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यह है अंतर्कथा ललन सिंह के अध्यक्ष बनने की

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राजकिशोर सिंह
01 अगस्त, 2021

पटना. राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभाल रहे आरसीपी सिंह को पदमुक्त करने की व्यग्रता, उपेन्द्र कुशवाहा की बिहार में अधिक उपयोगिता और इसके इतर के नेताओं की सांगठनिक अक्षमता के मद्देनजर सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पार्टी हित संबंधित सुझाव पर जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालना पड़ा. ऐसा उनके निकट के लोगों का कहना है. वैसे, आरसीपी सिंह ने पार्टी सुप्रीमो की ‘अनिच्छा’ के बावजूद भाजपा नेतृत्व के कथित प्रलोभन में केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जिस ढंग से अकेले जगह पा ली उससे जितना ‘गुस्सा’ नीतीश कुमार को था करीब-करीब उतना ही ललन सिंह को भी था. कारण कि मंत्रिमंडल में जगह के मामले में प्राथमिकता ललन सिंह को मिलनी थी, उसे आरसीपी सिंह ने हड़प ली. केन्द्रीय मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व के संदर्भ में पार्टी नेतृत्व ने जो मन बनाया था उसके मुताबिक ललन सिंह और आरसीपी सिंह दोनों को उसमें जगह मिलनी थी. एक अन्य के लिए भी गुंजाइश निकलवानी थी. इसके लिए आरसीपी सिंह को भाजपा नेतृत्व से अंतिम वार्ता करने को अधिकृत किया गया था. उस वार्ता में सिर्फ एक पर सहमति बनी और ललन सिंह के हितों का ख्याल न कर आरसीपी सिंह ने खुद मंत्रिपद की शपथ ले ली. उनके इस आचरण से नीतीश कुमार को इतना ‘क्रोध’ हुआ कि उन्होंने अपने ‘अतिप्रिय’ को केन्द्र में मंत्री बनने पर कोई बधाई-शुभकामना भी नहीं दी. उसी से राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से आरसीपी सिंह की विदाई का स्पष्ट संकेत मिल गया था. ‘एक व्यक्ति एक पद’ का सिद्धांत उछला और उनकी पदमुक्ति की पटकथा तैयार हो गयी. इस पटकथा में ललन सिंह को हिसाब बराबर करने का अवसर उपलब्ध हो गया. जद(यू) के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक सहमति की शर्तों में पार्टी संचालन में पूर्व के अध्यक्षों की तुलना में कुछ अधिक स्वतंत्रता शामिल है. आर्थिक मामलों के लिए निर्माण कार्य वाले एक महत्वपूर्ण विभाग के बड़े मामलों को देखने-समझने के लिए चिह्नित कर दिया गया है.

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