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किशनगंज : फंस गयी कांग्रेस उलझन में…

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अशोक कुमार
23 मार्च 2024

Purnea : कांग्रेस के अघोषित सुप्रीमो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के क्रम में सीमांचल पधारे थे तो किशनगंज (Kishanganj) में उनके सामने ही पार्टी के क्षेत्रीय सांसद डा. जावेद आजाद के विरोध में कार्यकर्ताओं ने मुट्ठियां लहरायी थी. प्रतिनिधित्व को नकारा बताते हुए उम्मीदवार बदलने की जोरदार आवाज उठायी थी. राहुल गांधी इससे थोड़ा असहज हो गये थे. ऐसा स्वाभाविक भी था. 2019 में बिहार में किशनगंज ही इकलौती सीट थी जहां कांग्रेस की जीत हुई थी. इस लिहाज से किशनगंज कांग्रेस के लिए काफी महत्व रखता है. जीत के दोहराव के प्रति पार्टी नेतृत्व को गंभीर रहना चाहिए तो उस दिन राहुल गांधी ने विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी से निगाहें मोड़कर डा. जावेद आजाद (Dr Javed Azad) के समर्थन में जनसभा को संबोधित किया. उबल रहे जनाक्रोश को शांत करने की हल्की-फुल्की कोशिश भी नहीं की.

सबको कोसा ओवैसी ने
राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के कुछ ही दिनों बाद एआईएमआईएम के अध्यक्ष सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Ovaisi) का किशनगंज आगमन हुआ. वहां उन्होंने तीन जनसभाओं को संबोधित किया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar), राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) और तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) के साथ-साथ कांग्रेस को भी ‘बेईमान और धोखेबाज’ बताते हुए जमकर कोसा. जनता से उनकी तमाम हरकतों का बदला लेने के लिए प्रतिज्ञा करायी, संबद्ध नेताओं को बददुआएं दीं और इस पर खुशी जाहिर की कि जिस शाहनवाज आलम ने अपने पिता मरहूम तस्लीम उद्दीन साहब की रीति-नीति के विपरीत नीतीश कुमार के बहकावे में एमआईएम का सीमांचल (Simanchal) में सत्यानाश कराया, उसके रसूख की कुर्सी को भी अल्लाहताला ने छीन लिया. आक्रोश भरे लहजे में उन्होंने चेतावनी दी कि चारो ‘गद्दार विधायक’ जहां-जहां खड़े होंगे, वहां-वहां उन्हें धूल चटाने वह जरूर हाजिर होंगे. अपनी इन बातों को जनता से किया गया वादा बताया.

बनेगा कांग्रेस मुक्त बिहार
विश्लेषकों का मानना है कि असदुद्दीन ओवैसी की उस चेतावनी के बाद सीमांचल के तमाम नेताओं में खौफ समा गया है. किशनगंज (Kishanganj) को कांग्रेस मुक्त बनाने का लक्ष्य एमआईएम का तो है ही, भाजपा (BJP) का मकसद भी ऐसा ही कुछ है. वह 2019 के संसदीय चुनाव के वक्त से ही बिहार (Bihar) को कांग्रेस मुक्त बनाने की कोशिश में लगी हुई है. मुख्य रूप से उसका ध्यान इस सबसे बड़े मुस्लिम बहुल संसदीय क्षेत्र पर केन्द्रित है. इसे कांग्रेस (Congress) के चंगुल से निकालने के लिए वह राजनीतिक तानाबाना बुन रही है. इस अभियान में सहयोगी दल जदयू भी शामिल है. 2024 के संसदीय चुनाव में किशनगंज की सीट फिर से उसके हिस्से में डाल दी गयी है. उम्मीदवारी जदयू के पूर्व विधायक मास्टर मोजाहिद आलम (Mojahid Alam) को मिलने की संभावना है.

एमआईएम की मुहिम
लेकिन, क्षेत्र के पारंपरिक कांग्रेस समर्थक मिजाज के कारण भाजपा-जदयू की मंशा फलीभूत हो पायेगी, ऐसा कोई दावे के साथ नहीं कह सकता है. राजग (NDA) की इस नाउम्मीदी के बीच किशनगंज को कांग्रेस की मुट्ठी से निकालने के लिए सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी कमर कस रखी है. डा. जावेद आजाद के खिलाफ उसने फिर से पार्टी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल ईमान (Akhtarul Iman) को मैदान में उतारने की घोषणा की है. अख्तरूल ईमान फिलहाल किशनगंज संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले पूर्णिया (Purnea) जिले के अमौर विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं. एमआईएम अभियान चला कर डा. जावेद आजाद को सुस्त, लापरवाह और आरामपसंद रईस सांसद बता उनसे मुक्ति पाने के लिए जनता को ललकार रहा है. दिलचस्प बात यह है कि राजग और एमआईएम ने तो मुहिम छेड़ ही रखी है, राजद ने भी उन्हें अपने निशाने पर ले रखा है.


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लालू प्रसाद से गुहार
हाल फिलहाल की बात है, किशनगंज संसदीय क्षेत्र के राजद (RJD) के विधायकों और कुछ प्रभावशाली नेताओं ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद और विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव से मिलकर इस बार के लोकसभा चुनाव में किशनगंज संसदीय क्षेत्र से किसी भी कीमत पर सांसद डा. जावेद आजाद को महागठबंधन के प्रत्याशी के रूप में नहीं उतारने की गुहार लगायी है. राजद के विधायकों और नेताओं का स्पष्ट कहना है कि डा. जावेद आजाद से क्षेत्र की जनता नाराज है. इस बार उन्हें वोट देने के पक्ष में नहीं है. इसके बाद भी दोबारा उन्हें उम्मीदवारी मिली तो उसका बहुत बड़ा लाभ एआईएमआईएम (AIMIM) प्रत्याशी अख्तरूल ईमान (Akhtarul Iman) को मिल जा सकता है. यह बताया गया कि किशनगंज संसदीय क्षेत्र में जीत हो गयी तब 2025 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम निःसंदेह इस संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में आसान जीत हासिल कर ले सकता है. राजद के विधायकों एवं नेताओं की इस चिंता से सीमांचल की राजनीति में समाये एमआईएम के खौफ की पुष्टि खुद-ब-खुद हो जा रही है.

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