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बात द्विज जी की : बड़ी जलन है इस ज्वाला में

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बिहार के जिन प्रतिष्ठित साहित्यकारों की सिद्धि और प्रसिद्धि को लोग भूल गये हैं उन्हें पुनर्प्रतिष्ठित करने का यह एक प्रयास है. विशेषकर उन साहित्यकारों , जिनके अवदान पर उपेक्षा की परतें जम गयी हैं. चिंता न सरकार को है और न वंशजों को. ‘शैली सम्राट’ के रूप में चर्चित राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह की साहित्यिक विरासत की उपेक्षा को उजागर करने के बाद अब पं. जनार्दन प्रसाद झा द्विज की स्मृति के साथ परिवार, समाज और सरकार के स्तर से जो अवांछित व्यवहार हो रहा है उस पर दृष्टि डाली जा रही है. संबंधित‌ किस्तवार आलेख की यह पहली कड़ी है :


अश्विनी कुमार आलोक
09 अगस्त 2023

भागलपुर (Bhagalpur) से जाने वाली यह सड़क न तो अब संकड़ी है और न ही संकुचित. इसमें प्रकृति का विस्तार और परिवर्तन का प्रसार साफ दिखता है. सड़क के किनारे जो पेड़ खड़े हैं, उनमें से अधिकांश अनायास जन्मे होंगे. परंतु, आप यह भी नहीं कह सकते कि ग्रामीण विकास और पर्यावरण विभाग (Department of Rural Development and Environment) ने पेड़ों को जीवन से जोड़ने का कोई उद्यम नहीं किया. करोड़ों की लागत से लगाये गये पेड़ों के बिरवे अब वृक्ष बनकर छतनार हो चुके हैं. वे हर्ष के हजारों झोंके एक साथ उठा लाते हैं. इस तरह हरियाली और हवा के जीवनवाही उल्लास का बिखर जाना, गंध-सुगंध के सौंदर्यीशील आस्वाद का अपनत्व मिलना स्वाभाविक है.

तब इतनी चौड़ी नहीं थी
यह जो सड़क है, कुछ वर्षों पूर्व तक इतनी सपाट और चौड़ी नहीं थी. सड़क के सामानांतर भी उनके रास्ते थे, जो अविभाजित बिहार (Bihar) के दिनों तक गांवों से गुजरकर बैद्यनाथ धाम (Baidyanath Dham) की ओर निकल जाते थे. थोड़े-थोड़े चुभते हुए कंकड़ जब शंकर की भक्ति से सम्मोहित लोगों को इन रास्तों पर गुदगुदाते थे, तो उनमें तप और जप की दुस्सह परीक्षाएं ही रही होती थीं. प्रकृति के प्रारूपों के प्रभेद भी होते थे और अस्वीकार्य अवसरों के संवेद भी. किंतु अब पैदल जाने की न तोे फुर्सत है और न वैसी तबीयत रही. सो, बांका (Banka) से भागलपुर और भागलपुर से नाथनगर की ओर जाने वाली इस सड़क को यात्रा-श्रेय देना स्वाभाविक ही था.

ब्राह्मणों का गांव
नाथनगर  (Nathnagar) थाना से दक्षिण और चंपानगर (Champanagar) से पहले बसा हुआ यह गांव मूलतः ब्राह्मणों का गांव है. कोई दो सौ घर ब्राह्मण होंगे. ब्राह्मणों के अतिरिक्त यादव ओर बिंद जाति के परिवारों को मिलाकर हजार-बारह सौ परिवारों का गांव रामपुरडीह. इस गांव की किसी भीठ पर खड़े होकर आप पहाड़ियों की सुषमा से संपन्न प्राकृतिक उपहार समेट सकते हैं. यह गिरिवरनाथ (Girivarnath) पहाड़ी है, जिसे सरकार के पुरातत्व विभाग ने संरक्षित किया है. परंतु, पहाड़ी पर अतिक्रमणकारियों ने निःसंकोच आधिपत्य जमा लिया है. पहले माफियाओं ने पहाड़ी की छाती कूटी, अब उन पर घर भी बना लिये गये हैं.

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लोभ में सने हाथ
जारिया और मुरली पहाड़ी (Murli Pahadi) पर तो बस्ती ही बस गयी है. अब लोभ में सने हाथ शिवशंकरपुर पहाड़ी (Shivshankarpur Pahadi) की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं. तहबलनगर, पुरानी खेरही, कसबा खेरही के मकान अब कच्चे नहीं रहे, उन पर निर्भीक पक्कापन चमक रहा है. अतिक्रमण हटाने की अधिसूचनाओं से लोग डरते नहीं. राज्य के पर्यटन विभाग (Tourism Department) को इस ओर आंखें उठाने के आग्रह तो अनेक किये गये, पर साहब! सरकारी तंत्र है, आंखें फेर लेने की अनेक मजबूरियां हो सकती हे. गिरिवरनाथ पहाड़ी शृंखला की चोटियों पर बागीश्वरी मंदिर, दुर्गा मंदिर, चंडिका मंदिर और शिव मंदिर हैं. कहते हैं कि यहां भजन-कीर्तन करने की परंपरा 108 वर्ष पुरानी है. पहाड़ी की चोटी पर विशाल कुआं, किला, पौराणिक मूर्तियां मिलने की बातें बतायी गयी हैं.

शाहकुंड प्रखंड का हिस्सा
रामपुरडीह गांव अभी तक शाहकुंड  (Shahkund) प्रखंड का एक हिस्सा है. परंतु, जब सुलतानगंज  (Sultanganj) को काटकर अकबरनगर और बाथ प्रखंड बनाने की मांग उठी, तब शाहकुंड को काटकर सजौर एवं रतनगंज प्रखंड बनाने की मांग को राजनीतिक कारणों से जायज माना गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बुनकरों की एक सभा में इन मांगों पर विचार करने का आश्वासन भी दे दिया है. बहरहाल, मेरे विचार करने का न तो यह विषय था और न ही, मैंने इसे खोजने में रुचि ली. प्रखंड मुख्यालय से कोई दस किलोमीटर दूर रामपुरडीह में ब्राह्मणों की बस्ती में साहित्य और विद्या का जो नक्षत्र चमका था, मैं तो यह देखने गया था कि उसकी कांति अब भी जाज्वल्यमान है या इस नये वक्त में वह कहीं गुम हो गयी.


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गांव में क्या करते!
घनघोर निराशा हुई कि ब्राह्मणों की समूची बस्ती के पुरुष गांव में जमाये गये जीविका के पारंपरिक साधनों से असंतुष्ट होकर गांव छोड़ चुके हैं. खेत हैं, परंतु वे बटाईदारों के हाथों से जोते-बोये जाते हैं. विद्या के उपयोग से यजमानी करते हुए जीविका के संयोग नहीं जुटाये जा सकते, सो लोग रामपुरडीह में रहकर क्या करते! रामपुरडीह  (Rampurdih) में मैं जिस अकंप वक्ता, असाधारण कवि और कथाकार के वंशजों से मिलकर उन्हें जानने- समझने आया था, वे तो अब इधर झांकते भी नहीं. लोगों को यह भी नहीं पता है कि गिरिवरनाथ की पहाड़ियों से घिरा हुआ यह गांव इसलिए भी खास है कि यह छायावाद काल के भावुक कवि के रूप में प्रसिद्ध पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ (Pt. Janardan Prasad Jha ‘Dvij’ ) का गांव है.

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