पतंग की डोर हुई कमजोर : अख्तरूल की नजर अब दूसरी ओर!
अशोक कुमार
10 जून 2024
Kishanganj : इसे किसका दुर्भाग्य मानेंगे…एमआईएम (MIM) के प्रदेश अध्यक्ष विधायक अख्तरूल ईमान (Akhtarul Iman) का या किशनगंज की जनता का? बड़ी बेबाकी से गुलाबी उर्दू में मुसलमानों के हक की आवाज उठाने वाली इस सियासी शख्सियत को संसदीय चुनाव में लगातार हार का मुंह देखना पड़ रहा है. तो क्या हार की यह अनवरतता उन्हें राजनीति की राह बदलने को बाध्य कर देगी ? सीमांचल (Seemanchal) में एमआईएम की घटती लोकप्रियता और किशनगंज में अख्तरूल ईमान की अस्वीकार्यता से उठ रहा यह सवाल राजनीति (Politics) की हल्की फुल्की समझ रखने वाले दिमाग को भी मथ रहा है.
मैदान छोड़कर भाग गये
अख्तरूल ईमान राजद (RJD) की राजनीति की उपज हैं. दिवंगत पूर्व मंत्री तसलीम उद्दीन (Tasleem Uddin) से उन्होंने इसका ककहरा सीखा. 2009 में तसलीम उद्दीन अररिया (Araria) की राजनीति करने चले गये तब 2014 में सांसद बनने की महत्वाकांक्षा लिये अख्तरूल ईमान किशनगंज से जदयू (JDU) का उम्मीदवार बन गये. धर्मनिरपेक्ष मतों का बिखराव रोकने को ढाल बना बीच चुनाव मैदान छोड़ भाग गये. फिर एक दूसरे की जरूरतों के मद्देनजर एमआईएम की राजनीति से जुड़ गये. 2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल में एमआईएम को बड़ी कामयाबी मिली. अख्तरूल ईमान समेत एकमुश्त पांच विधायक निर्वाचित हुए. लेकिन, 2019 और 2024 के संसदीय चुनावों में एमआईएम के उम्मीदवार के तौर पर उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ गया. दोनों ही बार वह तीसरे स्थान पर रहे.
अमौर में मिली हताशा
2019 में 02 लाख 95 हजार 029 मत मिले तो 2024 में 03 लाख 09 लाख 264 मत. मतदाताओं की संख्या में वृद्धि के मद्देनजर उनकी प्राप्ति लगभग बराबर तो रही, पर उत्साह बढ़ाने वाली नहीं. हताशा उन्हें ज्यादा अमौर (amour) विधानसभा क्षेत्र में एमआईएम की दुर्गति से हुई. वह इसी अमौर से विधायक हैं. यही हताशा उन्हें राजनीति की दूसरी राह धरा दे सकती है. कैसे और क्यों, इन आंकड़ों से आसानी से समझा जा सकता है. पूर्णिया (Purnia) जिले के दो विधानसभा क्षेत्र अमौर और बायसी किशनगंज संसदीय क्षेत्र में समाहित हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में इन दोनों ही क्षेत्रों में एमआईएम की जीत हुई थी.
बढ़त नहीं बना पाये
लेकिन, 2024 के संसदीय चुनाव में वह दोनों क्षेत्रों में पिछड़ गयी. अमौर में पिछड़ना उसके लिए काफी सदमादायक रहा. इस रूप में कि अमौर से एमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल ईमान विधायक निर्वाचित हुए थे. संसदीय चुनाव में वही उम्मीदवार थे. इसके बाद भी बढ़त नहीं बना पाये. कांग्रेस (Congress) प्रत्याशी डा. जावेद आजाद (Dr. Javed Azad) को मिले 79 हजार 864 मतों की तुलना में 51 हजार 513 मतों में ही सिमट गये. यानी उन्हें 28 हजार 351 कम मत मिले. 2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो अख्तरूल ईमान को अमौर में 94 हजार 459 मत मिले थे. उसकी तुलना में यह संख्या 42 हजार 946 कम है.
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फिर हिम्मत जुटायेंगे
मतों के इस बड़े अंतर के मद्देनजर सवाल उठना स्वाभाविक है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में अमौर के अखाड़े में फिर उतरने की हिम्मत वह जुटा पायेंगे? शायद नहीं. विश्लेषकों का मानना है कि एमआईएम में बने रहे तो कोचाधामन (Kochadhaman) विधानसभा क्षेत्र की ओर मुखातिब हो सकते हैं. इसलिए कि इस क्षेत्र से वह पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं. 2020 में कोचाधामन में एमआईएम के इजहार असफी (Izhar Asafi) की जीत हुई थी. 79 हजार 893 मत प्राप्त हुए थे. फिलहाल वह राजद में हैं. कोचाधामन में संसदीय चुनाव में मतों की संख्या 14 हजार 857 कम अवश्य हो गयी, पर बढ़त एमआईएम की बनी रही. उसे 65 हजार 036 मत मिले. कांग्रेस 40 हजार 053 मतों पर अटक गयी.
बहादुरगंज में बढ़त
बात अब बायसी (biasi) की. 2020 में इस क्षेत्र से एमआईएम उम्मीदवार के रूप में सैयद रूकुनुद्दीन अहमद (Syed Rukunuddin Ahmed) निर्वाचित हुए थे. 68 हजार 416 मतों की प्राप्ति हुई थी. वह भी फिलहाल राजद में हैं. संसदीय चुनाव में एमआईएम को यहां 38 हजार 064 मत ही हासिल हो पाये. कांग्रेस को भारी बढ़त मिली. 79 हजार 864 मत प्राप्त हुए. कोचाधामन के बाद बहादुरगंज (Bahadurganj) ही ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां एमआईएम को बढ़त मिली है. 2020 में 85 हजार 855 मत हासिल कर एमआईएम के मोहम्मद अंजार नईमी (Mohammad Anzar Naeemi) विधायक निर्वाचित हुए थे. बाद में वह भी राजद से जुड़ गये. इस चुनाव में भी बढ़त बनाये रख एमआईएम ने 60 हजार 901 मत प्राप्त किये. 52 हजार 198 मतों के साथ कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही.
कहीं नहीं जायेंगे
थोड़े ही मतों के अंतर से कांग्रेस ठाकुरगंज (Thakurganj) विधानसभा क्षेत्र में भी पिछड़ गयी. जदयू वहां आगे रहा. जदयू को 71 हजार 943 तथा कांग्रेस को उससे 324 कम 71 हजार 619 मत प्राप्त हुए. 49 हजार 603 मतों के साथ एमआईएम तीसरे स्थान पर लुढ़क गयी. ये आंकड़े दर्शाते हैं कि एमआईएम का सीमांचल में अब 2020 जैसा उफान नहीं रह गया है. ऐसे में अख्तरूल ईमान किसी दूसरे सियासी शामियाने में ठांव तलाश सकते हैं. वह सियासी शामियाना और कोई नहीं, राजद हो सकता है. हालांकि, विधायक अख्तरूल ईमान के मुख्य कर्ताधर्ता तफहीम उर्रहमान ऐसी संभावना को सिरे से खारिज करते हैं. उनके मुताबिक अख्तरूल ईमान एमआईएम में हैं, आगे भी रहेंगे.
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