बिहार प्रदेश कांग्रेस : नहीं चल पाया भक्तचरण का दलित कार्ड!
बिहार प्रदेश कांग्रेस के नये अध्यक्ष के चयन को लेकर पार्टी में जो कशमकश है उसकी अंतर्कथा की पहली कड़ी पेश है. यह कथा दो और किस्तों में प्रस्तुत की जायेगी….
राजेश पाठक
16 अगस्त
पटना. बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से विधान पार्षद डा. मदनमोहन झा की विदाई अब करीब है. कारण सांगठनिक निकम्मापन नहीं, तीन वर्षों का ठहराव भरा कार्यकाल पूरा हो जाना है. कार्यकाल में विस्तार की संभावना इसलिए नहीं बनती है कि उपलब्धि के खाते में शून्य ही शून्य भरा है. डा. मदनमोहन झा की तय विदाई की तरह प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी भक्तचरण दास की इच्छा के अनुरूप नये प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर एक दलित नेता की ताजपोशी भी करीब-करीब तय हो गयी थी. नाम तक सार्वजनिक कर दिया गया था. पर, अंदरूनी तौर पर पार्टी में धीरे से ही सही, विरोध का स्वर ऐसा उठा कि दलित अध्यक्ष का मामला फिलहाल गौण पड़ गया है. लेकिन, संभावना पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है. इसलिए भी नहीं कि भक्तचरण दास ने खुले रूप में दलित कार्ड खेलकर कांग्रेस नेतृत्व को पशोपेश में डाल दिया है. एक तरफ दलित तो दूसरी तरफ गैर दलित यानी सवर्ण. न उगलते बन रहा है और न निगलते. अध्यक्ष पद की उम्मीद अनेक गैर दलित नेताओं, विशेष कर सवर्ण नेताओं ने भी बांध रखी है, मुस्लिम नेताओं ने भी. भक्तचरण दास की दलित प्रदेश अध्यक्ष संबंधित घोषणा से उनमें निराशा भर गयी. इसके बावजूद देव योग से पद टपक पड़ने की आस बनी रही.
वैसे तो राजनीति में कब क्या हो जायेगा, यह कहना कठिन है, पर प्रदेश अध्यक्ष पद की बाबत अपने भविष्य से गैर दलित कांग्रेस नेता चिंतित हो उठे. मामला दलित से जुड़ा था इसलिए खुलकर ज्यादा उछल कूद नहीं मचा उन सब ने कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष ही मसले को रखना बेहतर समझा. संयोगवश वह अवसर बहुत जल्द मिल गया. विधायक दल में भगदड़ की गहरायी आशंका के बीच राहुल गांधी ने दिल्ली में बिहार के कांग्रेस विधायकों एवं बड़े नेताओं की बैठक बुलायी. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी विमर्श का एक मुद्दा रहा. कारण कि नये प्रदेश अध्यक्ष के सवाल पर छायी अप्रत्याशित खामोशी से तूफान पूर्व जैसी शांति का संदेह पैदा हो गया था. हालांकि, मद्धिम स्वर में ही सही, एक तबके में कांव -कांव की स्थिति बनी हुई थी. एक तरफ दलित प्रदेश अध्यक्ष ही क्यों का मुद्दा सुलग रहा था, तो दूसरी तरफ दलित में ही कई दावेदार उभर आये थे. सब के सब खुद को अधिक सक्षम व समर्थ साबित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे थे. इस मुद्दे पर राहुल गांधी के साथ विमर्श में तर्क रखा गया कि बिहार के वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक समीकरणों को नजरअंदाज कर प्रदेश अध्यक्ष का चयन पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है. कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक डा. अखिलेश प्रसाद सिंह, निखिल कुमार, अनिल शर्मा, प्रेमचंद्र मिश्र आदि का कहना रहा कि निर्णय पार्टी के व्यापक हित को दृष्टिगत रख लिया जाना चाहिये. इस बैठक से पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा सांगठनिक मामलों के प्रभारी कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल के जरिये अपना मंतव्य कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी तक पहुंचा चुके थे. उनका स्पष्ट कहना है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की बाबत भक्तचरण दास की सोच व्यावहारिक नहीं है. बताया जाता है कि प्रदेश अध्यक्ष के संभावित नाम पर उठे विक्षोभ के मद्देनजर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार से इस पद के लिए संपर्क किया. उन्होंने अनिच्छा जाहिर कर दी. पूर्व मंत्री डा. अशोक कुमार की इच्छा की बात है तो वह कांग्रेस नेतृत्व को ही स्वीकार नहीं है. शायद उनका इतिहास बाधक बना हुआ है. विकल्पहीनता की स्थिति में किस्मत खुल जाये, तो वह अलग बात होगी.