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अररिया जिला परिषद : तो यह राज है 20 वर्षों से जमे रहने का

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रत्नेश्वर झा
25 अक्तूबर, 2021

ARARIA : अररिया जिला परिषद संभवतः बिहार का ऐसा एकमात्र उदाहरण है जहां लगातार चार चुनावों यानी बीस वर्षों से अध्यक्ष पद पर एक ही परिवार (पति और पत्नी) काबिज है. 2001 में लागू नये स्वरूप वाली त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के तहत जिला परिषद (Zila Parishad) के प्रथम चुनाव से ही यह क्रम बना हुआ है. कभी पति अध्यक्ष निर्वाचित होते हैं, तो कभी पत्नी.

दिलचस्प बात यह भी कि आरक्षण की क्रमावर्तन (रोटेशन) व्यवस्था से अध्यक्ष का पद प्रभावित हुआ तो उसका लाभ भी इसी परिवार को मिल गया. इन बीस वर्षों के दौरान प्रतिद्वंद्वियों ने इस दंपत्ति को जिला परिषद से बेदखल करने की अनेक कोशिशें की. स्थानीय राजनीति के रथियों एवं महारथियों ने खूब ऊर्जा खपायी. लेकिन, अंगद की तरह जमे उनके पांव उखड़ने की बात दूर, हिल तक नहीं पाये.

जिला परिषद से बाहर नहीं
इस बार के चुनाव में भी उससे अलग कुछ होने की संभावना बनती नजर नहीं आ रही है. वैसे, यह मजबूती जिला परिषद की राजनीति में ही है, उसके बाहर नहीं. प्रतिष्ठित राजनीतिक खानदानी पृष्ठभूमि और परिवार के कई सदस्यों के जिला पार्षद रहने के बावजूद विधानसभा के चुनावों में उन्हें हमेशा मुंह की ही खानी पड़ी है. जो हो, जिला परिषद की राजनीति में रुचि रखने वालों के लिए मिसाल बनी यह कहानी आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम (Aftab Azim urf Pappu Azim) और उनकी पत्नी शगुफ्ता अजीम (Shagufta Azim) की है.

आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम पलासी प्रखंड के डेहटी निवासी मरहूम पूर्व मंत्री मोहम्मद अजीमुद्दीन के पुत्र हैं. पांच बार विधायक रहे मोहम्मद अजीमुद्दीन का क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव था. जानकारी रखने वाले लोग कहते हैं कि मरहूम पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री तसलीम उद्दीन (Taslim Uddin) को राजनीति में उन्होंने ही लाया था. हालांकि, कालांतर में उनसे संबंध अच्छे नहीं रह गये थे. राजनीतिक दुश्मनी-सी स्थिति पैदा हो गयी थी.

पिता का था मजबूत जनाधार
मोहम्मद अजीमुद्दीन एक बार पूर्णिया-अररिया-किशनगंज स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद के सदस्य भी निर्वाचित हुए थे. उस चुनाव में उन्होंने तब के दौर में काफी प्रभावशाली रहे तसलीम उद्दीन के खासमखास माने जाने वाले किशनगंज की चर्चित शख्सियत त्रिलोकचंद जैन (Trilokchand Jain) को शिकस्त दी थी. लेकिन, उनकी राजनीतिक विरासत संभाल रहे आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम को अभी तक ऐसा कोई सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पाया है. आगे क्या होगा यह नहीं कहा जा सकता.

वर्तमान में उनकी राजनीति मुख्य रूप से अररिया जिला परिषद तक में ही सिकुड़ी-सिमटी दिखती है. हालांकि, इस रूप में ही सही, वहां उनकी बड़ी हैसियत बन गयी है. आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम और शगुफ्ता अजीम ने विधानसभा (Vidhan Sabha) में पांव रखने के कई प्रयास किये. मतदाताओं को यह मंजूर नहीं हुआ, हर बार हार का ही सामना करना पड़ा.

कामयाबी दूर रही
आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम ने विधानसभा के चुनाव में पहली बार किस्मत 2005 में ‘पुश्तैनी सीट’ सिकटी से लोजपा उम्मीदवार के तौर पर आजमायी थी. 1977 से पूर्व यह पलासी (Palasi) विधानसभा क्षेत्र था. पलासी और फिर सिकटी (Sikti) से मोहम्मद अजीमुद्दीन (Ajimuddin) पांच बार विधायक (MLA) और राजद (RJD) के शासनकाल में कई बार मंत्री (Minister) भी बने.

आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम 2005 के दोनों चुनावों में मात खा गये थे. इस मामले में पति की किस्मत को ज्यादा चमकदार नहीं मान 2010 के चुनाव में शगुफ्ता अजीम खुद मैदान में उतरीं, कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर. कामयाबी उनसे भी छिटकी रह गयी.

तब भी किस्मत रूठी रह गयी
निराशा ऐसी गहरायी कि 2015 के चुनाव में उतरने की हिम्मत न आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम में रह गयी और न शगुफ्ता अजीम में. इतना जरूर हुआ कि उस चुनाव के बाद इस दंपत्ति ने JDU से जुड़ अपनी राजनीति को नयी दिशा देने की कोशिश की. तात्कालिक परिणाम के तौर पर 2020 के चुनाव में शगुफ्ता अजीम को अररिया विधानसभा क्षेत्र से JDU की उम्मीदवारी मिल गयी. परन्तु, क्षेत्र बदलने के बाद भी किस्मत रुठी ही रह गयी.

महागठबंधन के कांग्रेस उम्मीदवार आबिदुर रहमान (Abidur Rahman) ने उनके मंसूबों को फलीभूत नहीं होने दिया. शगुफ्ता अजीम 47 हजार 936 मतों के विशाल अंतर से पिछड़ गयीं. विधानसभा के चुनावों में इस दंपत्ति को भले हार-दर-हार से साबका पड़ा, जिला परिषद की राजनीति में सिक्का जमा ही रहा. उसे कोई छिन्न-भिन्न नहीं कर सका. ऐसा इसलिए भी कि अररिया जिला परिषद में इस परिवार के चार सदस्य हैं.

अजय झा भी हो गये बेदम
आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम और शगुफ्ता अजीम के अलावा इमरान अजीम और तारिक अजीम. प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तसलीम उद्दीन से लेकर अजय झा (Ajay Jha) तक ने इनका खूंटा उखाड़ने का तानाबाना बुना. पर, कभी सफल नहीं हुए. 2001 में आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम खुद अध्यक्ष बने तो 2006 और 2011 में उनकी पत्नी शगुफ्ता अजीम को यह सुअवसर प्राप्त हुआ. 2016 में फिर से आफताब अजीम उर्फ पप्पू अजीम काबिज हो गये. 2001 में उनका मुकाबला एकरामुल हक और फिर देवानंद मंडल से हुआ.

2006 में शगुफ्ता अजीम के मुकाबले पूर्व विधायक देवयंती यादव (Devyanti Yadav) मैदान में आयीं. वह भी कुछ विशेष नहीं कर पायीं. विधानसभा के कई चुनावों में परास्त रहे सीमांचल (Simanchal) के चर्चित समाजसेवी अजय झा ने जिला परिषद के जरिये राजनीति चमकाने के प्रयास के तहत 2011 में अपनी पत्नी संजू झा को चुनाव लड़ाया. लेकिन, अररिया जिले में अच्छी सामाजिक हैसियत रखने वाले पंडित दयानंद झा की पत्नी रेखा देवी ने उनकी राह अवरुद्ध कर दी. संजू झा जिला पार्षद ही निर्वाचित नहीं हो पायीं.


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सांसद प्रदीप सिंह ने की थी मदद
अजय झा की पत्नी को परास्त करने से मिले हौसले के बल पर रेखा देवी अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बन गयीं. परन्तु, शगुफ्ता अजीम की राह निरापद रही. रेखा देवी का मंसूबा टूट गया. तब शगुफ्ता अजीम को लोजपा से जुड़े रहे अजय झा और रेखा देवी को भाजपा नेता सांसद प्रदीप सिंह (Pradeep Singh) का अंदरुनी साथ मिलने की सच या झूठ, खूब चर्चा हुई थी.

2016 में अध्यक्ष पद के चुनाव में शगुफ्ता अजीम के खिलाफ अशोक भगत की पत्नी उषा देवी मैदान में उतरीं. वह भी उन्हें पछाड़ नहीं पायीं. वजह यह कि कथित रूप से शगुफ्ता अजीम (Sagufta Azim) को सांसद प्रदीप सिंह का साथ मिल गया. इस बार उनके मुकाबले में कौन आता है यह देखना दिलचस्प होगा. सांसद प्रदीप सिंह और चुनावी पराजयों से लस्त-पस्त अजय झा की भूमिका क्या होगी यह भी.

एआईएमआईएम की नजर
वैसे सीमांचल की राजनीति में बढ़ी ताकत के मद्देनजर आल इंडिया मजलिए-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के जिला परिषद के चुनाव में गहरी रुचि लेने की संभावना को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता. कारण यह भी कि विधान परिषद के स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र के आसन्न चुनाव पर उसने नजर गड़ा रखी है.

उस चुनाव में स्थानीय निकाय जनप्रतिनिधियों की अहम भूमिका होती है. पंचायत चुनाव में एआईएमआईएम की सक्रियता इस क्षेत्र के निवर्तमान विधान पार्षद डा. दिलीप जायसवाल (Dilip Jaiswal) के लिए खतरे की घंटी मानी जा सकती है.

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