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कला : विजय कुमार जैन…छायांकन के अग्रणी कलाकार

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अवधेश अमन
02 अक्तूबर 2024

छायांकन भी चाक्षुष कला की एक विधा है. अब इसे दृश्य या चाक्षुष कला (Visual Arts) से अलग नहीं देखा जाता, इसलिए कि इसमें भी हम इसकी आंतरिक संवेदना (Inner Sensation) देख सकते हैं. इसमें सम्पूर्ण जीवन-जगत को देख सकते हैं. वह सब इसमें देख पाते हैं, जो एक छायाकार की जागरूक और संवेदनशील दृष्टि (Sensitive Vision) कुछ ही क्षणों में उसे अपने कैमरे में कैद कर लेती है. वह छाया, जो प्रायः दुर्लभ होती है. इसी चाक्षुष विधा के अग्रणी छायाकार हैं सत्तर वर्षीय विजय कुमार जैन. सम्प्रति पटना में रह रहे मुंगेर के मूल निवासी विजय कुमार जैन लगभग पचास वर्षों से नियमित छायांकन कर रहे हैं और यही इनका जीवन है. इस बीच छायांकन के बहुत जटिल दिनों से लेकर अब तक निरंतर बदलते बेहतर संसाधनों के साथ छायांकन के इनके अनुभवों ने क्रमशः इनकी दृष्टि को परिमार्जित किया है.

दृश्य संवेदना और दृश्य संवाद
मुख्य रूप से पिक्टोरियल और नेचरिस्ट श्रेणी के छायांकन के साथ इन्होंने जर्नलिज्म फोटोग्राफी भी की है. मगर इनके छायांकन में सबसे बड़ी बात है. दृश्य-संवेदना. यह दृश्य-संवेदना बहुत वैचारिक भी होती है, जो हमारे हृदय और मस्तिष्क को भी प्रभावित करती है. एक सात्विक और समर्थ आस्था भी होती है इसमें. हम जब किसी छायाकृति में किसी दृश्य रूप को देखते हैं तो सहसा उन क्षणों के साथ एक दृश्य-संवाद को भी महसूस करते हैं. गत वर्ष और इस वर्ष भी ओडिसा के मंगलाजोड़ी पक्षी विहार में जिन पखेरूओं को इन्होंने निहारा है और उनकी प्रायः अदृश्य रहने वाली क्रीड़ा देखी है, इन्हें देखकर हमें बहुत ही आत्मीय अनुभूति (Intimate Feeling) होती है. इनके छाया चित्रों को कुछ देर तक निहारने के बाद हम भी उन क्षणों और दृश्यों को जी सकते हैं.

दृष्टि गांव की पगडंडी और खेतों पर भी
पिक्टोरियल श्रेणी में इन्होंने बिहार की सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) को अपने छायांकन का विषय बनाया है, जिसमें छठ पूजा, बोधगया, पावापुरी, नालंदा, सोनपुर, मंदार आदि स्थलों के लगभग दो लाख दुर्लभ और अनुपम दृश्य इन्होंने अपने कैमरे से उतारा है. गांव की पगडंडी और खेतों पर भी इनकी दृष्टि गयी है. इन सब के साथ छायांकन पर इनसे बात करना भी बहुत प्रभावी लगा जब मैने इनसे प्रख्यात छायाकार रघु राय, टी काशीनाथ, दयानिता सिंह तथा लन्दन के प्रख्यात फोटो जर्नलिस्ट जॉन थॉमसन पर बात की. 1877 में ही प्रकाशित थॉमसन की प्रसिद्ध पुस्तक है ‘स्ट्रीट लाइफ इन लन्दन’. मेरी दृष्टि में यह किताब फोटो जर्नलिज्म की अब तक की संभवतः सबसे श्रेष्ठ किताब है. बहरहाल, विजय कुमार जैन (Vijay Kumar Jain) भी किताबों की दुनिया से अलग नहीं हैं.


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मौन नहीं मुखर हैं छाया चित्र
इनकी भी एक चर्चित किताब ‘बिहार के जैन तीर्थ’ का उल्लेख करना चाहूंगा. इस पुस्तक में जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों और उनके सुन्दर तथा मनोरम स्थलों के प्रभावशाली छायांकन (Impressive Cinematography) प्रकाशित हैं. साथ ही उनका इतिहास भी इन्होंने लिखा है. इनके छाया चित्रों के साथ इनकी दूसरी चर्चित पुस्तक है ‘वाराणसी के जैन तीर्थ’. एक जागरूक सृजनशील (Conscious Creative) छायाकार के रूप में विजय कुमार जैन की निरंतर क्रियाशीलता है. अब तक इनके छायांकन के लिए अखिल भारतीय स्तर के कुछ उल्लेखनीय पुरस्कार भी इन्हें प्राप्त हुए हैं. ‘डिस्कवर इंडिया’ सरीखी कुछ पत्रिकाओं ने भी इनके छाया चित्रों को प्रमुखता से प्रकाशित किया है. इसलिए कि इनके छाया चित्र मौन नहीं, मुखर हैं. उनमें एक जीवन्त चेतना भी है.

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