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माफिया राज: साहिबगंज में है ‘बाबा’ का बड़ा नाम!

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अमन राय
11 जुलाई 2023

Sahibganj : अधिकारियों, जन-प्रतिनिधियों, ठेकेदारों, कारोबारियों एवं स्थानीय दबंगों के आपराधिक गठजोड़ की कानून विरुद्ध गतिविधियों को माफिया राज कहा जाता है. लोग इसे गुंडों का शासन यानी गुंडा राज और जंगल का कानून यानी जंगल राज भी कहते हैं. माफियागिरी वैसे तो प्रायः हर क्षेत्र में चलती है, पर इसकी जड़ें सार्वजनिक क्षेत्र के निर्माण कार्यों, खनिज उत्खनन, वनोत्पाद तस्करी आदि में गहराई तक जमीं होती हैं. बिहार (Bihar) की सीमा से सटे साहिबगंज जिला की भी यह नियति बनी हुई है. यहां दीर्घकाल से माफिया राज कायम है. खनिज संपदाओं से परिपूर्ण पहाड़ों पर छायी हरियाली लूटने की होड़ है. कोयला, पत्थर, बालू के वैध-अवैध उत्खनन एवं वनोत्पादों के दोहन के सिलसिले में पहाड़ों को उजाड़-कबाड़ मुंडा-खोखला बनाया जा रहा है, अस्तित्व मिटाया जा रहा है. यह सब चोरी-छिपे नहीं, खुलेआम होता है, बेखौफ! भय इसलिए नहीं कि इन हरकतों को अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता की शह और सरपरस्ती है. कुछ समय पूर्व प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) का शिकंजा कसा, तो थोड़े समय के लिए ठहराव आ गया. पर, उसमें स्थायित्व नहीं रहा.

ऐसे बनती है हैसियत
दल कोई हो, सत्तासीन कथित तौर पर धंधेबाजों को संरक्षण देता है, विपक्ष शोर मचाता है. यह परंपरा संभवतः पहाड़ों पर लूट की संस्कृति पनपने के समय से ही बनी हुई है. यहां माफियाओं के कई सिंडिकेट हैं. अलग-अलग ‘सरदार’ हैं. परन्तु, ‘अखंड राज’ की हैसियत किसी एक की होती है, जो राज्य के सत्ता समीकरण के हिसाब से बनती-बिगड़ती रहती है. 2019 से पहले के भाजपा शासन काल में प्रकाश चन्द्र यादव उर्फ मुंगेरी यादव का सिक्का चलता था. 2019 के दिसम्बर में झामुमो की सत्ता कायम हुई तब से राजेश यादव उर्फ दाहू यादव और बच्चू यादव उर्फ पहलवान की आड़ में पंकज मिश्र का चल रहा है. ऐसी साहिबगंज की सामान्य समझ है. ‘हैसियत’ का कायांतरण कैसे हुआ, इस दरम्यान क्या-क्या हुए और इसके किरदारों की माफियागिरी में जड़ें कैसे जमी हैं, यह आलेख मुख्य रूप से उसी पर केन्दित है.


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हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि
चर्चा पहले झारखंड (Jharkhand) की राजनीति में हलचल पैदा कर हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की सरकार को अस्थिरता के भंवर में डालने वाले पंकज मिश्र उर्फ बाबा (Pankaj Mishra urf Baba) की. 2019 से पहले पंकज मिश्र झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के साधारण कार्यकर्त्ता थे. लेकिन, उस छोटी हैसियत की भी राजनीति में वकअत थी, गैर आदिवासियों में लोकप्रियता थी. परन्तु, पहचान स्थानीय ही थी. साहिबगंज से बाहर उन्हें कुछ ही लोग जानते-पहचानते थे. वैसे, झामुमो के अघोषित सुप्रीमो हेमंत सोरेन से जान-पहचान थी, जो बाद में निकटता में बदल गयी. वजह उनकी वही लोकप्रियता थी जो क्षेत्र में भाजपा (BJP) का पांव जमने नहीं दे रही है. हेमंत सोरेन से नजदीकी रहने से इसका स्वाभाविक लाभ झामुमो कोे मिल रहा है. पंकज मिश्र भाजपा के प्रलोभन में न आ जायें और झामुमो का खेल न बिगड़ जाये, मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत सोरेन ने उन्हें अपना विधायक प्रतिनिधि बना दिया. झामुमो में केन्द्रीय सचिव का सांगठनिक पद भी दे दिया.

इशारे पर नाचने लगा प्रशासन
हेमंत सोरेन 2019 में बरहेट विधानसभा क्षेत्र (Barhait Assembly Constituency) से निर्वाचित हुए थे. विधायक प्रतिनिधि बनते ही पंकज मिश्र के अरमानों को पर लग गये. मुख्यमंत्री का विधायक प्रतिनिधि, साहिबगंज जैसे पिछड़ा क्षेत्र में रुतबा-रुआब झाड़ने के लिए काफी था. लोग कहते हैं कि उन्होंने वैसा किया भी. कुछ ही समय बाद साहिबगंज जिले में ही नहीं, संपूर्ण संताल परगना में वह हेमंत सोरेन के सरकारी- गैरसरकारी तमाम काम देखने लग गये. सत्ता से इस नजदीकी का असर हुआ कि प्रशासन उनके इशारे पर नाचने लगा, पंकज मिश्र ने खुद का ‘साम्राज्य’ स्थापित कर लिया. ऐसा कि संपूर्ण इलाके में उनकी मर्जी चलने लगी. इसका असर हुआ कि पत्थर एवं बालू के वैध-अवैध खनन एवं परिवहन पर कायम प्रकाश चन्द्र यादव उर्फ मुंगेरी यादव (Prakash Chandra Yadav urf Mungeri Yadav) का एकाधिकार टूट गया. उस कारोबार पर पंकज मिश्र के निकट के लोग काबिज हो गये.

ऐसे होता है पत्थर खनन.

होती है लाखों की कमाई
पंकज मिश्र संरक्षित लोगों की दबंगता को खुद-ब-खुद सत्ता का अघोषित संरक्षण प्राप्त हो गया. हौसला इतना बढ़ गया कि झारखंड और बिहार की सीमा पर मिर्जा चौकी (Mirza Chowki) के समीप चेक पोस्ट लगाकर पत्थर लदे वाहनों से बेखौफ वसूली की जाने लगी. प्रति वाहन डेढ़ हजार से तीन हजार रुपये की वसूली. जानकार बताते हैं कि इस रूप में लाखों की कमाई होती थी. और की बात छोड़ दें, बोरियो के झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम (Lobin Hembram) ने अवैध वसूली के इस मामले को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के समक्ष उठाया था. सरकार के स्तर पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. वसूली अपनी रफ्तार में होती रही. बताया जाता है कि प्रवर्तन निदेशालय को पुष्ट-अपुष्ट ऐसी सूचना मिली थी कि अवैध उत्खनन एवं परिवहन में पंकज मिश्र की हिस्सेदारी थी. उसका आकलन है कि उस दरम्यान पंकज मिश्र की कमाई 42 लाख रुपये से अधिक की होती थी. लोग हैरान हुए कि वह रकम जाती कहां थी?

आखिर, धन गये कहां?
प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी में जब उनके ठिकानों से कुछ विशेष हासिल नहीं हुआ तो कथित काली कमाई के वे धन आखिर गये कहां? प्रवर्तन निदेशालय का आकलन यदि सही है तो इस राशि का बड़ा हिस्सा कहां पहुंचता होगा, यह बताने की शायद जरूरत नहीं. उसका आकलन यह भी है कि साहिबगंज से लेकर कटिहार (Katihar) तक निर्माणाधीन गंगा पुल और उसके पहुंच पथ के अगल-बगल पंकज मिश्र ने दो सौ एकड़ से अधिक जमीन खरीद रखी है. प्रवर्तन निदेशालय ने इन्हीं सब आरोपों की जांच के सिलसिले में 19 जुलाई 2022 को गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाल दिया. अब भी वह सलाखों के ही पीछे है, धंधा अपनी रफ्तार में आ गया है.

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