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नाइंसाफी तब भी हुई थी!

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संजय वर्मा
30 मार्च 2024

Patna : बिहार ने राजनीति का वह ‘संविद युग’ भी देखा है जब सात-आठ दिनों के अंतराल में ही सत्ता बदल जाती थी. लगभग छह दशक बाद इधर कुछ बदले स्वरूप में उस युग की वापसी होती दिखी. 2020 के विधानसभा चुनाव (Election) के साढ़े तीन वर्षों के दरम्यान तीन सरकारें बन गयीं. जनादेश राजग (NDA) को मिला था. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की ‘पलटीमार प्रवृत्ति’ की वजह से दो बार राजग और एक बार महागठबंधन की सरकार अस्तित्व में आ गयी. दिलचस्प बात यह कि तीनों बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे. राजग सरकार के दोनों मंत्रिमंडलों में विभिन्न सामाजिक समूहों के प्रतिनिधित्व की जानकारी पूर्व के आलेख में दी जा चुकी है. महागठबंधन (Mahagathbandhan) की सरकार में किस सामाजिक समूह को कितना प्रतिनिधित्व मिला था, इस आलेख में जानिये.

जनादेश का अपमान
जुलाई 2022 में नीतीश कुमार के राजग से पलटी मार लेने से महागठबंधन की सरकार अस्तित्व में आ गयी थी. ठीक उसी तरह जैसे 2017 में महागठबंधन से उनके पलटी मार लेने से राजग की सरकार सत्तारूढ़ हो गयी थी. 2020 में जनादेश राजग को मिला था, तो 2015 में महागठबंधन को. जदयू ने दोनों ही बार जनादेश (Janadesh) का अपमान किया. महागठबंधन की तब की सरकार (Government) के 34 सदस्यीय मंत्रिमंडल में चार दलों – राजद, जदयू, कांग्रेस और ‘हम’ की सहभागिता थी. कुछ माह बाद ‘हम’ महागठबंधन से अलग हो गया. मंत्रिमंडल में शामिल उसके इकलौते प्रतिनिधि की सरकार से विदाई हो गयी. मंत्री का वह पद जदयू (JDU) को मिल गया.

इस रूप में हुई उपेक्षा
राजद से जुड़े सवर्ण समाज के दो मंत्रियों को विभिन्न कारणों से पद त्यागना पड़ गया. 34 सदस्यीय मंत्रिमंडल में राजद के 17 मंत्री थे, 31 सदस्यीय में 15 रह गये. ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ पर अमल होता तो सर्वाधिक मंत्री अत्यंत पिछड़ा वर्ग के होते. परन्तु, वैसा नहीं हुआ. जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के मुताबिक 36.01 प्रतिशत आबादी के साथ अत्यंत पिछड़ा वर्ग प्रथम स्थान पर है. पिछड़ा वर्ग 27.13 प्रतिशत है. इस हिसाब से 34 सदस्यीय मंत्रिमंडल में अत्यंत पिछड़ा वर्ग की भागीदारी तकरीबन 11 की बनती थी. 31 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 10 की. मंत्री-पद की प्राप्ति तीन की थी!

आठ की जगह तेरह थे
इसके बरक्स 27.13 प्रतिशत आबादी वाले पिछड़ा वर्ग का अधिकतम हिस्सा 34 सदस्यीय में नौ और 31 सदस्यीय में आठ का बनता था. पर, मुख्यमंत्री (Chief Minister) समेत इस वर्ग के 13 मंत्री थे. बड़े बजट वाले अधिकतर महत्वपूर्ण विभाग इन्हीं के जिम्मे थे. मंत्रिमंडल का जो जातीय स्वरूप था उसमें राजद (RJD) के 17 मंत्रियों में 36.01 प्रतिशत आबादी वाले अत्यंत पिछड़ा वर्ग को ‘हाथउठाई’ के रूप में मंत्री का सिर्फ एक पद मिला था. 14 मंत्रियों की संख्या वाले जदयू ने भी इसे कोई खास तवज्जो नहीं दी थी. उसके कोटे से अत्यंत पिछड़ा वर्ग के सिर्फ दो मंत्री थे.

आठ मंत्री थे यादव समाज के
राजद में 14.27 प्रतिशत आबादी वाले यादव समाज के सर्वाधिक सात मंत्री थे. उनमें दो लालू-राबड़ी के पुत्र ही थे – तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) और तेजप्रताप यादव (Tejpratap Yadav). जदयू ने भी यादव समाज से एक मंत्री बना रखा था. इस तरह यादव समाज के मंत्रियों की कुल संख्या आठ हो गयी थी. क्या इन आंकड़ों से यह स्पष्ट नहीं होता है कि 36.01 प्रतिशत आबादी वाले अत्यंत पिछड़ा वर्ग का हक कौन मार रहा है?


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मिल जाता है वाजिब हिस्सा
‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ के अनुरूप 34 सदस्यीय मंत्रिमंडल में यादव समाज का हिस्सा चार या पांच मंत्रियों का बनता था. मुस्लिम समाज की संख्या 17.70 प्रतिशत है. इसके पांच मंत्री थे. यादव समाज की तुलना में भले कम थे, लेकिन मुकम्मल रूप में इनके हितों का ज्यादा हनन होता नहीं दिख रहा था. पांच मुस्लिम मंत्रियों में तीन राजद के और एक-एक जदयू एवं कांग्रेस (Congress) के थे. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि मुस्लिम समाज की राजग की सरकार में अखरने लायक हकमारी हो जाती है. महागठबंधन की सत्ता में इस पर खास ख्याल रखा जाता है. उदाहरणस्वरूप राजग की अभी की सरकार में इस समुदाय का सिर्फ एक मंत्री है. महागठबंधन की सरकार में पांच मंत्री थे.

‘ए टू जेड’ के नाम पर…
महागठबंधन की सरकार में कुर्मी और कुशवाहा समाज के दो-दो मंत्री थे. राजग की वर्तमान सरकार में भी इनकी संख्या उतनी ही है. कुर्मी की आबादी 02.88 प्रतिशत है तो कुशवाहा की 04.21 प्रतिशत. वहां कुर्मी की तुलना में कुशवाहा की उपेक्षा हुई . इसी तरह 02.32 प्रतिशत वैश्य समाज के दो मंत्री थे, तो 19.65 प्रतिशत दलित समाज के छह मंत्री. 14.27 प्रतिशत यादव समाज के आठ और 19.65 प्रतिशत दलित समाज के छह मंत्री! क्या यह हकमारी नहीं थी? ‘ए टू जेड’ के नाम पर 03.66 प्रतिशत ब्राह्मण, 03.45 प्रतिशत क्षत्रिय और 02.87 प्रतिशत ब्रह्मर्षि समाज का एक-एक प्रतिनिधि था. कायस्थ समाज को शून्य में समेट दिया गया था.

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