होगा, बहुत कुछ होगा बिहार विधानसभा में!
राजकिशोर सिंह
11 फरवरी 2024
Patna : क्या होगा बारह फरवरी को? नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार बचेगी कि जमीन सूंघ लेगी? मतलब गिर जायेगी? जहां जाइये, जिनसे मिलिये या फोन पर बात कीजिये, हर जगह यही सवाल! साथ में बेसिरपैर के कई पूरक सवाल भी. कितने को और किस-किस को जवाब दीजियेगा? वैसे, अनिश्चितता भरे राजनीतिक (Political) हालात के मद्देनजर लोगों की जिज्ञासा स्वाभाविक है. पर, सोशल मीडिया (Social Media) में परोसी जा रही उटपटांग खबरों की शृंखला ने कुछ अधिक उत्सुकता पैदा कर दी है. भ्रमित भी कर दिया है. हैरानी इस बात पर भी कि सामान्य लोग तो इसे नहीं ही समझ पा रहे हैं, राजनीतिक दलों के रणनीतिकारों के दिमाग भी फिर गये हैं. परिस्थितियों पर आधारित सच पर उन्हें भी भरोसा नहीं रह गया है. तभी तो अघोषित रूप से अपने विधायकों को बाड़े में घेर रखे हैं.
निष्ठा पर भरोसा नहीं
सत्तासीन दलों-जदयू (JDU) और भाजपा (BJP) की विवशता समझ में आती है. विपक्षी दल राजद और कांग्रेस (Congress) के समक्ष क्या संकट है कि दोनों ने अपने विधायकों की आजादी को गिरवी रख दिया है? क्या दल के प्रति उनकी निष्ठा पर भरोसा नहीं रह गया है? दोनों तरफ इतना अविश्वास? इन्हीं सबको देख-सुन लोगों के दिमाग में यह सवाल उमड़-घुमड़ रहा है कि बारह फरवरी को वाकई कुछ होगा? यह निर्विवाद है कि उस दिन कुछ होगा, कुछ नहीं बहुत कुछ होगा. लेकिन, वह सब नहीं होगा जिसका सोशल मीडिया में शोर है और उस आधार पर जो सामान्य लोग समझ रहे हैं. 12 फरवरी 2024 को विधानसभा में नीतीश कुमार की सरकार के विश्वास मत पर चर्चा होगी, मत विभाजन होगा.
संभावनाओं का खेल
सोशल मीडिया में आशंका जतायी जा रही है कि सत्तारूढ़ भाजपा (BJP) और जदयू (JDU) के विधायकों में टूट हो जायेगी, जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) की पार्टी ‘हम’ राजग (NDA) से अलग हो जायेगी. नीतीश कुमार विश्वास मत हासिल नहीं कर पायेंगे. सरकार का पतन हो जायेगा. जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री (Chief Minister) पद का प्रलोभन दे महागठबंधन ‘हम’ को अपने साथ कर लेगा! तरह-तरह की आधारहीन और तर्कहीन बातें! राजनीति संभावनाओं का खेल है. इसमें दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता है. इस सूत्र के तहत उनकी बातें सही हो जायें तो वह अलग बात होगी. वैसे, इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिखती है. दलबदल विरोधी कानून नहीं होता तो सोशल मीडिया की बातों को सच के करीब माना जा सकता था.
दलबदल कानून
इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि राजग के कुछ विधायकों में सिद्धांतहीन सत्ता परिवर्तन आधारित असंतोष है. पर, सामान्य परिस्थिति में वे इधर-उधर इसलिए नहीं हो सकते हैं कि विधायक दल में टूट के लिए दो तिहाई की संख्या अनिवार्य है. इससे कम में सदन की सदस्यता खत्म हो जा सकती है. जदयू (JDU) हो या भाजपा (BJP) या फिर राजद (RJD), किसी में इतनी बड़ी टूट की संभावना दिखती है क्या? बिल्कुल नहीं. भाव बढ़ाने या कुछ पाने की खातिर दबाव बनाने के लिए दो-चार विधायकों की गतिविधियां संदिग्ध नजर आ भी रही हैं तो बुझे मन से ही सही, मत विभाजन के वक्त वे भी मुख्य धारा में बहते दिखेंगे, ऐसा विश्लेषकों का मानना है.
हंगामाई दृश्य
सत्ता पक्ष के विधायकों में टूट का खतरा तब होता जब अवध बिहारी चौधरी (Awadh Bihari Chaudhary) अध्यक्ष पद पर बने रहते. जदयू या भाजपा से अलग होने की इच्छा जाहिर करने वाले असंतुष्ट विधायकों को ‘अलग समूह’ की मान्यता दे सरकार के समक्ष संकट पैदा कर दे सकते थे. ह्वीप के उल्लंघन के मामले में उन्हें दलबदल कानून के दायरे में नहीं आने देते. ‘अलग समूह’ का सियासी खेल पूर्व में हुआ था. राजद के कुछ विधायकों को तत्कालीन अध्यक्ष ने ‘अलग समूह’ की मान्यता दे दलबदल कानून की चपेट में आने से बचा लिया था. वह खेल नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की ही तब की सरकार को ‘रक्षा कवच’ प्रदान करने के लिए हुआ था. आगे क्या होगा, यह नहीं कहा जा सकता, 12 फरवरी को विधानसभा में ऐसा कुछ होगा वैसा नहीं दिखता है. उस दिन सबसे पहले विधानमंडल के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक होगी. राज्यपाल (Governor) का अभिभाषण होगा. उस वक्त का दृश्य हंगामाई हो सकता है. हथेली से सत्ता फिसल जाने की खीझ उतारने की कोशिश की जा सकती है.
पहले अविश्वास प्रस्ताव
अध्यक्ष के तौर पर अवध बिहारी चौधरी आसन पर विराजमान दिखेंगे. उसके बाद का दृश्य बदल जायेगा. विधानसभा की बैठक शुरू होगी तो प्रारंभिक औपचारिकताएं पूरी हो जाने के बाद सबसे पहले अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश होगा. विधानसभा सचिवालय को इस आशय की सूचना 14 दिनों पूर्व 28 जनवरी 2024 को दी जा चुकी है. अवध बिहारी चौधरी स्वतः पद त्याग देते हैं तब मामला नये अध्यक्ष के चुनाव पर आ जायेगा. नये अध्यक्ष का चुनाव तुरंत नहीं होगा. थोड़ा वक्त लगेगा. नये अध्यक्ष के चुनाव तक उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी (Maheshwar Hazari) सदन की कार्यवाही संचालित करेंगे. 2022 में विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha) के अध्यक्ष का पद छोड़ने पर ऐसा ही हुआ था.
पद नहीं त्यागे तब …
अवध बिहारी चौधरी स्वतः पद नहीं त्यागते हैं तब अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा और मत विभाजन होगा. एक तरह से वह भी सरकार के लिए शक्ति परीक्षण ही होगा. अविश्वास प्रस्ताव का पारित हो जाना सत्ता पक्ष को बहुमत प्राप्त रहना माना जयेगा. वैसी स्थिति में उसी दिन पेश होने वाले सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव का उतना महत्व नहीं रह जायेगा. औपचारिकताओं में सिमट जायेगा. अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के खारिज होने का अर्थ सरकार को बहुमत नहीं रहना माना जायेगा. हालांकि, ऐसी स्थिति नहीं आयेगी.
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आंकड़ों का गणित
आंकड़ों पर गौर करें, तो नीतीश कुमार को 128 विधायकों का समर्थन हासिल है. 78 भाजपा, 45 जदयू, 04 ‘हम’ एवं एक निर्दलीय का. महगठबंधन के 114 विधायक हैं. राजग से 14 कम. राजद के 79, कांग्रेस के 19 और वामपंथी दलों 16. एक विधायक एआईएमआईएम के हैं. मत विभाजन में वह महागठबंधन के साथ नहीं होंगे, पर हाथ सरकार के विरोध में उठायेंगे. इस तरह सरकार विरोधी विधायकों की संख्या 115 हो जायेगी. ‘हम’ के चार विधायक इधर आ जाते हैं तब यह संख्या 119 ही हो पायेगी. बहुमत से तीन दूर. वैसे, ‘हम’ के छिटकने की संभावना नहीं नजर आती है.
राजद की रणनीति
लालू प्रसाद (Lalu Prasad) और तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) अभी सरकार गिराने-बनाने में मगज नहीं खपा रहे हैं. उनकी पहली कोशिश अवध बिहारी चौधरी को अध्यक्ष पद पर बनाये रखने की है. इसके लिए उन्हें राजग के सात विधायकों की सदन से अनुपस्थिति के रूप में साथ की जरूरत है. ये सात अनुपस्थित हो जाते हैं, तो राजग के समर्थक विधायकों की संख्या 121 रह जायेगी. राजद के रणनीतिकारों का तर्क है कि अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तभी पारित माना जायेगा जब कुल 243 सदस्यों में से आधे से एक अधिक यानी 122 सदस्य उसके पक्ष में होंगे. सदन में उपस्थित सदस्यों में बहुमत मान्य नहीं है. राजद इसी रणनीति पर काम कर रहा है. सफलता मिल गयी, तो नीतीश कुमार की सरकार का हश्र क्या होगा इसे आसानी से समझा जा सकता है.
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