्मीदवार राजेश कुमार मिश्र (Rajesh Kumar Mishra) को भी और पार्टी के रणनीतिकारों को भी.

राजेश कुमार मिश्र 2020 में निर्दलीय उम्मीदवार थे. उससे पूर्व 2018 से सामाजिक कार्यों से जुड़े थे. गरीब-गुरबों एवं अन्य जरूरतमंदों की आर्थिक मदद करते थे. 2020 में महागठबंधन की उम्मीदवारी के लिए उन्होंने राजद और कांग्रेस दोनों में मगजमारी की. कामयाबी न मिलनी थी और न मिली. निर्दलीय कूद पड़े. 10 हजार 460 मतों में सिमट गये. समाज सेवा के दो वर्षीय कार्यकाल में जितने लोगों की उन्होंने मदद की होगी उतने भी मत नहीं मिले. उम्मीदवारी के मामले में इस बार किस्मत खुल गयी. कांग्रेस के उम्मीदवार हो गये.


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हालात में बदलाव नहीं
कांग्रेस फिलहाल महागठबंधन से अलग है. कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय नेताओं के जोर लगाने के बावजूद हालात में कोई बदलाव आता नजर नहीं आ रहा है. हाल-फिलहाल कांग्रेस में शामिल हुए युवा नेता कन्हैया कुमार भी आये. छोटी-बड़ी सभाओं को अपनी शैली में संबोधित कर लौट गये. राजेश कुमार मिश्र के चुनाव अभियान में कोई खास गति नहीं आयी है. वैसे चुनाव चुनाव है. किस वक्त पासा पलट जायेगा यह कहना कठिन है.

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