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तो फिर… अख्तरूल ईमान क्यों?

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अशोक कुमार
08 अप्रैल 2024
Purnia : पूर्णिया और कटिहार संसदीय क्षेत्रों के चुनाव मैदान से अलग रहने के एमआईएम (MIM) के निर्णय के पीछे की राजनीति (Politics)और रणनीति (strategy) जो हो, बदलाव के हिमायती असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) समर्थकों में इससे गहरी निराशा समा गयी है. इसके साथ गंभीर सवाल भी उठ रहा है, आशंका भी आकार ले रही है. सवाल यह खड़ा हो रहा है कि धर्मनिरपेक्ष मतों के बिखराव का लाभ राजग को नहीं उठाने देने के लिए पूर्णिया (Purnia) और कटिहार (Katihar) में उम्मीदवार नहीं उतारने का निर्णय लिया गया तो फिर किशनगंज (Kishanganj) को इसके दायरे से बाहर क्यों छोड़ दिया गया? एमआईएम के उम्मीदवार के मैदान में रहते क्या वहां धर्मनिरपेक्ष (secular) मतों में बिखराव नहीं होगा? उसका लाभ राजग को नहीं मिल जायेगा?

दोरंगी नीति क्यों?
गौर करने वाली बात है कि 2014 में किशनगंज से जदयू के उम्मीदवार रहे एमआईएम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष विधायक अख्तरूल ईमान (Akhtarul Iman) कुछ इसी तरह के हालात में बीच चुनाव से मैदान छोड़कर भाग गये थे. उसके मद्देनजर लोगों का मानना है कि पूर्णिया और कटिहार की श्रेणी में किशनगंज को भी रखा जाना चाहिए था. लोग चर्चा इस बात की भी करते हैं कि धर्मनिरपेक्षता को ताक पर रख 2019 के चुनाव मेंअख्तरूल ईमान खुद किशनगंज से उम्मीदवार बन गये, पर अन्य क्षेत्रों में एमआईएम को चुनाव से दूर रखा. इस दोरंगी नीति से पार्टी को वैचारिक नुकसान हुआ.

बड़ा आकर ले रही आशंका
इस बार की अख्तरूल ईमान की उम्मीदवारी में दृढ़ता कितनी रहेगी यह फिलहाल नहीं कहा जा सकता. पर, जदयू उम्मीदवार मास्टर मोजाहिद आलम (Master Mojahid Alam) के प्रति मतदाताओं में बढ़ रहे आकर्षण से अख्तरूल ईमान के 2014 की तरह मैदान छोड़कर भाग जाने की आशंका बड़ा आकार ले रही है. यह स्थापित सत्य व तथ्य है कि राजनीति के वर्तमान दौर में बड़ी मुस्लिम आबादी वाले किशनगंज संसदीय क्षेत्र का सामाजिक समीकरण राजग (NDA) के अनुकूल नहीं है. कांटे की त्रिकोणीय टक्कर में ही उसकी जीत हो सकती है. इस सच को समझते हुए भी अख्तरूल ईमान वहां के मैदान में कूद पड़ते हैं.


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आस टिकी थी एमआईएम पर
दबे स्वर में यह सवाल एमआईएम के अंदर उठते रहता है. परन्तु, कोई उसे गंभीरता से नहीं लेता है. सामान्य धारणा है कि किशनगंज के बहुसंख्य लोग कांग्रेस (Congress) सांसद डा. जावेद आजाद (Dr. Javed Azad) के कार्यकलापों से संतुष्ट नहीं हैं. कथित तौर पर उनकी रईसी को लेकर उनमें रोष है. दोबारा उम्मीदवारी मिल जाने के बाद उनकी मुट्ठी भी नहीं खुल रही है. बदलाव चाहने वालों की आस एमआईएम पर टिकी थी. पर, सीमांचल (Seemanchal) में उम्मीदवारी की बाबत उसकी ढुलमुल नीति ने अधिसंख्य समर्थकों को पशोपेश में डाल रखा है.

धरी रह जा सकती है…
ऐसे में जदयू उम्मीदवार मास्टर मोजाहिद आलम की ओर वे मुखातिब हो सकते हैं. मास्टर मोजाहिद आलम की ‘दरियादिली’ भी उन्हें आकर्षित कर रही है. इस बीच यह भी देखने को मिल रहा है कि कांग्रेस से जुड़े कई जनप्रतिनिधि और एमआईएम के पूर्व के कुछ रणनीतिकार भी जदयू (JDU) के साथ हो गये हैं. उनकी पहचान वोट के ठेकेदार की रही है. विश्लेषकों की समझ है कि इस बार जदयू के पक्ष में इन सबका करतब दिखा तब कांग्रेस को तो नुकसान होगा ही, एमआईएम की भी फुटानी धरी रह जा सकती है.

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