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रानी सिंह देंगी अब श्रवण कुमार को चुनौती !

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अरुण कुमार मयंक
26 अगस्त 2021

बिहारशरीफ. इसमें अभी वक्त है, लेकिन पृष्ठभूमि तैयार हो रही है. 2025 के विधानसभा चुनाव में नालंदा में ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार को रानी सिंह की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. रानी सिंह लंबे समय से राजनीतिक रूप से सुस्त पड़े पूर्व बाहुबली विधायक रामनरेश सिंह की पुत्रवधू हैं. पंचायत चुनाव के जरिये राजनीति में प्रवेश की उनकी जोरदार तैयारी है. वह नालंदा जिला परिषद के बेन निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगी, ऐसा उनके निकट के लोगों का कहना है.बेन ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार का गृह क्षेत्र है. हालांकि, जिला परिषद के चुनाव में जीत उनके प्रतिद्वंद्वी खेमे की ही होती रही है. 2016 में राजद नेता अनिल कुमार की पत्नी चन्द्रकला कुमारी की जीत हुई थी. जिला परिषद के चुनाव में जीत हो या नहीं, रानी सिंह 2025 में नालंदा विधानसभा क्षेत्र में भी किस्मत आजमायेंगी. उस क्षेत्र से उनके ससुर रामनरेश सिंह चुनाव लड़ते थे. पिछले कई चुनावों से श्रवण कुमार निर्वाचित हो रहे हैं. पिता की राजनीतिक विरासत संभालने के मकसद से 2020 के चुनाव में रामनरेश सिंह की पुत्री शगुन सिंह सक्रिय हुई थीं.नालंदा में नहीं, बाढ़ विधानसभा क्षेत्र में. प्रयास राजद की उम्मीदवारी हासिल करने का हुआ था. शायद लालू-राबड़ी परिवार से घनिष्ठता रखने वाले बिस्कोमान के अध्यक्ष और राजद के विधान पार्षद सुनील सिंह ने आश्वासन दे रखा था.

श्रवण कुमार और चन्द्रकला कुमारी.

राजनीतिक हलकों में अपने सिमटे प्रभाव के बूते रामनरेश सिंह ने भी हाथ-पांव चलाया था. दावेदार कई थे. कोई तेजस्वी प्रसाद यादव को विवशता में घेर रखा था, तो कोई तेजप्रताप यादव को. कुछ ने सीधे लालू प्रसाद से सूत्र जोड़ लिया था. किसको हां और किसको ना कहा जाता. महागठबंधन में बाढ़ की सीट कांग्रेस को दे दी गयी. राजद के तमाम दावेदार शांत पड़ गये. शगुन सिंह भी मुंबई लौट गयीं. उनके पति संभवतः वहीं कहीं काम करते हैं. यह तो रही बाढ़ से राजद की उम्मीदवारी मिलने न मिलने की बात, शगुन सिंह की अप्रत्याशित दावेदारी पर लोगों के दिमाग में तब कई तरह के सवाल उठे थे. रामनरेश सिंह की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए पुत्री शगुन सिंह ही मैदान में क्यों कूदीं? पुत्र राजा प्रियतम या फिर पुत्रवधू रानी सिंह क्यों नहीं? शगुन सिंह पैतृक विधानसभा क्षेत्र नालंदा की बजाय बाढ़ से क्यों लड़ना चाहती थीं? नालंदा में उनकी सियासी सक्रियता के सवाल पर मायके में कोई विवाद तो नहीं खड़ा हो गया था? इन तमाम सवालों का जवाब रानी सिंह के राजनीति में उतरने के निर्णय में समाहित है. अब एक सवाल यह भी उठता है कि रामनरेश सिंह के इकलौते पुत्र राजा प्रियतम क्यों नहीं? दरअसल, राजा प्रियतम में राजनीति के तिकड़मों को समझने और उनसे जूझने की क्षमता का अभाव दिख रहा है. इस दृष्टिकोण से रानी सिंह को उपयुक्त माना जा रहा है.

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