मुंगेर : चुनौती दे पायेंगे विजय कुमार सिन्हा ?
संजय वर्मा
07 जुलाई 2023
Patna : मुंगेर संसदीय क्षेत्र से जदयू (JDU) अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह (Rajeev Ranjan Singh Urf Lalan Singh) के खिलाफ भाजपा का उम्मीदवार कौन होगा ? वर्तमान में राजनीति का यह ऐसा पेंचीदा सवाल है जिसको सुलझाने में भाजपा (BJP) नेतृत्व को पसीना छूट रहा है. ऐसा कुछ अधिक इसलिए भी कि तमाम अनुकूलताओं के बावजूद दमखम वाले संभावित आयातित ‘अनंत दुर्गति’ जैसा जोखिम नहीं उठाना चाह रहे हैं. वैसे, राजनीति में कब क्या हो जायेगा यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. इस दृष्टि से चुनाव के वक्त कोई तैयार हो जायें तो वह अलग बात होगी. फिलहाल संभावित आयातितों की अनिच्छा के मद्देनजर ‘दलीय पहलवानों’ पर ही भरोसा है. इस रूप में कई नेताओं के नामों की चर्चा है. उनमें भाजपा विधायक दल के नेता विजय कुमार सिन्हा भी हैंं. सामर्थ्य और स्वीकार्यता की परख के तहत पहले उनकी ही चर्चा.
आस अधूरी है
यह हर कोई जानता है कि विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha) की मुंगेर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने की लम्बी चाहत है. लखीसराय (Lakhisarai) से विधायक बनने के बाद से ही वह हाथ – पांव मार रहे हैं. मौका नहीं मिलने पर अघोषित रूप से मुंह भी फुलाते रहे हैं. इसके बावजूद आस अधूरी ही है. वैसे, इन वर्षों के दौरान अप्रत्याशित ढंग से उन्हें बड़ा पद मिलते रहे हैं. मंत्री बने, विधानसभा अध्यक्ष का गरिमामय पद मिला. अभी भाजपा विधायक दल के नेता हैं. एकाध बार मुंगेर (Munger) संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवारी की संभावना भी बनी. अपनों ने लंगड़ी मार दी. उन अपनों में गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) का भी नाम लिया जाता है.
ललन सिंह रहे बाधक
ऐसा समझा जाता है कि विजय कुमार सिन्हा की संसदीय चुनाव लड़ने की उत्कट अभिलाषा ललन सिंह से ‘गलाकाट प्रतिद्वंद्विता’ की मुख्य वजह है. अगल – बगल रहने वालों की मानें तो इस मनोकामना की प्राप्ति में वह ललन सिंह को बड़ा बाधक मानते रहे हैं. जदयू अब भाजपा से अलग महागठबंधन (Mahagathbandhan) का हिस्सा है. यह करीब – करीब तय है कि 2024 में इस क्षेत्र से भाजपा अपना उम्मीदवार उतारेगी. इसके मद्देनजर विजय कुमार सिन्हा की उम्मीदें स्वाभाविक रूप से हरी हो उठी हैं. 2014 में भी ऐसे हालात बने थे. उम्मीदवारी के लिए उन्होंने एड़ी चोटी एक कर दी थी. गठबंधन की विवशता में निराशा के सिवा न कुछ हासिल होना था और नहीं हुआ.
असाधारण मुकाबला
2024 में क्या होगा यह वक्त के गर्भ में है. वैसे, गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के साथ देवशयनी एकादशी के दिन अशोक धाम में पूजा – अर्चना करने के बाद भी किस्मत खुलने के आसार नहीं बन रहे हैं. विजय कुमार सिन्हा और उनके समर्थकों की समझ जो हो, सामान्य धारणा है कि उम्मीदवारी मिलती है तो किसी भी रूप में वह ललन सिंह के लिए चुनौती नहीं बन पायेंगे. तर्क यह कि महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बावजूद क्षेत्रीय मतदाताओं में भरोसे लायक़ स्वीकार्यता कायम नहीं कर पाये हैं. मुंगेर में इस बार साधारण नहीं, असाधारण मुकाबला होगा – महामुकाबला!
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सत्ता की हनक है सब
साधारण इसलिए नहीं कि ललन सिंह (Lalan Singh) वहां की राजनीति में महाबली हैं. वह और उनके क्षेत्रीय सिपहसालार उन्हें भले ‘अजातशत्रु’ मानें, धरातलीय सच यह है कि क्षेत्र में उनकी अपनी कोई मजबूत पकड़ नहीं है. सब सत्ता की हनक है. सत्ता से दूर हुए नहीं कि शून्य ! औरों की बात छोड़ दें, अपने लोग भी हैरान हैं कि मुंगेर संसदीय क्षेत्र (Munger Parliamentary Constituency) का दो बार प्रतिनिधित्व करने के बाद भी वह खुद का जनाधार विकसित नहीं कर पाये. अब तो जिस जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं उसका जनाधार भी लगभग खोखला हो गया है. इन सबके बाद भी मुंगेर का वर्तमान राजनीतिक- सामाजिक समीकरण उनके ‘अपराजेय’ होने का अहसास करा रहा है.
दे पायेंगे पटकनी?
सरसरी तौर पर उनके समक्ष कड़ा संघर्ष जैसी स्थिति इसलिए भी नहीं दिख रही है कि महागठबंधन की ताकत तो है ही, सजायाफ्ता राजद (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की ‘विरुदावली’ गाने से भी कुछ अतिरिक्त बल की प्राप्ति होती दिख रही है. ऊपर से अपनों की ‘लम्पटई’ है सो अलग. इन परिस्थितियों के मद्देनजर लोगों का जिज्ञासु होना स्वाभाविक है कि विजय कुमार सिन्हा ऐसे हालात से टकरा कर ललन सिंह को पटकनी दे पायेंगे? यह ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसने भाजपा के रणनीतिकारों को भी हलकान कर रखा है.
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