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सीमांचल : खत्म हो रही कहानी ओवैसी की!

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अशोक कुमार
11 मई 2023

Purnea : यह स्थापित तथ्य है कि बिहार के अन्य हिस्सों के राजनीतिक मिजाज की तुलना में सीमांचल (Seemanchal) की मुस्लिम सियासत (Muslim Politics) का चरित्र कुछ भिन्न है. 2020 के विधानसभा चुनाव का परिणाम इसका अद्यतन उदाहरण है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (Aimim) को राज्य के दूसरे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में महत्व नहीं मिला. परन्तु, अप्रत्याशित ढंग से सीमांचल ने पांच सीटें उसकी झोली में डाल दी. वह महागठबंधन(Mahagathbandhan), विशेषकर राजद (Rjd)और कांग्रेस (Congress) के लिए गहन विचारणीय विषय था कि सीमांचल के मुस्लिम मिजाज को य दोनों दल मुकम्मल रूप में क्यों स्वीकार्य नहीं हैं.यह अलग बात है कि बाद के दिनों में एमआईएम के पांच विधायकों में चार राजद में शामिल हो गये . देर-सबेर पांचवें का आसन भी वहीं जमने की संभावना है. इसके बावजूद उक्त मुद्दे का महत्व कम नहीं हुआ है.

सबने विश्वासघात किया
वैसे, इस सच को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि 2020 में एमआईएम की जीत पार्टी के जनाधार पर नहीं, भावनाओं और तात्कालिक परिस्थितियों पर आधारित थी, जो अब करीब-करीब मिट गयी हैं. दूसरे संदर्भ में देखें, तो इससे यह फिर स्थापित हुआ कि सीमांचल में जिस तरह नदियों से कटाव का खतरा बराबर बना रहता है, उसी तरह ‘अप्रवासी राजनीतिक दलों’ में बिखराव का खतरा बड़ा आकार लिये रहता है. इतिहास गवाह है कि इस अंचल में जिस ‘अप्रवासी राजनीतिक दल’ ने हाशिये के नेताओं को कंधे पर बैठा सदन में पहुंचाया, देर-सबेर सबने ‘विश्वासघात’ किया.

कमरुल होदा के साथ शाहनवाज आलम और रूकुनुद्दीन अहमद.

एमआईएम ने भी धोखा खाया
दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री तसलीम उद्दीन Taslim Uddin रहे हों या पूर्व विधायक गोपाल कुमार अग्रवाल (E.x mla Gopal Kumar Agarwal), समाजवादी पार्टी ने सहारा दिया. विधायक बने, पर ज्यादा दिनों तक साथ नहीं निभाया. इधर, ‘धोखा’ एमआईएम ने खाया. इस पार्टी के चार विधायकों – अंजार नईमी, शाहनवाज आलम, रूकनुद्दीन अहमद और इजहार असफी ने पाला बदल खुद को राजद से जोड़ लिया. इससेे एमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) को धीरे से जोर का झटका लगा. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विधायक अख्तरूल ईमान (Akhtarul Iman) को भी यह सोचने के लिए विवश होना पड़ा कि पार्टी के पुराने समर्पित नेताओं व कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर जिन बाहरी लोगों को उम्मीदवार बनवाया, जीत दिलवायी, वे सब राजनीति में नफा-नुकसान तलाशने वाले मौकापरस्त थे.

पार्टी हित में नहीं
2020 के विधानसभा चुनाव में एमआईएम (Mim) की अप्रत्याशित बड़ी जीत भले हो गयी, लेकिन उम्मीदवारी के लिए अंदरुनी तौर पर जो उठापटक हुई वह पार्टी हित में कतई नहीं थी. बायसी विधानसभा क्षेत्र से शाहनवाज दावेदार थे. चुनाव नजदीक आया तब पूर्व विधायक रूकनुद्दीन अहमद को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया. शाहनवाज अवाक रह गये. बायसी से अब्दुस सुबहान राजद के उम्मीदवार होते हैं. उनकी बढ़ी उम्र के मद्देनजर शाहनवाज को राजद में भविष्य संवरने की संभावना दिखी. बगैर विलंब उन्होंने उसकी सदस्यता ग्रहण कर ली. पर, विधायक रुकनुद्दीन अहमद के राजद से जुड़ जाने से उनकी उम्मीदों पर एकबारगी पानी फिर गया.


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रम गये दूसरी राजनीति में
आगे क्या होता है यह देखना दिलचस्प होगा. 2015 में गुलाम सरवर बायसी से एमआईएम के उम्मीदवार थे. प्रदेश अध्यक्ष विधायक अख्तरुल ईमान के कार्यकलापों से क्षुब्ध होकर 2020 में उम्मीदवारी के लिए कोई प्रयास नहीं किया. 2025 में क्या करेंगे, यह अभी नहीं कहा जा सकता. वैसे, अपनी पत्नी वाहिदा सरवर को पूर्णिया जिला परिषद का अध्यक्ष निर्वाचित करा वह मुख्य रूप से उसी की राजनीति में रम गये हैं.बायसी की कहानी का दुहराव अमौर में भी हुआ.

भ्रम टूट गया अबू सायम का
एमआईएम के जिला सचिव डा. अबू सायम ने पूरी शिद्धत से चुनाव की तैयारी की थी. अचानक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान उम्मीदवार बन गये. अगले चुनाव में अवसर उपलब्ध कराने का आश्वासन दे डा. अबू सायम को मना लिया. उनसे खूब मेहनत करा चुनाव जीत गये. उस दरम्यान सीमांचल में एमआईएम और असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi)की जो ‘लहर’ थी उसमें 2024 के संसदीय चुनाव में किशनगंज में अख्तरुल ईमान की जीत की स्पष्ट झलक दिख रही थी. डाॉ अबू सायम इस मुगालते में आ गये कि अख्तरुल ईमान के सांसद बनते ही वह अमौर से विधायक बन जायेंगे. खुशफहमी यह कि उपचुनाव होगा, उम्मीदवारी मिलेगी और फिर जीत तो तय है ही! भावनाओं का उफान थमते ही भ्रम टूट गया.

फिर गया पानी उम्मीदों पर
अख्तरुल ईमान की आलोचना बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र की उम्मीदवारी को लेकर भी हुई थी. प्रो. मुसब्बिर आलम उस क्षेत्र के लोकप्रिय नेता हैं. पहले जदयू में थे. पार्टी में अच्छा खासा प्रभाव था. गठबंधन की विवशता के तहत 2015 में उम्मीदवारी नहीं मिली तब जन अधिकार पार्टी (जाप) का उम्मीदवार बन गये. जीत नहीं मिली. लेकिन, जनप्रियता सिद्ध करने लायक मत अवश्य मिल गये. बाद के दिनों में एमआईएम से जुड़ गये. लोकप्रियता के मद्देनजर उम्मीदवारी तय मानी जा रही थी. लेकिन, किस्मत अंजार नईमी की चमक गयी. अंजार नईमी के दल बदल से ज्यादा हताशा प्रो. मुसब्बिर आलम को हुई. इस रूप में कि इधर-उधर कहीं संभावना नहीं देख वह राजद में भविष्य टटोल रहे थे. शायद बात भी बन गयी थी. इसी बीच अंजार नईमी ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया.

अररिया में भी लगा झटका
बिहार में एमआईएम का पहला विधायक बनने का सौभाग्य किशनगंज (Kishanganj) जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष कमरुल होदा (Kamrul hoda)को प्राप्त हुआ था. अख्तरुल ईमान के साथ पटरी नहीं बैठ पाने के कारण वह पार्टी से अलग हो गये. हाल-फिलहाल राजद में शामिल हो, उसके किशनगंज जिला अध्यक्ष बन गये. उधर, एमआईएम के अररिया (Araria) जिला अध्यक्ष राशिद अनवर ने भी अख्तरुल ईमान के रर्वये से क्षुब्ध होकर पार्टी छोड़ दी है. राशिद अनवर 2020 में अररिया विधानसभा क्षेत्र से एमआईएम के उम्मीदवार थे. तीसरे स्थान पर रहे थे. उनके अलग हो जाने से एमआईएम को जबर्दस्त सदमा पहुंचा है. पार्टी में बिखराव के इस क्रम से अख्तरुल ईमान राजनीतिक दृष्टि कोण से बेहद कमजोर हो गये हैं, ऐसा उनके निकट के लोगों का मानना है.

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