गाथा गहलौर की: हथौड़ा चलता रहा छेनी मचलती रही…
‘पर्वत पुरुष’ दशरथ मांझी फिर चर्चा में हैं. अप्रत्याशित घटनाक्रम में जदयू ने दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ मांझी और उनके दामाद मिथुन मांझी को राजनीति में उड़ान भरने और उससे अपने जनाधार को मजबूत बनाने के ख्याल से खुद से जोड़ लिया है. जुड़ाव स्वाभाविक है या जबरन यह कहना कठिन है. स्वाभाविक जुड़ाव है तो इससे कोई बेहतरी आयेगी, फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता. बीते वर्षों में दशरथ मांझी और उनके परिवार के लोगों के साथ जो छल हुआ, उससे बेहतरी की कोई खास उम्मीद नहीं जगती है. बहरहाल, किन परिस्थितियों में उन्हें जदयू से जोड़ा गया, गहराई से विश्लेषण करने पर निष्कर्ष ‘राजनीतिक प्रहसन’ के अलावा शायद और कुछ नहीं निकलेगा. ‘पर्वत पुरुष’ और उनके परिजनों के साथ पूर्व में अच्छा बुरा क्या सब हुआ, उस पर आधारित किस्तवार आलेख की यह पहली कड़ी है:
दीपक कोचगवे
01 जुलाई 2023
Gaya : जिन्दगी के सफर में बीच राह साथ छोड़ गयी जीवन संगिनी (Life Partner) के प्रति अगाध प्रेम में बंधा अखंड संकल्प था कि न वैशाख-जेठ की तपती धूप से उठती तपन कभी झुलसा पायी और न पूस-माघ की कपकपाती ठंड इरादे में कोई ठिठुरन पैदा कर पायी. सावन-भादो की झमाझम बारिश ने भी कभी कोई व्यवधान खड़ा नहीं किया. एक सुर में संकल्प लक्ष्य की ओर बढ़ता रहा. मजबूत हाथों में थमा हथौड़ा बिना रुके, बिना थके, बिना किसी की सुने अनवरत चलता रहा. हथौड़े की चोट खाती, इठलाती, मचलती छेनी पहाड़ का सीना छेदती रही. 22 वर्षों के तपस्या समान कठिन परिश्रम (Hard Labour) ने अंततः पहाड़ को फाड़ दिया. जीवन संगिनी की आत्मा को शांति मिली और उन्हें अपूर्व सुकून! अब कोई फगुनिया न इस पहाड़ से गिरेगी और न समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने से दम तोड़ेगी! यही था प्रण ‘पर्वत पुरुष’ दशरथ मांझी (Dashrath Manjhi) का, जिसे उन्होंने पहाड़ से गिरी हुई पत्नी की समय पर अस्पताल (Hospital) नहीं पहुंच पाने से मौत के वक्त ठाना था. इस प्रतिज्ञा को 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊंचे अभिशप्त पहाड़ को सिर्फ छेनी-हथौड़ी से जमींदोज कर पूरी की थी. पहाड़ टूटा और वहां सड़क बन गयी.
क्या मिला खुशफहमी के सिवा!
दशरथ मांझी गया जिले के मोहरा (Mohra) प्रखंड के गहलौर (Gahlore) गांव के थे. मुगल शहंशाह शाहजहां (Shahjehan) ने अपने प्यार को स्मृति में बनाये रखने के लिए ताजमहल (Tajmahal) बनवा दिया. दशरथ मांझी ने अपनी फगुनिया (Fagunia) की खातिर पहाड़ का सीना चीर प्यार को अमरत्व दे दिया. पत्नी के प्रति दोनों के प्रेम में बहुत बड़ा फर्क है. शाहजहां ने दोहराव न हो इसलिए ताजमहल के शिल्पकारों का कत्ल करवा दिया. प्रेम को श्रम न्योछावर से दूसरे लोग भी प्रेेरित हों, दशरथ मांझी ने पहाड़ तोड़कर बीच से रास्ता बना दिया. एक में स्वार्थ था तो दूसरे में समर्पण! दशरथ मांझी को फगुनिया को खोने का गम तो था ही, अगली पीढ़ी की भी चिंता थी. पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने के संकल्प का यही मूल तत्व था. लेकिन, बड़ा सवाल यहां यह है कि दशरथ मांझी को समाज से क्या मिला? सरकार ने क्या दिया? ‘गरीबों के शाहजहां’ और ‘पर्वत पुरुष’ की खिताबी खुशफहमी के सिवा? खिताबी खुशफहमी से पेट की भूख तो नहीं मिटती?
परिवार के खाते में फाकाकशी!
प्रतिज्ञाबद्ध दशरथ मांझी के पहाड़ तोड़ने के चमत्कारिक कार्य से विविध रूपों में कमाई दूसरों ने की. परिवार के खाते में फाकाकशी ही रही. परिजनों को ऊंचे ख्वाब दिखा दशरथ मांझी के अति असाधारण परिश्रम (Extraordinary Effort) को आर्थिक दृष्टि से भुनाने की कोशिश कई लोगों ने की. कुछ को सफलता भी मिली. उनके जुनूनी व्यक्तित्व पर छोटी-बड़ी कई फिल्में बनीं. लेकिन, जब तक धरा पर रहे, फिल्मकारों की उन तक पहुंच नहीं हुई. वैसे, 2006 में उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information and Broadcasting) के फिल्म प्रभाग को वृत्तचित्र बनाने पर सहमति दी थी. उसका क्या हुआ, नहीं मालूम. 17 अगस्त 2007 को दशरथ मांझी स्वर्ग सिधार गये. तब जीवटता भरी उनकी जिंदगी पर 2012 में एक फिल्म बनी – ‘द मैन हु मूव्ड द माउंटेन’. फिल्म प्रभाग द्वारा बनायी गयी इस फिल्म के निर्देशक कुमुद रंजन (Kumud Ranjan) थे. इसकी कमाई का थोड़ा-बहुत भी हिस्सा या इसके एवज में दूसरा कोई आर्थिक लाभ दशरथ मांझी के परिवार को मिला या नहीं, यह भी नहीं मालूम.
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उनका भी था कमाई पर हक
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि ऐसी फिल्मों की कमाई पर कुछ न कुछ हक पटना के वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार अरुण सिंह (Arun Singh) का भी बनता है. आधार यह कि दशरथ मांझी के हाड़तोड़ परिश्रम को आम अवाम के बीच 1985 में पहली बार उन्होंने ही लाया था. पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने आलेखों के जरिये. फिल्म बनाने वाले किसी भी निर्माता-निर्देशक का ध्यान इस ओर शायद ही गया होगा. उसी कालखंड में प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक केतन मेहता (Ketan Mehta) ने 2012 में ‘द माउंटेन मैन’ के नाम से फिल्म बनाने की घोषणा की. दशरथ मांझी के परिवारवालों और उनके प्रति सहानुभूति रखने वाले लोगों में उम्मीद जगी कि अब इस परिवार को आर्थिक मजबूरियों से मुक्ति मिल जायेगी. लेकिन, वैसा कुछ हुआ नहीं.
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