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ठाकुरगंज का विद्युत उपकेन्द्र : उपलायेगा तब झील के पानी में ख्वाब!

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शिवकुमार राय
7 अक्तूबर, 2021

KISHANGANJ. उदाहरण वैशाली जिले के महनार (Mahnar) का है. वहां तत्कालीन केन्द्रीय इस्पात मंत्री रामविलास पासवान (Rambilash Paswan) की ‘लोकलुभावन घोषणा’ के तहत भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) के तत्वावधान में स्टील प्रोसेसिंग प्लांट लगना था. स्थल चयन, भू-अधिग्रहण और शिलान्यास सब कुछ हो गया. इसके बाद भी स्टील प्रोसेसिंग प्लांट की स्थापना नहीं हो पायी. सिर्फ इस वजह से कि स्थल चयन में आर्थिक स्वार्थ घुस गया और भू-अधिग्रहण चौर की ऐसी जमीन का हो गया जो सालभर में बमुश्किल तीन-चार माह ही सूखी रहती है, शेष समय पानी ही पानी भरा रहता है.

रामविलास पासवान के मंत्री रहते सेल के अधिकारियों ने प्लांट की स्थापना की बाबत थोड़ी-बहुत सक्रियता दिखायी. मंत्री पद से उनके हटते ही उन्हीं अधिकारियों ने गड्ढे की जमीन को लेकर तकनीकी सवाल खड़ा कर दिये. स्टील प्रोसेसिंग प्लांट अधर में अटक गयी. स्थानीय लोगों ने दिन बहुरने के जो ख्वाब पाले थे वे चौर के उथले पानी में उपलाने लग गये.

चल पड़ी है अजीब परिपाटी
ठाकुरगंज (Thakurganj) के लिए प्रस्तावित विद्युत उपकेन्द्र का मामला भी बहुत कुछ उसी राह बढ़ता प्रतीत हो रहा है. ऐसा इसलिए कि किशनगंज जिला (Kishanganj District) प्रशासन ने इसके लिए जो जमीन चिन्ह्ति कर रखा है उसका अधिकांश हिस्सा पानी से भरा गड्ढा ही है. सरकार के स्तर पर योजनाओं-परियोजनाओं को लेकर इन दिनों एक अजीब परिपाटी चल पड़ी है.


ऐसा माना जा रहा है कि भू-माफियाओं, पूर्व के एक अंचलाधिकारी और विद्युत विभाग के एक स्थानीय अधिकारी के गठजोड़ की तिकड़मबाजी तथा ऊर्जा विभाग के एक ‘बड़े हाकिम’ की शह आधारित प्रशासन की जिद के चलते भू-अर्जन की प्रक्रिया गति नहीं पकड़ पा रही है. ऊर्जा विभाग के एक ‘बड़े हाकिम’ का स्वार्थ क्या हो सकता है, यह बताने की शायद जरूरत नहीं.


स्थल चयन और भू-अधिग्रहण के बिना ही हवा में योजनाओं-परियोजनाओं का शिलान्यास कर दिया जा रहा है. ठाकुरगंज विद्युत उपकेन्द्र के मामले में भी वैसा ही हुआ. परिणामस्वरूप धन की पर्याप्त उपलब्धता के बावजूद जमीन नहीं मिलने से यह हवा में ही झूल रहा है.

जांच प्रतिवेदन से भी मिल रहा बल
क्षेत्रीय नेताओं एवं स्थानीय लोगों की समझ है कि तमाम आपत्तियों एवं सुझावों को नजरंदाज कर किशनगंज जिला प्रशासन द्वारा चिन्ह्ति भूखंड का ही अधिग्रहण हुआ तब महनार के स्टील प्रोसेसिंग प्लांट की तरह इस विद्युत उपकेन्द्र का ख्वाब भी पानी में ही उपलाता रहेगा, धरातल पर शायद ही उतर पायेगा. इस आशंका को जिला प्रशासन के चार अधिकारियों की समिति के जांच प्रतिवेदन से भी बल मिल रहा है.

ठाकुरगंज विद्युत उपकेन्द्र का शिलान्यास तीन साल पहले हुआ था. किसी और ने नहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने तब के वित्त मंत्री सुशील कुमार मोदी (Shushil Kumar Modi) की मौजूदगी में 14 जुलाई, 2018 को रिमोट कंट्रोल से किया था. उस वक्त ऐसी और कई परियोजनाओं के शिलान्यास हुए थे.

क्षुद्र स्वार्थ में उलझ गया भू-अर्जन
ठाकुरगंज को छोड़ अन्य के कार्य पूरे हो गये. इलाकाई लोगों को उसका लाभ भी मिलने लगा. ठाकुरगंज का विद्युत उपकेन्द्र कथित रूप भू-माफियाओं के क्षुद्र स्वार्थ में उलझ गया. उलझाये रखने में संबद्ध अधिकारियों की भी भूमिका है, ऐसा इस क्षेत्र के लोग मान रहे हैं.

हैरानी की बात यह कि भूमि के अधिग्रहण की अपेक्षित धन राशि किशनगंज के विद्युत कार्यपालक अभियंता, संचरण प्रमंडल के खाते में काफी दिनों से पड़ी है.


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प्रशासन की यह कैसी जिद?
ऐसा माना जा रहा है कि भू-माफियाओं, पूर्व के एक अंचलाधिकारी और विद्युत विभाग के एक स्थानीय अधिकारी के गठजोड़ की तिकड़मबाजी तथा ऊर्जा विभाग के एक ‘बड़े हाकिम’ की शह आधारित प्रशासन की जिद के चलते भू-अर्जन की प्रक्रिया गति नहीं पकड़ पा रही है.

ऊर्जा विभाग के एक ‘बड़े हाकिम’ का स्वार्थ क्या हो सकता है, यह बताने की शायद जरूरत नहीं. विद्युत उपकेन्द्र की 359 करोड़ की यह परियोजना केन्द्र प्रायोजित है. कार्यान्वयन बिहार सरकार को कराना है.

अधिकतर हिस्से में है जल जमाव
बिहार स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड (बीएसपीटीसीएल) निर्माण की जिम्मेवारी संभाल रही है. उसके अनुरोध पर किशनगंज जिला प्रशासन ने परियोजना के लिए जमीन चिन्ह्ति कर रखी है.

इलाके के लोगों के मुताबिक वह जमीन ऐसी है जिसके अधिकांश हिस्से में झील एवं जल जमाव है. झील और पानी भरे गड्ढे से किसान दलकच्चू निकाल खाद के रूप में उसका प्रयोग करते हैं.

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