जुड़वां बच्चा : जन्म कुंडली समान, तो फिर भाग्य में इतना अंतर क्यों ?
तापमान लाइव ब्यूरो
19 अगस्त 2023
Patna : जुड़वां बच्चों की जन्म कुंडली (Birth Horoscope) समान रहने के बाद भी भाग्य और भविष्य में इतना बड़ा अंतर क्यों रह जाया करता है ? ज्योतिष शास्त्र (Astrology) में रुचि रखने वाले हर दिमाग को यह सवाल अवश्य मथता होगा. तभी तो अपने देश में ज्योतिषाचार्यों से जितने भी सवाल पूछे जाते हैं उनमें अधिकतर यही होता है. यह वास्तविकता भी है कि जुड़वां बच्चों की जन्म कुंडली सरसरी तौर पर समान दिखती है और जन्म के समय में बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है. पर, भाग्य में अंतर होने के कारण दोनों के जीवन की दशा और दिशा अलग-अलग होती है.
पिछले जन्म का फल
जुड़वां बच्चों (Twins) की कुंडली में जन्म स्थान, जन्म तिथि और दिन एक होते हैं. लेकिन शक्ल, विचारधारा, इच्छाएं और बच्चों के साथ होनी वाली घटनाओं में अंतर होता है. यही नहीं दोनों का व्यक्तित्व भी अलग होता है. ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि कर्म सिद्धांत के कारण भी जुड़वां बच्चों के भाग्य में अंतर हो जाता है. क्योंकि व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अगले जन्म में भुगतना पड़ता है. जुड़वां बच्चों पर भी यही बात लागू होती है. भले ही उनके जन्म समय में कुछ मिनट का अंतर होता है, लेकिन उनके द्वारा किये कर्म उन्हें अलग-अलग दिशाओं में ले जाते हैं.
कुंडली देखना आसान नहीं
जुड़वां बच्चों की जन्म कुंडली देखना आसान काम नहीं है. चूंकि जन्म स्थान, जन्म तिथि आदि बातें समान रहने के साथ यह दिखने में एक जैसी प्रतीत होती है. इसलिए उनकी कुंडली बनाते समय गर्भ कुंडली का भी निर्माण किया जाता है. गर्भ कुंडली, जन्म कुंडली से अलग होती है. गर्भ कुंडली से जुड़वां बच्चों के भविष्य के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है. यहां यह जानने की जरूरत है कि गर्भ कुंडली को जन्म कुंडली के आधार पर ही बनाया जाता है. लेकिन इसे गर्भाधान या गर्भधारण (Pregnancy) के समय को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है. लेकिन यह काफी कठिन कार्य है.
गर्भाधान का मुहूर्त
वैदिक ज्योतिष का मानना है कि यदि गर्भाधान के अनुसार जुड़वां बच्चों की कुंडली बनायी जाये, तो जुड़वां बच्चों के जीवन और भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को आसानी से समझा जा सकता है. ऐसी मान्यता है कि बच्चे पर माता-पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ता है. खासकर मां का कुछ अधिक ही. इसलिए की शिशु पूरे 9 महीने मां के गर्भ में ही आश्रय पाता है. माना जाता है कि जिस समय गर्भाधान करती हैं उस समय ब्रह्मांड (Universe) में नक्षत्रों की व्यवस्था और ग्रहों की स्थितियों का भी प्रभाव होने वाले बच्चे पर पड़ता है. यही कारण है कि शास्त्रों में गर्भाधान के मुहूर्त को महत्वपूर्ण माना जाता है.
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यह है अंतर का कारण
कृष्णमूर्ति पद्धति, जिसका निर्माण वैदिक ज्योतिष से प्रेरणा लेकर हुआ है, इसमें नक्षत्र (Constellation) और उपनक्षत्र (Satellite) के आधार पर ग्रहों से मिलने वाले फल की गणना की जाती है. इसके अनुसार, जुड़वां बच्चों की जन्मतिथि भले ही समान होती है, लेकिन समय में अंतर होता है. कहा जाता है कि जुड़वां बच्चों के जन्म में 3 मिनट से लेकर 10 या फिर 12 मिनट का अंतर हो सकता है. इस दौरान लग्न अंशों और ग्रहों के अंशों में भी बदलाव हो जाता है. इतने समय में नक्षत्रों के स्वामी भी बदल जाते हैं और इस अंतर के कारण एक नक्षत्र में जन्म लेने के कारण जुड़वां बच्चों के नक्षत्र के स्वामियों में अंतर आ सकता है. इसी सूक्ष्म गणना के अनुसार जुड़वां बच्चों की कुंडली भी अलग हो जाती है और उनके व्यवहार व भविष्य भी एक जैसे नहीं रहते हैं.
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