रूबिका पहाड़िन : टुकड़ों में बिखरे थे बर्बरता के सबूत !
राजकिशोर सिंह
25 दिसम्बर 2023
Sahibganj : सभी आरोपी सलाखों के पीछे पहुंचा दिये गये. अदालत में अभियोग पत्र समर्पित कर दिया गया. त्वरित सुनवाई होनी चाहिये. कैसी हो रही है, नहीं मालूम. देर-सबेर फैसला आ जायेगा. उससे पहले लोग आदिमयुगीन बर्बरता की उस कहानी को भूल जायेंगे, जिसने मानवता (Humanity) को ही नहीं सिहरा दिया था, पहाड़ तक को रूला दिया था. जिस किसी ने टुकड़े-टुकड़े में बिखरे इसके सबूत को देखा था, विलख उठा था. हर किसी का कलेजा कांप गया था. दरिंदगी की इंतहा यह कि जिस प्रेमिका को पत्नी बनाया, जीवन भर साथ निभाने की कसमें खायी, बड़ी बेरहमी से उसी को 50 टुकड़ों में काट दिया. हृदयहीनता (Heartlessness) ऐसी कि उन टुकड़ों को चील-कौओं और कुत्तों के लिए इधर-उधर फेंक दिया. सिर को इस तरह कुचल दिया कि कोई पहचान नहीं पाये.
क्यों पैदा हो गयी ऐसी घृणा
ऐसी नृशंसता हुई 22 वर्षीया आदिवासी इसाई युवती रूबिका पहाड़िन (Rubika Pahadin) के साथ. इसे किसी और ने नहीं, उसके 25 वर्षीय पति दिलदार अंसारी और ससुराल-परिवार के उन्मादी सदस्यों ने बेखौफ अंजाम दिया. उन हैवानों ने रूह कंपा देने वाली ऐसी जघन्यता क्यों की, पुलिस के खुलासे के बाद भी रहस्य मुकम्मल रूप में खुला नहीं है. अदालत में सुनवाई के दरम्यान खुल जाये, तो वह अलग बात होगी. दो-ढाई साल से प्यार का पाठ पढ़-पढ़ा रहे दिलदार अंसारी (Dildar Ansari) ने घटना से करीब डेढ़ माह पूर्व रूबिका पहाड़िन को पत्नी बनाया था. घर वालों को यह मंजूर नहीं था. पर, इस अल्प अवधि में ही ऐसा क्या हो गया कि रूबिका पहाड़िन को बलि चढ़ा देने जैसी घृणा उसमें पैदा हो गयी? उस प्यार की बलि जिसे पाने के लिए उसने अपनों से बैर मोल ले सबसे रिश्ता तोड़ लिया था. सब कुछ भूल दिलदार अंसारी के प्यार में झूम उठी थी, डूब गयी थी. धर्म से अलग प्यार में निमग्नता की जानकारी घरवालों को मिली तो उन सबने विरोध किया.
पच नहीं पायी ‘सास-ससुर’ को!
मगर रूबिका पहाड़िन को जमाना दुश्मन लगने लगा. उसे अपने मां-बाप और भाई-बहन पर नहीं, भरोसा था तो सिर्फ दिलदार अंसारी पर. उसी के साथ जिंदगी बिताना चाहती थी. सबको छोड़ दिलदार अंसारी के साथ ख्यालों और ख्वाबों में इतना खो गयी कि जिंदगी की तपिश को महसूस नहीं कर पायी, भरोसे को पहचान नहीं पायी. धर्म (Religion) से इतर संबंध को रूबिका पहाड़िन के मां-बाप मन मसोसकर मान गये. परन्तु, ‘सास-ससुर’ को वह पच नहीं पायी. भावना में आ पति भी अपने मां-बाप के साथ हो गया. शायद उसने कहा भी था -‘रूबिका पहाड़िन से प्यार करता था. लेकिन, वह हमारे समाज की नहीं थी. इसलिए हम सबने रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया.’
डोंडा पहाड़ का है यह मामला
हैवानियत को भी आंसू बहाने को बाध्य कर देने वाला यह वाकया झारखंड (Jharkhand) राज्य के साहिबगंज जिला का है. बोरियो प्रखंड के डोंडा पहाड़ का. वहां के सुर्जा पहाड़िया और चांदी पहाड़िन की पुत्री रूबिका पहाड़िन छह भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर थी. दुर्भाग्यभरी उसकी कहानी बड़ी विचित्र है. शादी नहीं हुई थी. दिलदार अंसारी के झांसे में आने से पहले स्वजातीय युवक राजीव माल्टो के साथ रहती थी. बुद्धिनाथ पहाड़िया के पुत्र राजीव माल्टो से छह साल की एक बेटी है. नाम रिया है. नानी चांदी पहाड़िन और मौसी शीला पहाड़िन के साथ रहती है. बड़ी बहन शीला पहाड़िन ने भी इस बात की तसदीक की कि रूबिका पहाड़िन की राजीव माल्टो से शादी नहीं हुई थी. दोनों साथ रहते थे. उसी दौरान रिया का जन्म हुआ. बेटी पैदा होते ही राजीव माल्टो उसे और उसकी मां रूबिका पहाड़िन को छोड़कर चला गया.
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बस साथ रहते हैं…
जानकारों की मानें तो, इस आदिवासी समाज (Tribal Society) में परंपरा है, सांस्कृतिक रिवायत है कि अधिकतर जोड़े शादी नहीं करते. बस साथ रहते हैं. ऐसे में लड़कियों का बिना शादी के प्रेमी के साथ रहना और बच्चे पैदा करना कोई बड़ी बात नहीं है. विवाद तब खड़ा होता है जब किसी लड़की को दूसरे समुदाय या जाति के लड़के से प्यार हो जाता है. हालांकि, ऐसे ज्यादातर मामलों को भी आपसी सहमति से सुलझा लिया जाता है. यह संभवतः पहला मामला है कि इस तरह के रिश्ते को लेकर किसी लड़की के साथ ऐसी क्रूरता हुई. राजीव माल्टो बंदरकोला के बगल के पथरघट्टा गांव का रहने वाला है, ऑटो चलाता है. उसका कहना रहा कि 2019 में ही रूबिका पहाड़िन से अलगाव हो गया था. उसे उसने नहीं छोड़ा, रूबिका पहाड़िन ने ही उसे छोड़ दिया था. साल भर बाद 2020 में उसने बांझी के टंडोला पहाड़ की सरिता पहाड़िन से शादी कर ली. उसके बाद रूबिका पहाड़िन से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं रहा.
सबको थी रिया की चिंता
रूबिका पहाड़िन की दादी भी हैं, मैसी पहाड़िन. इस बात को लेकर वह खासे चिंतित हुईं कि रिया की देखरेख कौन करेगा? रिया के नाना सुर्जा पहाड़िया और नानी चांदी पहाड़िन को भी इसकी चिंता हुई थी. वक्त ने उपाय खोज दिया. डोंडा पहाड़ बोरियो प्रखंड मुख्यालय से तकरीबन 19 किलोमीटर दूर है. पहाड़ पर बसे इस गांव तक जाने के लिए सीधा कोई रास्ता नहीं है. बरमसिया मैदान से करीब एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. इस कारण समुचित विकास नहीं हो पाया है. मैसी पहाड़िन 30 घरों और 250 लोगों की आबादी वाले इस गांव की प्रधान हैं. गांव के अधिकतर लोग नगरों-महानगरों में रोजी-रोटी तलाशते हैं. यहां जो रहते हैं उनका मुख्य पेशा मजदूरी एवं जंगल से लकड़ी काटकर बेचना है. अधिकतर लोग ईसाई धर्म के हैं.
सभी चाहते हैं न्याय
कायराना करतूत के रूप में बेवजह मौत के मुंह में झोंक दी गयी रूबिका पहाड़िन के परिजन न्याय चाहते हैं. अनाथ (Orphan) हो गयी रिया का बेहतर भविष्य चाहते हैं. आरसेन पहाड़िया रूबिका पहाड़िन का भाई है. पढ़ाई उसकी मैट्रिक तक ही हुई है. आरसेन पहाड़िया और शीला पहाड़िन की मांग है कि जिन दरिंदों ने उनकी बहन के टुकड़े-टुकड़े किये उन सबको फांसी (Execute) की सजा मिले.
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