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बताता है इतिहास: ‘मुर्ग- ए- सुलेमान’ ने उठायी थी खुद- मुख्तार राज्य की मांग

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महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
25 सितम्बर 2023
Patna : बिहार को खुद-मुख्तार राज्य बनाने की पहली आवाज मुंगेर (Munger) से प्रकाशित उर्दू अखबार ‘मुर्ग़-ए-सुलेमान’ (urdu newspaper Murgh-e-Suleman) ने उठायी थी. सबसे पहले इसी ने ‘बिहार बिहारियों के लिए’ का नारा उछाला था. यह आवाज उस समय बुलंद हुई थी जब आमतौर पर लोग इस बारे में सोचते भी नहीं थे. यह मांग 7 फरवरी 1876 को उठी थी. उसके बाद इसने तहरीक का रूप ले लिया. इस तहरीक से अंग्रेजी बोलने वाले कायस्थ (Kayastha) और मुसलमान (Muslim) जुड़ गये. अली इमाम, डा. सच्चिदानंद सिन्हा, महेश नारायण, मजहरुल हक, हसन इमाम, दीपनारायण सिंह, डा. राजेन्द्र प्रसाद जैसे लोगों ने इसे अंजाम तक ले जाने में अहम भूमिका निभायी.

कायस्थों व मुसलमानों का था रुतबा
1912 में स्वतंत्र बिहार राज्य वजूद में आया. 1930 तक बिहार की सियासत में कायस्थों और मुसलमानों को एकतरफा ग़लबा हासिल था. बाद के दिनों में सवर्ण समाज (upper caste society) के नेताओं की सक्रियता अचानक से बढ़ गयी. तब तक मजहरुल हक, अली इमाम, हसन इमाम, शाह जुबैर जैसे लोगों का इंतकाल हो चुका था. तब भी मुस्लिम और कायस्थ नेताओं का सियासत में प्रभुत्व कायम रहा. बैरिस्टर युनूस, सुल्तान अहमद, अब्दुल क्यूम अंसारी, सैयद महमूद, अब्दुल अजीज, अब्दुल बारी जैसे लोग सियासत में कारगर हस्तक्षेप करते रहे. दूसरी तरफ कायस्थों के नेतृत्व ने दिल्ली की ओर रुख कर लिया.


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हाशिये पर चले गये धीरे-धीरे
डा. सच्चिदानंद सिन्हा (Dr. Sachchidanand Sinha) संविधान सभा के अध्यक्ष बन गये. उनके इंतकाल के बाद यह पद डा. राजेन्द्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) को मिल गया. वैसे, डा. राजेन्द्र प्रसाद आजाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति भी बने. बिहार के सियासत में डा. श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह नारायण सिंह, विनोदानंद झा आदि के प्रभाव बढ़ने के बाद एक ओर जहां मुसलमानों की सियासी नुमाईंदगी घटती चली गयी. वहीं कायस्थ भी धीरे-धीरे हाशिये पर धकेल दिये गये. वर्तमान में भाजपा विरोध के नाम पर मुस्लिम समाज अपनी नुमाईंदगी के लिए भटक रहा है, दूसरे को आगे कर रहा है. कायस्थों की हैसियत आमतौर पर भाजपा के वोट बैंक के रूप में सिमट कर रह गयी है.

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