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पोद्दार रामावतार अरुण : साहित्य-सृजन में समर्पित संपूर्ण जीवन

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अश्विनी कुमार आलोक
10 फरवरी 2024

लेखक यदि पुरातन मान्यताओं के संदर्भ को नये प्रसंग में उल्लेखित करता है, तो निस्संदेह वह भारतीय संस्कार और परंपरा को मूल्यवाही मानकर उसकी उपादेयता सिद्ध करना चाहता है. सिद्धि और संवेदना की ऐसी प्रशस्त काव्य प्रतिभा बिहार (Bihar) में पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण (Poddar Ramawatar Arun) के रूप में 24 नवम्बर 1923 को जन्मी थी. पोद्दार रामावतार अरुण के पिता की जीविका कबाड़ी के कारोबार (Bussiness) से जुड़ी हुई थी. उन्होंने छोटे स्तर से अपने काम की शुरुआत की थी. बाद में बटलर कंपनी (Butler Company) के स्क्रेप खरीद कर अपने परिवार के भरण-पोषण में उन्होंने सहूलियत हासिल की थी.

हस्तक्षेप नहीं किया
रामावतार अरुण ने बाल्यकाल से ही कविता-लेखन शुरू कर दिया था. वह कविता (Kavita) के साथ-साथ चित्रांकन की कला में भी प्रतिभा लेकर जन्मे थे. उनके पिता पांचू पोद्दार (Panchu Poddar) को किसी ने कह दिया था कि पोद्दार रामावतार अरुण की प्रतिभा उन्हें एक दिन बड़ी प्रतिष्ठा दिलायेगी, उन्हें किसी प्रकार की बाधा न पहुंचायी जाये. पांचू पोद्दार ने पोद्दार रामावतार अरुण की साहित्य-साधना में कभी कोई हस्तक्षेप नहीं किया. कभी पीने के लिए उनसे एक गिलास पानी तक नहीं मांगा.


इकलौते पुत्र किरणशंकर पोद्दार के जन्म के बाद बाईस वर्षों तक पोद्दार रामावतार अरुण ने पत्नी धनेश्वरी देवी के साथ बोलचाल नहीं की. जब बोले, तो पत्नी ने नहीं बोलने का कारण पूछा. पोद्दार रामावतार अरुण ने बताया कि रामकथा पर महाकाव्य ‘अरुण रामायण’ लिख रहे थे. मर्यादा पुरुषोत्तम की कथा पर लिखने में जो साधना की आवश्यकता थी वह पत्नी और परिवार से विरक्त रहकर ही संभव थी.


मैट्रिक तक ही पढ़ पाये
पोद्दार रामावतार अरुण ने केइ इंटर कालेज (Inter College) से मैट्रिक की परीक्षा पास की. आगे नहीं पढ़ सके. साहित्य-सृजन में संपूर्ण जीवन होम कर दिया. उनके अन्य चार भाइयों में बिहारीलाल पोद्दार ने प्रेस चलाकर जीवन यापन किया, राजकुमार पोद्दार ने हार्डवेयर की दुकान खोली, विमल कुमार पोद्दार का जीवन बिना किसी व्यवसाय के गुजर गया. सबसे छोटे भाई निर्मल कुमार पोद्दार ने बड़े भाई पोद्दार रामावतार अरुण के सान्निध्य में कुछ कविताएं लिखीं और कवि-सम्मेलनों में आये-गये. पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण की शादी1934 में महज सोलह वर्ष की अवस्था में हुई. विवाह के समय उनकी पत्नी धनेश्वरी देवी मात्र बारह वर्ष की थीं.

पत्नी से बोलचाल नहीं
इकलौते पुत्र किरणशंकर पोद्दार (Kiran Shankar Poddar) के जन्म के बाद बाईस वर्षों तक पोद्दार रामावतार अरुण ने पत्नी धनेश्वरी देवी (Dhaneshwari devi) के साथ बोलचाल नहीं की. जब बोले, तो पत्नी ने नहीं बोलने का कारण पूछा. पोद्दार रामावतार अरुण ने बताया कि रामकथा पर महाकाव्य ‘अरुण रामायण’ लिख रहे थे. मर्यादा पुरुषोत्तम की कथा पर लिखने में जो साधना की आवश्यकता थी वह पत्नी और परिवार से विरक्त रहकर ही संभव थी. इस प्रकार उन्होंने चौवन कृतियां रची, जिनमें 48 कृतियों का प्रकाशन हो पाया. जब स्वयं लिखने में असमर्थ हुए, तो उनके शुतिलेखों को राजकुमार पोद्दार ने लिपिबद्ध किया.


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बहुत कुछ कह रहा ‘कवि निवास’
पोद्दार रामावतार अरुण जीवन भर कविता के स्वारस्य का पान करते रहे. वह बेल के शरबत और चने की घुघनी के शौकीन थे. किरण शंकर पोद्दार उनके पुत्र हैं. बंगाली टोला (Bengali Tola) में बिजली के सामान की दुकान चलाते थे. दरभंगा (Darbhanga) के किसी दासजी के संपर्क में आकर हस्तरेखा के अध्ययन में लग गये. इन दिनों व्यवसाय के नाम पर ‘कवि निवास’ की एक कोठरी में ‘सुधा’ का दूध बेचते हैं. जीविका उसी से चलती है. किरण शंकर पोद्दार के एक बेटे और एक बेटी के छोटे से परिवार ने स्वयं को स्वाबलंबी भले कर लिया है, परंतु ‘कवि निवास’ नामक दो मंजिले मकान में आयीं दरारें इस बात का गवाह है कि सब कुछ ठीक नहीं.1954 के आसपास यह मकान पोद्दार रामावतार अरुण ने बनवाया था, सिर्फ अपने लिए नहीं, सभी भाइयों के लिए.

दुर्दशा झेल रहीं पांडुलिपियां
मकान अब सिर्फ उखरी हुईं दीवारों का ढांचा रह गया है. पोद्दार रामावतार अरुण के भाई अब जीवित नहीं बचे. उनके बेटों में आपसी कलह इतना बढ़ा कि दरके हुए दिलों का अनुमान दरकी हुईं दीवारों को देखकर किया जा सकता है. पेठिया गाछी में चमचमाती हुईं दीवारों से ऊंची इमारतों की तरह मकान बने हुए हैं. सिर्फ ‘कवि निवास’ (Kavi Nivas) अपनी जीर्ण-शीर्ण सूरत पर बिसूरता हुआ अनेक कथाएं कह रहा है. पोद्दार रामावतार अरुण ने आजीवन लिखा. उनकी पुस्तकें और पांडुलिपियां आज दुर्दशा झेल रही हैं. ऊपर की दो कोठरियों में एक रसोई घर है और एक शयन के लिए. उन्हीं में सीलनभरी आलमारियां भी हैं, जिनपर धूल की परतें जमी हुई हैं. कोठरियों में रोशनी का अभाव और स्वास्थ्यपूरक हवा का मतभेद साफ दिखाई पड़ता है.

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