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सृजन घोटाला : जिलाधिकारी कार्यालय में ही था सूत्रधार!

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विष्णुकांत मिश्र
18 अगस्त 2023

Bhagalpur: सरकारी धन के फर्जीवाड़े के सूत्रधारों का भूमिगत तंत्र अभेद था. कतिपय राजनेताओं, अधिकारियों, बैंककर्मियों, व्यवसायियों, बिल्डरों व पत्रकारों के स्वार्थ आधारित इस गोपनीय तंत्र (Secret System) की खतरनाक गतिविधियों का अंदाज लगाना मुश्किल था. लेकिन, उतना भी नहीं कि जिला स्तर पर सरकारी धन के मुख्य रखवाले- जिलाधिकारी को उसकी भनक तक नहीं लग पाये. आमतौर पर सरकारी धन के जमा व निकासी में जिलाधिकारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. भागलपुर में जिला प्रशासन के चंद भ्रष्ट और पतित कर्मियों के जरिये लगभग 14 वर्षों तक यह खेल चलता रहा और उक्त अवधि में पदस्थापित जिलाधिकारी (District Magistrate) अनजान बने रहे! तब जबकि इस शातिराना खेल का प्रशासनिक महकमे में सूत्रधार उन्हीं का पीए था! आसानी से यह किसी के गले नहीं उतर रहा है. लोग इसे सत्ता के संरक्षण में संबद्ध अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी धन की सुनियोजित सेंधमारी के रूप में देख व समझ रहे हैं.

कर्त्तव्यहीनता के दायरे में
घोटाले के सृजन से लेकर इसके सार्वजनिक होने तक जिलाधिकारी के पद पर आसीन रहे अधिकारियों की फर्जीवाड़े में प्रत्यक्ष संलिप्तता भले नहीं रही हो, लेकिन कुछ अपवादों को छोड़ सब के सब घोर कर्त्तव्यहीनता के दायरे में तो आते ही हैं. सिर्फ जिलाधिकारी ही नहीं, उस कालखंड के तमाम उपविकास आयुक्त (Deputy Development Commissioner) और अन्य संबद्ध अधिकारी भी. सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड, सबौर (भागलपुर) का गठन1996 में हुआ था. उस वक्त टी के घोष जिलाधिकारी थे. सबौर (Sabour) में सृजन (Srijan) का कार्यालय किराये के मकान में था. उपलब्ध सूचना के मुताबिक बेगूसराय (Begusarai) जिला निवासी गोरेलाल यादव जब जिलाधिकारी बने तब उन्होंने तत्कालीन उपविकास आयुक्त ए. उषा रानी (A. Usha Rani) की लिखित आपत्ति के बावजूद 2001 में इसे सबौर प्रखंड कार्यालय परिसर स्थित ट्राईसेम भवन में स्थानांतरित करा दिया.


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सरकार राबड़ी देवी की थी
सृजन को जिला प्रशासन के सहयोग की वह शुरुआत थी. गोरेलाल यादव ने सृजन के उस नये कार्यालय का उद्घाटन भी किया था. उस दौर में गोरेलाल यादव को तत्कालीन सत्ताशीर्ष का करीबी माना जाता था. राज्य में तब पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के नेतृत्व वाली राजद की सरकार थी. मनोरमा देवी को जिला प्रशासन का सहयोग सत्ता शीर्ष के निर्देशानुसार मिला या जिलाधिकारी गोरेलाल यादव (Gorelal Yadav) की खुद की पहल थी, यह नहीं कहा जा सकता. गोरेलाल यादव के बाद के पी रमैया (K P Ramaiah) जब भागलपुर का जिलाधिकारी बनकर आये तब 2003 में उन्होंने सृजन के आकार को व्यापकता प्रदान कर दी. उस वक्त भी मुख्यमंत्री राबड़ी देवी (Rabri Devi) के रूप में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) का शासन था.

बरसने लगी कृपा
के पी रमैया ने जिस ट्राईसेम भवन में सृजन का कार्यालय संचालित था उसके 24 हजार वर्गफीट वाले भूखंड को उसे सालाना 2400 रुपये पर 30 साल के लीज पर दे दिया. इतना ही नहीं, सृजन की गतिविधियों से प्रभावित होकर उन्होंने ट्राईसेम भवन के अधूरे भाग को पूरा कराने का निर्देश भी जारी कर दिया. के पी रमैया की सृजन पर ‘कृपा’ इस रूप में भी हुई कि उन्होंने 18 दिसम्बर 2003 को भागलपुर जिले के तमाम प्रखंड विकास पदाधिकारियों को सृजन में सरकारी पैसा जमा करने का आदेश निर्गत कर दिया. सृजन महिला विकास सहयोग समिति की सहयोगी बैंकिंग संस्था सृजन महिला बैंक (Srijan Mahila Bank) को 2004 में को- ऑपरेटिव बैंक (Co-operative Bank) की मान्यता मिली और उक्त आदेश के अनुरूप उसमें धड़ल्ले से सरकारी धन जमा होने लगे.

पहल मनोरमा देवी ने की थी.
कहा जाता है कि सरकारी धन के फर्जीवाड़े की शुरूआत वहीं से हुई. वैसे, के पी रमैया ने वह आदेश भागलपुर जिला प्रशासन की ओर से तत्कालीन उपविकास आयुक्त द्वारा 2000 में जारी निर्देश के आलोक में जारी किया था. यह कहा जा सकता है कि इस रूप में उन्होंने उसकी संपुष्टि की थी. 2000 के तत्संबंधी आदेश की पुष्टि तत्कालीन जिलाधिकारी गोरेलाल यादव ने भी 2001 में की थी. जो हो, के पी रमैया का भागलपुर में रहने के दौरान सृजन संचालिका मनोरमा देवी से गहरा जुड़ाव हो गया था. लोग कहते हैं कि 2014 के संसदीय चुनाव में उन्हें सासाराम (Sasaram) से जदयू (JDU) की उम्मीदवारी मनोरमा देवी (Manorama Devi) की ही पहल पर मिली थी. मनोरमा देवी उनके चुनाव प्रचार के लिए वहां गयी भी थीं. के पी रमैया भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) से स्वैच्छिक अवकाश ग्रहण कर चुनाव मैदान में उतरे थे. फिलहाल कहां हैं, यह कम ही लोगों को मालूम है.

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