तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

इस बार भी दिख रहा: ‘मुनिया’ का रंग

शेयर करें:

शिवकुमार राय
01 जून 2024
Patna : बिहार (Bihar) की राजनीति (Politics) में एक समय ‘खीर’ की खूब चर्चा हुई थी. इसका इजाद उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) ने किया था. राजद के अघोषित सुप्रीमो तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) ने स्वाद चखे बिना उसे ‘स्वादिष्ट’ बता दिया था. लेकिन, जाति आधारित राजनीति को वह रास नहीं आया. उपेन्द्र कुशवाहा ने सांकेतिक तौर पर महागठबंधन (grand alliance) को राजग (NDA) के मुकाबले यदुवंशियों के दूध, कुशवंशियों के चावल, ब्राह्मणों के चीनी और अतिपिछड़ों के पंचमेवा से ‘खीर’ तैयार करने का समीकरण सुझाया था. उसमें दलित की भूमिका तुलसी दल और अकलियतों की दस्तरखान के रूप में रेखांकित की थी.

व्यावहारिक नहीं लगा

उपेन्द्र कुशवाहा ने दावा किया था कि इस तरकीब से जो ‘खीर’ बनेगी वह बहुत स्वादिष्ट होगी. मतलब इन सामाजिक समूहों की एकजुटता से उभरने वाला राजनीतिक व सामाजिक समीकरण काफी प्रभावशाली और ‘सत्ता दिलाऊ’ होगा. वर्णित सामाजिक समूहों में स्वीकार्यता के लिए उन्होंने ‘जश्न-ए-खीर’ आयोजित किया था, पर राज्य की राजनीति को वह व्यावहारिक नहीं लगा. संबद्ध सामाजिक समूहों ने भी इसे अस्वीकार कर दिया. काराकाट (karakat) में उपेन्द्र कुशवाहा की कल्पित ‘खीर’ में ‘समाहित’ सामाजिक समूहों के मतदाताओं की बहुतायत है. उनमें थोड़ी भी स्वीकार्यता होती तो शायद 2019 में वह वहां मुंह की नहीं खा जाते.


ये भी पढ़ें :

बड़ा खुलासा : यह रहस्य है हर्ष राज की हत्या का !

हेना शहाब : रह जायेगा फिर अधूरा ख्वाब!

ददन पहलवान : दम नहीं अब दहाड़ में!

गोड्डा : अभिषेक से आक्रांत…! चूक जायेंगे निशिकांत?


पूरे रंग में दिखा

परन्तु, हुआ यह कि ‘दूध’ यदुवंशियों के रहने के कारण क्षेत्र के ब्राह्मण ‘खीर’ में मिठास डालने और अतिपिछड़ा समाज ‘पंचमेवा’ के रूप में इस्तेमाल होने को तैयार नहीं हुए, यादव बिरादरी की कांति सिंह (Kanti Singh) के अघोषित तौर पर किनारा धर लेने से ‘दूध’ भी फट गया. राजद (RJD) के ‘माय’ समीकरण के विस्तारित स्वरूप ‘मुनिया’ का नखरा भी पूरे रंग में दिखा. ‘माय’ में मुस्लिम और यादव थे, ‘मुनिया’ में मुस्लिम, निषाद और यादव को रखा गया. कुशवाहा और मुसहर (मांझी) को अलग छोड़ दिया गया. ‘मुनिया ’ का मुकम्म्ल साथ नहीं मिला, उपेन्द्र कुशवाहा चित हो गये.

अंतर सिर्फ इतना

इस बार भी काराकाट संसदीय क्षेत्र के चुनावी हालात 2019 जैसे ही हैं. अंतर सिर्फ इतना कि तब ‘मुनिया’ का नखरा उपेन्द्र कुशवाहा को झेलना पड़ा था, इस बार महागठबंधन के भाकपा – माले (CPI-ML) उम्मीदवार राजाराम सिंह (Rajaram Singh) को झेलना पड़ रहा है.

#tapmanlive

अपनी राय दें