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बिहार प्रदेश कांग्रेस : दोष सिर्फ डा. मदन मोहन झा का ही नहीं

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बिहार प्रदेश कांग्रेस के नये अध्यक्ष के चयन की अंतर्कथा की दूसरी कड़ी…

राजेश पाठक
17 अगस्त 2021

पटना. प्रदेश कांग्रेस के नये अध्यक्ष के संदर्भ में पार्टी के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास के समर्थकों-हिमायतियों का अपना तर्क है. उनके मुताबिक कांग्रेस की राजनीति में किसी पद की दावेदारी और किसी निर्णय के विरोध का कोई मायने-मतलब नहीं होता. आलाकमान का निर्णय ही सर्वमान्य होता है. नये प्रदेश अध्यक्ष का नाम तय हो चुका है. विधिवत घोषणा संभवतः कांग्रेस विधायक दल में टूट की आशंका को दृष्टिगत रख नहीं की जा रही है. हालांकि, विधायक दल में टूट की आशंका में कोई खास दम नहीं है. यह सच है कि कांग्रेस के कुछ विधायक सत्ता सुख के लिए आकुल-व्याकुल हैं. उनकी इस आकुलता को कथित रूप से टूट कराने की सुपारी ले रखे जद(यू) कोटे के कांग्रेसी पृष्ठभूमि के एक मंत्री निरंतर उत्प्रेरित-विस्तारित भी कर रहे हैं. पर काफी मशक्कत के बाद भी वैधानिक छलांग लगाने लायक विधायकों की संख्या जुट नहीं पा रही है. राज्य की राजनीति जिस ढंग से हिचकोले खा रही है उसमें शायद जुट भी नहीं पायेगी. ऐसे में आजकल में नये प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए भक्तचरण दास द्वारा तय नाम की घोषणा हो जाये तो वह अचरज की कोई बात नहीं होगी. बहरहाल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. मदनमोहन झा पर पार्टी के अंदर और बाहर भी, तंज कसा जाता है कि तीन साल के लम्बे कार्यकाल में भी वह प्रदेश कमेटी का गठन नहीं कर पाये. पूरी पार्टी को महज चार कार्यकारी अध्यक्षों – डा. अशोक कुमार, श्यामसुंदर सिंह धीरज, समीर कुमार सिंह तथा कौकब कादरी के कंधों पर डाल रखे हैं. बाद में कुछ प्रवक्ताओं का भी जुड़ाव संगठन से हुआ. हालांकि, कांग्रेस की जो सांगठनिक कार्यशैली है उसमें इस निकम्मेपन के लिए अकेले डा. मदनमोहन झा को ही जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता. दोष कांग्रेस नेतृत्व का भी है. ऐसे निर्णयों के लिए प्रदेश अध्यक्ष को वह आजादी नहीं देता है, किसी सांगठनिक पहल को ससमय स्वीकृत भी नहीं करता है. आमतौर पर मामले को बेबजह लटकाये रखता है. अशोक चैधरी के अध्यक्ष पद से हटने के बाद के तकरीबन चार वर्षों के दौरान कमेटी गठन पर उसने कभी ध्यान ही नहीं दिया. वैसे, बिहार कांग्रेस में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. वर्षों पूर्व तारिक अनवर जब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे तब उनका कार्यकाल भी बिना कमेटी बनाये गुजर गया था. डा. मदन मोहन झा के बाद के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के कार्यकाल में क्या होता है, यह देखना दिलचस्प होगा.

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