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उमेश कुशवाहा पर बरसती रही आरसीपी सिंह की कृपा

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अरविन्द कुमार झा
30 सितम्बर, 2021

PATNA. 2005 के चुनाव के बाद इस इलाके की राजनीति में भारी बदलाव आ गया. 2010 में जन्दाहा (Jandaha) की जगह राजापाकर (Rajapakar) नाम से नया विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आ गया. पर, सामान्य के लिए नहीं रह, अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हो गया. परिणामतः कुशवाहा (Kushwaha) समाज की स्थानीय राजनीति छितरा गयी.

उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) और उमेश कुशवाहा (Umesh Kushwaha) के पैतृक गांव महनार विधानसभा क्षेत्र में समाहित हो गये. उपेन्द्र कुशवाहा जावज गांव के रहने वाले हैं. उमेश कुशवाहा कजरी खुर्द के. जन्दाहा विधानसभा क्षेत्र के विलोपित हो जाने के बाद उनकी राजनीति महनार (Mahnar) विधानसभा क्षेत्र में स्थानांतरित हो गयी.


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महनार में पसर गये उमेश कुशवाहा
उपेन्द्र कुशवाहा को संसदीय राजनीति में पांव जमाने का मौका मिल गया. उमेश कुशवाहा महनार में पसर गये. प्रतिद्वंद्विता अपनी जगह बनी रही. उधर दिवंगत पूर्व मंत्री तुलसीदास मेहता के पुत्र आलोक मेहता (Alok Mehta) ने समस्तीपुर (Samastipur) को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बना ली तो पुत्री सुहेली मेहता (Suheli Mehta) खगड़िया (Khagaria) जिले के परबत्ता (Parbatta) में संभावना तलाशने पहुंच गयीं.

आलोक मेहता फिलहाल उजियारपुर से विधायक और राजद के प्रधान महासचिव हैं. सुहेली मेहता प्रदेश JDU की प्रवक्ता और प्रदेश महिला JDU की प्रभारी हैं.

राजद में दिखा दी गयी हाशिये की राह
उमेश कुशवाहा का RJD से संबंध 2010 के चुनाव में टूट गया. महनार से दिवंगत पूर्व मंत्री मुंशीलाल राय राजद के उम्मीदवार होते थे. तुलसीदास मेहता की तरह उनको किनारे लगा देना RJD नेतृत्व के लिए आसान नहीं था. एक तो मुंशीलाल राय (Munshilal Ray) की मुखरता और दूसरा जातीय मामला. उमेश कुशवाहा को हाशिये की राह दिखा दी गयी.


हार के बावजूद उमेश कुशवाहा को जद(यू) का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का चौंकाऊ निर्णय आरसीपी सिंह का ही था. ऐसा कहा जाता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके पक्ष में नहीं थे. पर, हालात की विवशता में उन्हें यह स्वीकार करना पड़ गया.


जानकारों की मानें तो वहां उपेन्द्र कुशवाहा से उनकी निकटता कायम हो गयी. उपेन्द्र कुशवाहा ने अंदरूनी तौर पर उन्हें JDU की उम्मीदवारी दिलाने का प्रयास किया. NDA में महनार की सीट BJP के हिस्से में गयी. उम्मीदवारी डा. अच्युतानन्द (Dr. Achyutanand) को मिल गयी. उमेश कुशवाहा निर्दलीय कूद पड़े. मुंह की खानी पड़ गयी.

2015 में पूरा हो गया ख्वाब
विधानसभा चुनाव के कुछ ही महीने बाद उपेन्द्र कुशवाहा का JDU से विलगाव हो गया. माकूल अवसर मान उमेश कुशवाहा उससे जुड़ आरसीपी सिंह के करीब हो गये. 2015 में JDU की उम्मीदवारी मिली, महागठबंधन (Mahagathbandhan) की ताकत से विधायक बनने का ख्वाब पूरा हो गया.


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यह सुखद सौभाग्य उन्हें आरसीपी सिंह (RCP Singh) के ‘सौजन्य’ से प्राप्त हुआ. हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि 2015 में महागठबंधन में JDU की उम्मीदवारी के लिए राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की भी सहमति थी. अंतरंगता तो थी ही, RJD में यादव समाज का मजबूत उम्मीदवार न होना भी एक बड़ा कारण था. हालांकि, 2020 में परिस्थितियां पूरी तरह बदल गयीं.

नीतीश कुमार को स्वीकार करना पड़ा
राजद नेतृत्व ने पूर्व सांसद रामकिशोर सिंह उर्फ रामा सिंह (Rama Singh) की पत्नी वीणा देवी (Veena Devi) को उम्मीदवार बना उमेश कुशवाहा की राह अवरुद्ध कर दी. इस हार के बावजूद उमेश कुशवाहा को JDU का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का चौंकाऊ निर्णय आरसीपी सिंह का ही था. ऐसा कहा जाता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) इसके पक्ष में नहीं थे. पर, हालात की विवशता में उन्हें यह स्वीकार करना पड़ गया.

इससे स्पष्ट है कि उमेश कुशवाहा केन्द्रीय मंत्री आरसीपी सिंह के खासमखास हैं. आगे क्या होगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता. JDU में उच्चस्तरीय अघोषित शक्ति प्रदर्शन में उमेश कुशवाहा ने आरसीपी सिंह की वैशाली जिले की ‘आभार यात्रा’ में जो खुली सक्रियता दिखायी उससे भी उनके प्रति उनकी ‘अखंड निष्ठा’ प्रमाणित हुई. उस दौरान बिना किसी हिचकिचाहट के वह उनके साथ रहे. सिर्फ वही नहीं, पूरा वैशाली जिला (Vaishali District) जद(यू) एक पांव पर खड़ा नजर आया.

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