पोद्दार रामावतार अरुण : छायावादोत्तर सृजन क्षेत्र के सक्षम-समर्थ स्तंभ
अश्विनी कुमार आलोक
09 फरवरी 2024
पोेद्दार रामावतार अरुण विधान पार्षद भी रहे और फिल्म प्रमाणन बोर्ड (Film Certification Board) के सदस्य भी. देश के अनेक बड़े साहित्य पुरस्कार प्राप्त करने वाले मात्र प्रवेशिका उत्तीर्ण इस प्रखर कवि की वाणी और विद्वता इनकी चार दर्जन प्रकाशित पुस्तकों में अपनी संपूर्ण तेजस्विता के साथ आज भी उपस्थित है. उन्होंने रामकथा (Ramkatha) के सुयशदायी सूत्रों को वर्तमान समाज की जातीय एवं राजनीतिक विडंबनाओं के बीच प्रासंगिक बनाकर ‘अरुण रामायण’ नामक अपनी प्रसिद्ध काव्य कृति में प्रस्तुत किया था. इतिहास सम्मत तथ्यों पर आधारित उनकी काव्य कृति ‘अशोक पुत्र’ में सम्राट अशोक (Samrat Ashok) के कांतिवान और मर्यादापूरित पुत्र कुणाल (Kunal) के नेत्रदान प्रसंग एवं रूपवती तिष्यरक्षिता की असह्य तृष्णा का वर्णन कविता (Kavita) के समस्त मान-भावों को प्रतीकित करता है.
‘बाणाम्बरी’ और ‘कादंबरी’
काव्य कृति ‘बाणाम्बरी’ में भारतीय संस्कार, शील एवं ऐतिहासिक प्रतापों का सम्यक विश्लेषण हुआ है. शोण नदी के तट पर प्रीतिकूट में सातवीं शती के प्रदीप्त साहित्य पुरुष बाणभट्ट (Banbhatt) का जन्म हुआ था. वह शिव के भक्त थे. उन्होंने तीर्थों से ज्ञान एवं प्रतिभा संयोजित की थी. ‘कादंबरी’, ‘हर्ष चरितम्’ उनकी महान कृतियां रहीं. बाणभट्ट की प्रतिभा और प्रीति के समानांतर काव्यसुयश के सांस्कृतिक सोपानों का पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण ने ‘बाणभट्ट’ में विस्तृत विश्लेषण किया है. पुराणवर्णित विश्वमित्र का द्वंद्व, महर्षि वशिष्ठ (Vashishtha) के साथ उनकी मतभिन्नता एवं संकल्प से परिश्रम-सिद्धि के प्रयोगधर्मी व्यक्तित्व को पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण (Poddar Ramavatar Arun) ने महाभारती में चित्रित किया है. उन्होंने यह सिद्ध किया है कि विश्वामित्र (Vishwamitra) से मेनका (Menka) का परिचय और मिलन उनके ऋषित्व का दुर्बल पक्ष नहीं है, बल्कि यह किसी पुरुष का स्त्री के प्रति स्वाभाविक जैविकीय आकर्षण है.
रामावतार अरुण ने यह भी निरुपित किया है कि साधना से विश्वामित्र को विचलित करने आयी मेनका सिर्फ इन्द्र के षड्यंत्रों का सूत्र नहीं है, वह स्त्री की प्राकृतिक सरिता भी है, जो पुरुष के भुजपाशों में बंधकर हिलोरें लेने को आकुल है.
स्त्री की प्राकृतिक सरिता
रामावतार अरुण ने यह भी निरुपित किया है कि साधना से विश्वामित्र को विचलित करने आयी मेनका सिर्फ इन्द्र के षड्यंत्रों का सूत्र नहीं है, वह स्त्री की प्राकृतिक सरिता भी है, जो पुरुष के भुजपाशों में बंधकर हिलोरें लेने को आकुल है. अर्थात सिर्फ विश्वामित्र ही मोहित नहीं हुए, मेनका का भी सर्वांग तिरोहित हो गया-
देव-स्वाद से भिन्न कदाचित
रक्त-राग-रति श्यामा.
भूल गयी सुर स्वप्न
बंधी-सी भुजपाश में वामा
तरु से लिपटी लता रही
लिपटी-सी सुरभि निमग्ना.
कौन कहे हो गयी मेनका
भूपर कितनी नग्ना
बिसर गयी मेनका कि
अन्य स्वर्ग भी ऊपर
रही विचरती पुरुष संग
वह ऐच्छिक पुष्पित भूपर
दर्शन-चिंतन का आधार
‘विदेह’ में राजर्षि महाराज सीरध्वज ‘विदेह’ की गाथा काव्य के कलारूपों में विस्तृत हुई है. इस महाकाव्य में याज्ञवल्क्य, आर्तभाग, अश्वल, सामश्रवा के शास्त्रार्थ का उत्तम विवेचन हुआ है. ‘गांध्या’ में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की आत्मा और भारतीयता के संबंध को जितनी दार्शनिकता से उपस्थित किया गया है, उससे पोद्दार रामावतार अरुण के दर्शन-चिंतन का आधार स्पष्ट होता है. ‘स्वर्ग शृंगार’, ‘राष्ट्रशत्रु’, ‘राष्ट्र संन्यासी’, ‘कोशा’, ‘ गीतगाथा’, ‘गीत की नदी’, ‘क्रांतिहंस’, ‘राष्ट्र संघर्ष’, ‘कालिदास की आत्मकथा’, ‘अमिताभ की स्मृति यात्रा’, ‘कबीर’, ‘कृष्णाम्बरी’, ‘आलोचना के नये लोचन’, ‘यादों का इतिहास’, ‘अरुणायन’, ‘सूर श्यामा’, ‘ कार्ल मार्क्स’ जैसे उत्कृष्ट कथा-काव्य और महाकाव्य लिखकर पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण हिन्दी के छायावादोत्तर सृजन-क्षेत्र में सक्षम स्तंभ की तरह खड़े हुए.
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श्रेष्ठ प्रबंधात्मक कृतियां
उनके संबंध में डा. सीताराम सिंह (Dr Sitaram Singh) का कथन अत्यंत सार्थक है- ‘अक्सर, अरुण जी को प्रबंधात्मक कवि कहा जाता है. एक महत्वपूर्ण बात इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि गीत और कविता की रचना उन्होंने अधिक की है, किन्तु उसमें कथा, घटना और चरित्र विद्यमान रहते हैं. ‘बाणाम्बरी’, ‘महाभारती’ उनकी श्रेष्ठ प्रबंधात्मक कृतियों में हैं. छायावादोत्तर कविता के प्रतिनिधि कवि अरुण जी का संवेदन यंत्र मजबूत और चौकस है. संवेदनशील कविता के प्रति आग्रहशील रहता है और उसकी सृजनशीलता में काव्य-विधायी कल्पना सक्रिय रहती है. ऐसे कवि में परंपरा के मूल्य संदर्भ पाते हैं और प्रासंगिक होते हैं.’
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