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पूछती है राजनीति: झुंझलाहट क्यों बढ़ गयी है ललन बाबू…!

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राजकिशोर सिंह
11 मई 2023
PATNA: जदयू (JDU)के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajeev Ranjan Singh Urf Lalan Singh)का तेवर इन दिनों थोड़ा ढीला पड़ गया है. पर, झुंझलाहट बढ़ गयी है. हर बात का टेढ़ा जवाब! राजनीति चकित है कि स्वभाव में ऐसा बदलाव आखिर क्यों और कैसे आ गया है! जानने की जिज्ञासा आम अवाम को भी होगी. तो पहले यह जान लीजिये कि राजनीति के गलियारे की चर्चाओं में इसके एक नहीं, अनेक कारण जगह बनाये हुए हैं. सबसे बड़ा कारण प्रशंसा के वे फूल हैं जिन्हें नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने कुछ दिनों पूर्व भामाशाह स्मृति समारोह में उन्हें ‘अर्पित’ किया था. विडंबना देखिये प्रशंसा से लोग फुले नहीं समाते हैं, ललन सिंह गहरी चिंता में डूबे हैं. चिंता बेवजह नहीं है. नीतीश कुमार के राजनीतिक आचरण पर गौर करने पर वजह खुद-ब-खुद स्मृति पटल पर छा जायेगी. भगवान न करे उनके साथ वैसा कुछ हो!

है लंबा-चौड़ा इतिहास
नीतीश कुमार (Nitish Kumar)के बारे में आम धारणा है कि अपने विशिष्ट अंदाज में हंस-हंस कर जिस किसी को वह ‘प्रशंसा का फूल’ अर्पित करते हैं, देर-सबेर राजनीति में उसकी गति उदाहरण बन जाती है. ऐसी गति-दुर्गति का बेहद डरावना इतिहास है. नीतीश कुमार से ललन सिंह का ‘पौराणिक संबंध’ है. करीब से देखने-सुनने का पर्याप्त अनुभव है, भुगतने का भी. ऐसे में प्रशंसा के फूल से चिंता स्वाभाविक है. अब जानिये कि नीतीश कुमार ने किन शब्दों में उनकी प्रशंसा की- ‘… राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन बाबू हैं … ललन सिंह कहिये … राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह का क्या मतलब है? … ललन बाबू कहिये … इनसे दोस्ती आज का नहीं न है जी … पौराणिक दोस्ती है न जी … ललने बाबू कहिये!’

आनंद मोहन और ललन सिंह.

 

कुटिलता भरी तारीफ!
विश्लेषकों की समझ है कि इस बेमौसमी प्रशंसा के मर्म को सामान्य लोग नहीं समझ पाये, पर ललन सिंह परेशान हो उठे. प्रशंसा के फूलों की बारिश के वक्त की उनकी भाव-भंगिमा ऐसा ही कुछ कह रही थी. पूछ रही थी-‘नीतीश बाबू यह क्या कह रहे हैं!’ ललन सिंह परेशान हों भी क्यों नहीं. बात ज्यादा पुरानी नहीं है. कुछ माह पहले नीतीश कुमार ने तब के भाजपाई उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन (Shahnawaz Hussain) की बहुत कुछ ऐसी ही कुटिलता भरी तारीफ की थी. सप्ताह भी नहीं बीता, शाहनवाज हुसैन ‘पूर्व’ हो गये. ललन सिंह को अर्पित प्रशंसा के ये फूल क्या गुल खिलाते हैं, देखना दिलचस्प होगा.यहां यह समझने की भी जरूरत है कि ‘भाजपा मुक्त भारत’ अभियान में नीतीश कुमार के साथ रहने से गुल खिलने की आशंका मिट नहीं गयी है. गुल खिलेगा, वक्त पर खिलेगा.


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यह भी है एक कारण
ललन सिंह का तेवर ढीला पड़ने का एक कारण आनंद मोहन (Anand Mohan) प्रकरण को भी माना जा रहा है. सत्ता और सियासत के गलियारे की बातों पर भरोसा करें, तो कथित रूप से सरकार की फजीहत करा रही आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई की स्क्रिप्ट ललन सिंह ने तैयार की थी. स्क्रिप्ट ऐसी कि नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) को सत्ता से उखाड़ फेंकने की सनक में नीतीश कुमार की सरकार ही संकट में घिर गयी है. लोग कहते हैं कि उस दिन प्रशंसा के फूल की बारिश आनंद मोहन प्रकरण से जुड़ी बेचैनी की ‘अभिव्यक्ति’ थी. इसको आनंद मोहन के मामले में सर्वोच्च अदालत के निर्देश से सबंधित सवाल पर ललन सिंह की झुंझलाहट – ‘हमको नोटिस मिला है… जिसको मिला है उससे पूछिये’ … -से बल मिलता है.

आगे-आगे देखिये, होता है क्या…!
आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई को नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सामाजिक समूहों को साधने की रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जा रहा है. नीतीश कुमार की सरकार के गले की फांस बना यह मामला सर्वोच्च अदालत में है. फैसला वक्त के गर्भ में है. यह सब तो है ही, जेल में दस वर्षीया सजा काट रहे पूर्व विधायक अनंत सिंह (Ex MLA Anant Singh) के कलेजे में धधक रही प्रतिशोध की आग ने ललन सिंह को कुछ अधिक विचलित कर रखा है. जदयू को महागठबंधन का हिस्सा बनवा मुंगेर संसदीय क्षेत्र में ‘अपराजेय’ हो जाने की उन्होंने जो खुशफहमी पाल ली थी, वह अनंत सिंह के रूख को देख काफूर हो गयी है, ऐसा राजनीति महसूस करती है. वैसे, बेचैनी ‘कलसी ग्रुप ’ पर आयकर के छापे को लेकर भी है. आगे-आगे देखिये, होता है क्या!

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