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यह कैसी प्रथा : लीज पर मिल जाती थीं वहां पत्नियां !

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तापमान लाइव ब्यूरो
01 अगस्त, 2023

Bhopal : देश और राज्यों की सत्ता पर काबिज लोग महिला सशक्तीकरण (Women Empowerment) की बात करते अघाते नहीं हैं. उन्हें पुरुषों के समान अधिकारों से संरक्षित और सशक्त करने के दावे-दर-दावे किये जाते हैं. सुरक्षा के लिए नये-नये कानून भी बनते रहते हैं. दूसरी तरफ इसी देश में ऐसी भी कई जगहें हैं जहां हाल तक लड़कियों का हाट लगता था, सरेआम उनकी बोलियां लगायी जाती थीं. खरीद-फरोख्त होती थीं. मौखिक नहीं, बजाप्ते दस या सौ रुपये के स्टाम्प पेपर (Stamp Paper) पर रजिस्ट्री होती थी. वह भी पूरे जीवन काल के लिए नहीं, महज एक निश्चित समय सीमा.

परम्परा के नाम पर …
एग्रीमेंट (Agreement) में शर्त्तें लिखी जाती थीं. समय सीमा पूरी होते ही महिला मायके लौट जाती थी. फिर संबद्ध पुरुष की इच्छा पर उस ‘लीज’ का रिनुअल होता था. वैसा नहीं होने पर किसी दूसरे पुरुष को ‘लीज’ पर दे दी जाती थी. इच्छानुसार पुरुष भी ‘दूसरी पत्नी’ ले जाता था. उपलब्धता कुंवारी और विवाहित दोनों तरह की महिलाओं की रहती थी. सभ्य समाज को शर्मसार करने वाली यह कुप्रथा मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) की है, जो दीर्घकाल से चली आ रही है. मध्यप्रदेश को देश का बड़ा राज्य माना जाता है. इसी राज्य में है शिवपुरी (Shivpuri) , जो धड़ीचा प्रथा (Dhadicha Pratha) को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहता है. ऐसा बताया जाता है कि यहां हर साल एक नियत समय पर मंडी लगती थी. चोरी-छिपे शायद अब भी लगती है. परम्परा और प्रथा के नाम पर पशु बाजार की तरह लड़कियों को मंडी में खड़ा कर उनका सौदा किया जाता था.


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दस रुपये के स्टांप पर
लड़कियों की इस मंडी में पुरुष आते थे और अपनी पसंद की लड़की खरीद ले जाते थे. इससे पूर्व सौदा पक्का होने पर 10 रुपये या फिर 100 रुपये के स्टाम्प पेपर पर लड़कियों की खरीद-बिक्री की लिखा-पढ़ी होती थी.खरीदने वाले व्यक्ति को महिला या उसके परिवार को एक निश्चित रकम देनी पड़ती जो कम से कम 15 हजार की होती थी. उक्त रकम के भुगतान के बाद दोनों पति-पत्नी बन जाते थे. लेकिन, वह तभी तक पति-पत्नी रहते थे जब तक पुरुष उसको अपनी पत्नी मानता था. स्थानीय महिला संगठनों ने कई बार इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठायी. अंततः उसका असर पड़ा. सरकार  (Government) ने इस पर प्रतिबंध  (Sanctions) लगा दिया.

अंततः झुक गयी सरकार
यहां गौर करने वाली बात है कि इस कुप्रथा (Malpractice) के तहत बिकने वाली महिलाओं में से किसी ने कभी कोई शिकायत दर्ज नहीं करायी. इस प्रथा की पीड़ा ज्यादातर उन लड़कियों को झेलनी पड़ती थी, जो बेसहारा  (Destitute) होती थी. हैरान करने वाली बात यह भी है कि बिहार (Bihar) और दूसरे राज्यों से महिलाओं को ले जाकर इस मंडी में बेची जा रही थी. मध्य प्रदेश की सरकार ने परम्परा की आड़ में हो रहे इस पाप को नजरंदाज कर रखी थी. सामाजिक संगठनों का दबाव बढ़ने पर उसे इसे रोकने के लिए विवश होना पड़ा.

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