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ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू : लगता नहीं है दिल अब …

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राजेश कुमार
25 अप्रैल, 2023

PATNA : ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू (Gyanendra Singh Gyanu) वर्तमान में बाढ़ से भाजपा (BJP) के विधायक हैं. आगे किस पार्टी के होंगे, किसी के होंगे भी या नहीं, यह वक्त के गर्भ में है. लेकिन, यह करीब-करीब तय है कि दो बार जदयू (JDU) और दो बार भाजपा यानी लगातार चार बार विधायक (MLA) रहे ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू को अब न भाजपा घास डालेगी और न ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू उम्मीदवारी के लिए कोई विशेष याचना करेंगे. भाजपा और इसके प्रादेशिक नेतृत्व को लेकर हाल के महीनों में उनकी आक्रोश भरी जो टिप्पणी-दर-टिप्पणी सार्वजनिक हुई है, उससे संदेह तो ऐसा ही कुछ होता है. हाल फिलहाल की उनकी एक टिप्पणी पर गौर कीजिये, सब कुछ स्पष्ट हो जायेगा.

अब क्या चाहिये…
बाढ़ (Barh) के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा-‘भगवान ने सब कुछ दे दिया. सपनों में भी नहीं सोचा था कि विधायक बनेंगे, चार बार बन गये. अब क्या चाहिये…! स्कूटर (Scooter) चढ़ने का सपना देखा था, सब कुछ पर चढ़ गये.’ विरक्ति के उनके इस भाव का क्या निहितार्थ निकलता है? वैसे, है यह राजनीति (Politics). कब कौन-सा रंग धर लेगी, किसे कहां से उठा कहां बैठा देगी, किसे उठाकर पटक देगी, यह कोई दावे के साथ नहीं कह सकता. ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू (Gyanendra Singh Gyanu) के साथ भी ऐसा हो सकता है. हालांकि, वह कोई बड़ी राजनीतिक (Political) हस्ती नहीं हैं. विश्लेषकों की मानें तो उनकी मुख्य पहचान नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के दायें-बायें रहने और फिर उन्हीं से बगावत कर बैठने से जुड़ी है. इसके अलावा कुछ नहीं है.

महत्व को नहीं समझा
नजदीक रहने वाले लोगों पर विश्वास करें तो वह जदयू में वापसी चाहते हैं. पर, पूर्व की बगावत की वजह से राह अवरुद्ध है. गौर करने वाली बात यह कि लगातार चार बार विधायक निर्वाचित होने के अलावा उल्लेख करने लायक उनकी अन्य कोई उपलब्धि नहीं है. इसके बरक्स पार्टी नेतृत्व के प्रति क्षोभ और विक्षोभ कुछ अधिक है. जदयू में थे तब भी था, भाजपा में हैं तब भी है. व्यथा यह कि जदयू नेतृत्व ने उनके महत्व को तो नहीं ही समझा, भाजपा नेतृत्व ने भी उपेक्षित रखा. एक अदद मंत्री (Minister) का पद तक नहीं दिया. 2014 -15 में दूसरे दलों के 18 विधायकों को भाजपा में शामिल कराया, उसका भी प्रतिदान नहीं मिला.

सांगठनिक जिम्मेवारी भी नहीं
मंत्री-पद की बात छोड़िये, कभी कोई बड़ी सांगठनिक जिम्मेवारी भी नहीं सौंपी गयी. राजनीति में ‘निकम्मा-निठल्ला’ बना कर रखा गया. यहां तक कि बाढ़ संगठन जिला भाजपा ने भी उनकी पद-प्रतिष्ठा और काबिलियत को महत्व नहीं दिया. निवर्तमान जिला भाजपा अध्यक्ष डा. सियाराम सिंह (Dr. Siyaram Singh) ने क्षेत्रीय विधायक रहने के बावजूद उन्हें दलीय कार्यक्रमों से प्रायः दूर- दूर ही रखा. कार्यक्रमों की सूचना तक नहीं दी जा रही थी. किसकी शह पर वह वैसा कर रहे थे, यह नहीं मालूम. अपने कार्यकाल में बख्तियारपुर (Bakhtiyarpur) के पूर्व विधायक रणविजय सिंह उर्फ लल्लू मुखिया (Lallu Mukhiya) को ही तरजीह देते रहे. नये जिला भाजपा अध्यक्ष अरुण कुमार (Arun Kumar) से शायद उन्हें महत्व मिलने लगा है.


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यह है एक विकल्प
लेकिन, बड़ा सवाल (Question) यह है कि जदयू का द्वार बंद रहने और भाजपा के दयार में मन नहीं लगने के बाद ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू के पास विकल्प क्या बचता है? क्या चुनावी राजनीति से वह संन्यास ले लेंगे? नहीं, ऐसा नहीं करेंगे. अपने लोगों के बीच यह कहते सुने जा रहे हैं कि उस स्थिति में वह अपनी पत्नी सुलेखा सिंह (Sulekha Singh) को महागठबंधन (प्राथमिकता जदयू) की उम्मीदवारी दिलाने का प्रयास करेंगे. यदि ऐसा करते हैं तो क्या नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द साये की तरह चिपके रहने वाले तीन चर्चित मंत्री-चेहरे उनकी इस मंशा को फलीभूत होने देंगे? सफलता मिले या नहीं, कोशिश अवश्य करेंगे.

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