जितवारपुर : कोई सुनिश्चित बाजार नहीं है चित्रकारी का
शिवकुमार राय
12 सितम्बर 2023
Madhubani : स्थानीय कलाकारों के मुताबिक एक पेंटिंग बनाने में सात से दस दिन लग जाते हैं. इसमें उपयोग आने वाली सामग्री एवं श्रम के रूप में जो लागत आती है, कीमत के तौर पर उतनी भी नहीं लौट पाती है. पहले काफी संख्या में देशी-विदेशी कला पारखी पर्यटक (Tourist) इस इलाके में आते थे. पेंटिंग की अच्छी कीमत मिल जाती थी. अब भूले-भटके ही इस ओर रुख करते हैं. स्थानीय लोग एक पेंटिंग की कीमत बमुश्किल पांच सौ से एक हजार रुपये तक दे पाते हैं. चित्रकारी का कोई सुनिश्चित (Ensure) बाजार नहीं है. व्यवसाय पर बिचौलिये के वर्चस्व का यही मुख्य आधार है.
सिमट गयी है मेलों की संख्या
कुछ साल पहले तक नियमित तौर पर हस्तशिल्प मेला (Handicraft Fair) और कला प्रदर्शनियां (Art Exhibitions) लगती थीं. गांधी शिल्प मेला, इंडिया एक्सपो, सूरजकुंड मेला जैसे बड़े आयोजनों के अलावा देशभर में हर साल तकरीबन डेढ़ सौ छोटे-बड़े मेले लगते थे. उनमें मधुबनी पेंटिंग की अच्छी खासी बिक्री हो जाती थी, कलाकारों को लागत के अनुरूप दाम मिल जाते थे. ऐसे आयोजनों में आमतौर पर दो-चार स्थानीय कलाकार ही शामिल होते थे, पर वही अन्य की कला कृतियां भी ले जाते थे. अब पूरे देश में गिनी-चुनी ही कला प्रदर्शनियां लग रही हैं. मेलों की संख्या भी सिमट गयी है. मुख्य रूप से सूरजकुंड मेला और दिल्ली (Delhi) के प्रगति मैदान मेला में ही इसकी बिक्री हो पाती है.
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किराया औकात से बाहर
दिल्ली हाट में 15 दिनों के लिए स्टॉल का किराया कलाकार की औकात से बाहर का होता है. ग्राम मेले के लिए सरकार की तरफ से एक दिन के लिए सौ रुपये मिलते हैं. इतनी छोटी राशि से क्या होता होगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है. मधुबनी पेंटिंग के कलाकारों की आर्थिक मदद के मकसद से 1977 में जितवारपुर (Jitwarpur) में मास्टर क्राफ्ट्समैन असोसिएशन आफ मिथिला का गठन हुआ था. शुरुआती सुकून के बाद वह भी बेमतलब का साबित हुआ. 2017 में भारत सरकार (Indian Government) के वस्त्र मंत्रालय ने जितवारपुर को ‘कला ग्राम’ बनाने की घोषणा की थी. पर, तीन साल बाद भी यह दूसरे गांवों से अलग नहीं दिखता है.
बिचौलियों की मुट्ठी में
‘कला ग्राम’ का स्वरूप देने की घोषणा के वक्त कहा गया था कि गांव में अस्पताल खुलेगा, पुस्तकालय की स्थापना होगी. पर्यटकों की सुविधा के लिए अतिथिशाला बनायी जायेगी. इन सबके लिए 8 करोड़ 43 लाख रुपये का बजट तैयार हुआ. लेकिन, बिचौलियों की बढ़ी गतिविधियों के अलावा गांव में ऐसा कहीं कुछ नजर नहीं आता है. भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय (Ministry of Textiles) के आंकड़ों के मुताबिक इस क्षेत्र में 40 हजार से अधिक निबंधित कलाकार हैं. बाजार नहीं रहने के कारण लगभग संपूर्ण कारोबार बिचौलियों की मुट्ठी में है. चित्रकारी का आर्डर मुख्य रूप से वही लाते हैं और बाजार तक पहुंचाने का काम भी वही करते हैं. कीमत के रूप में जो मन आता है, कलाकार के हाथ पर रख देते हैं.
चित्र : सोशल मीडिया
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