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बात शैली सम्राट की: अक्षुण्ण नहीं रह पायीं स्मृतियां

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अपने बिहार के जिन प्रतिष्ठित साहित्यकारों की सिद्धि और प्रसिद्धि को लोग भूल गये हैं उन्हें पुनर्प्रतिष्ठित करने का यह एक प्रयास है. विशेषकर उन साहित्यकारों , जिनके अवदान पर उपेक्षा की परतें जम गयी हैं. चिंता न सरकार को है और न वंशजों को. ‘शैली सम्राट’ के रूप में चर्चित राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह की साहित्यिक विरासत के साथ भी ऐसा ही कुछ प्रतीत होता है. उन पर आधारित किस्तवार आलेख की यह अंतिम कड़ी है:


अश्विनी कुमार आलोक
09 जुलाई 2023

रोहतास (Rohtas) के सूर्यपुरा में राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह (Raja Radhikaraman Prasad Singh) की अधिकांश संपत्तियां बेच दी गयीं. शिक्षक रंजन कुमार प्रसाद बताते हैं कि स्थानीय साहित्यकारों ने अनेक बार चेष्टा की कि राजा जी के परिजन उनकी जन्मभूमि पर कोई बड़ा कार्यक्रम करें और शैली सम्राट की स्मृतियों को स्थायित्व प्रदान करें. परंतु, ऐसा संभव नहीं हो सका. सूर्यपुरा (Suryapura) में राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह के किला, बंगला, तालाब, कचहरी एवं कुछ और परिसर अभी बिके नहीं हैं. परंतु, उनका होना और न होना बराबर है. वे पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. राजा साहब की इन संपत्तियों की देखरेख स्थानीय अशोक चौबे करते हैं.

रह गये हैं मंदिर और तालाब
अशोक चौबे (Ashok Choubey) के पिता मनमोहन चौबे (Manmohan Choubey) इस परिवार के विश्वस्त पात्र थे. पिता के निधन के बाद वही संपत्तियां पर निगाह रखते हैं. बदले में उन्हें दो सौ रुपये हर महीने के हिसाब से राजीव रंजन सिंह की पटना मे रहनेवाली पोती नंदिनी मेहता भेज देती हैं. अशोक चौबे हार्डवेयर के दुकानदार हैं. राजा साहब के तालाब का सौंदर्यीकरण ग्राम पंचायत के प्रयास से हुआ. स्थानीय लोग लैंपपोस्ट की रोशनी में देर रात तक रम्य वातावरण का आनंद उठाते हैं. उनके समय के शेष स्मारक ध्वस्त होते जा रहे हैं. बाग-बगीचे, तालाब, मंदिर रह गये हैं.

लक्ष्मीनारायण ट्रस्ट
मंदिर में स्थापित रघुनाथ जी और लक्ष्मीनारायण की मूर्तियों के प्रति स्थानीय लोगों की आस्था बनी हुई है. सूर्यपुरा में राजा साहब का आवास करीब दो एकड में विस्तृत है. बंगले वाली जमीन करीब दस बीघे की ठहरेगी. राज राजेश्वरी विद्यालय (Raj Rajeshwari School) के सर्वाधिक मेधावी बच्चों के लिए नंदनी मेहता ही प्रतिवर्ष पांच-पांच सौ रुपये का पुरस्कार भेजती हैं. मंदिर की देखभाल का जिम्मा लक्ष्मीनारायण ट्रस्ट संभालता है.

पटना में है सूर्यपुरा हाउस
पटना (Patna) के बोरिंग रोड में सूर्यपुरा हाउस है. यह भवन जिस भूखंड पर अवस्थित है, वह कभी तीन एकड़ तक विस्तृत था. उदयराज सिंह (Udayraj Singh) ने भूखंड को अपने रिश्तेदारों में बांट दिया था. बेटियों ने अपने हिस्से की जमीन बेच दी. अब करीब बारह कट्ठे में जो भवन है, वह ‘नई धारा’ ट्रस्ट और ‘नई धारा’ साहित्यिक पत्रिका के प्रकाशन का कार्यालय है. ‘नई धारा’ पत्रिका का संपादन-प्रकाशन राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह ने ही आरंभ किया था. उनके देहांत के बाद उनके छोटे पुत्र और यशस्वी लेखक उदयराज सिंह ने इसका प्रकाशन जारी रखा.

राज परिसर स्थित रघुवर मंदिर.

बत्तीस वर्षों से हैं संपादक
बत्तीस वर्षों से इसके संपादक अरविंद महिला कालेज के हिन्दी के प्राध्यापक डा शिवनारायण (Dr. Shivnarayan) हैं. डा शिवनारायण महावीर मंदिर ट्रस्ट  (Mahavir Mandir Trust) की पत्रिका ‘धर्मायण’ के संपादक थे. ‘धर्मायण’ के संपादन का काम जब आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव (Shriranjan Suridev) ने छोड़ दिया, तो एक साल के लिए सीताराम झा श्याम (Sitaram Jha Shyam) ने संपादन का काम देखा था. फिर, डाॉ शिवनारायण संपादक बनाये गये थे. उन दिनों ‘नई धारा’ के संपादक उदयराज सिंह एवं सहायक संपादक सुरेश कुमार थे. सुरेश कुमार की आंखें खराब हो गयीं, तो उदयराज सिंह ने ‘धर्मायण’ के प्रकाशक आचार्य किशोर कुणाल से कहकर ‘नई धारा’ के संपादन के लिए डा शिवनारायण को मांग लिया.

नहीं लिया मानदेय
1990 में प्रो. आरसी सिन्हा (Prof. RC Sinha) एवं काशीनाथ झा (Kashinath Jha) के अनुमोदन पर डा शिवनारायण ‘नई धारा’ के संपादक रखे गये. तब से वह ‘नई धारा’ के गौरवपूर्ण प्रकाशन को गति दिये हुए हैं. डा शिवनारायण को ‘धर्मायण’ के संपादन के बदले महीने के पचीस सौ रुपये मिलते थे, लेकिन उदयराज सिंह ने जब उन्हें तीन हजार रुपये देने का मन बनाया, तो डा शिवनारायण ने यह कहकर मना कर दिया कि ‘नई धारा’ को कालेज के दिनों में पढ़कर ही वह लेखन के क्षेत्र में आये. ऐसी पत्रिका के संपादन से जुड़ना उनके लिए गौरव की बात है.


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प्रतिष्ठा मिली रचना-धर्मिता को
संपादक के रूप में दस शुरुआती सालों तक डा शिवनारायण के नाम नहीं छपे. वर्ष 2000 में ‘नई धारा’ का अर्द्धशती अंक छपा, तो शिवनारायण का नाम संपादक के रूप में छपना आरंभ हुआ. वर्ष 2004 में उदयराज सिंह का देहांत हो गया. तब, उदयराज सिंह के पुत्र प्रमथराज सिंह डा खगेन्द्र ठाकुर के परामर्श से उषा किरण खान को संपादक बनाना चाहते थे. किंतु, उदयराज सिंह की पत्नी ने बताया कि ‘नई धारा’ जब तक प्रकाशित होती रहे, उसके संपादक डा शिवनारायण ही बने रहें. ‘नई धारा’ ने राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य की रचना-धर्मिता को प्रतिष्ठा दी है.

पुरस्कार और रचना- सम्मान
उदयराज सिंह की स्मृति में एक लाख रुपये का एक पुरस्कार और ‘नई धारा’ में प्रकाशित तीन रचनाओं को प्रतिवर्ष 25-25 हजार रुपये का रचना-सम्मान देने की परंपरा चलायी जा रही है. शीघ्र ही इन सम्मानों की रकम बढ़ायी जायेगी. इनके अतिरिक्त प्रतिवर्ष तीन अध्येताओं को शोधवृत्ति दिये जाने की योजना पर भी काम चल रहा है. राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह के वंशज अब शायद ही सूर्यपुरा लौटें, लेकिन उन्होंने राजा जी की लेखन-परंपरा को जीवित रखा है. राजा जी के बेटे उदयराज सिंह लेखक रहे, बेटी और पूर्व आईपीएस अधिकारी मंजरी जरुहार भी लिखती हैं.

मिट रहा अस्तित्व
मंजरी जरुहार (Manjari Zaruhar) की हाल ही में एक आत्मकथात्मक पुस्तक आयी है ‘सर मैडम’. राजा राधिकारमण सिंह की सूर्यपुरा वाली हवेली का अस्तित्व मिटने ही वाला है. एक राजा के आसन को उनके वंशजों ने भी बचाने की चेष्टा नहीं की. सात आंगनों वाला बड़ा-सा राजभवन इस तरह ढहकर बिखर गया है कि अब उसके वास्तविक स्वरूप का अनुमान लगाना कठिन है. सरकार कहीं एक मूर्ति स्थापित नहीं करा पायी. अब देखना है कि ‘नई धारा’ की रचनात्मक प्रवाह कितने दिन जीवित रहेगा. क्या शैली सम्राट के आसन की सुरक्षा बिहार सरकार (Bihar Sarkar) की जवाबदेही नहीं है?
(समाप्त)

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