शहाबुद्दीन और लालू परिवार : ओसामा शहाब को चुभ गया तिरस्कार
राजद और लालू-राबड़ी परिवार तथा शहाबुद्दीन परिवार के आपसी गहरे रिश्ते में गांठ क्यों पड़ गयी? प्रस्तुत है पांच किस्तों के आलेख की दूसरी किस्त…
राजेश पाठक
30 नवम्बर, 2022
SIWAN : लालू-राबड़ी परिवार की हृदयहीनता या यूं कहें कि उपेक्षाभाव इस रूप में भी दिखे. परिवार के लोग मरहूम शहाबुद्दीन (Shahabuddin) को सीवान के पैतृक गांव प्रतापपुर (Pratappur) में दफनाना चाहते थे. मुराद पूरी नहीं हो पायी. उनकी कब्र दिल्ली (Delhi) की तमाम गुमनाम कब्रों की तरह दिल्ली गेट स्थित जदीद कब्रगाह में एक कोने में खड़ी है. मय्यत प्रतापपुर लाने के मामले में न नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का साथ मिला और न शहाबुद्दीन परिवार के ‘अपने नेता’ तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) ने कोई मदद की. शहाबुद्दीन के ‘परिस्थितियों के मुख्यमंत्री’ संबंधित बयान के मद्देनजर नीतीश कुमार से उम्मीद नहीं रही होगी. तेजस्वी प्रसाद यादव पर आस अवश्य टिकी थी. उन्होंने पहल क्यों नहीं की? राजद (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) मौन क्यों रह गये? इन सबसे भी शहाबुद्दीन का परिवार व्यथित रहा.
शहाबुद्दीन परिवार से बना ली दूरी
उस वक्त आया ओसामा शहाब (Osama Shahab) का बयान-‘तेजस्वी प्रसाद यादव की राजनीति खत्म हो जायेगी,’ इसी खुन्नस की अभिव्यक्ति थी. ओसामा शहाब की आंतरिक पीड़ा पर अफसोस जताने की बजाय तेजस्वी प्रसाद यादव ने उस बयान को अपने अहं से जोड़ शहाबुद्दीन परिवार से दूरी बना ली. इसका असर हुआ कि उस दारुण दुख में भी राजद के नेता दिल्ली से सीवान तक दूर-दूर ही रहे. सीवान (Siwan) के वैसे नेता शहाबुद्दीन के शोकमग्न परिजनों के दुख के आंसू पोंछने आगे अवश्य आये जिनकी राजनीति उनके (शहाबुद्दीन) ‘इकबाल’ पर टिकी थी. विधायक अवधबिहारी चौधरी (Awadh Bihari Chaudhary) और हरिशंकर यादव (Harishankar Yadav), सीवान जिला राजद के अध्यक्ष पूर्व विधान पार्षद परमात्मा राम, सीवान जिला परिषद की पूर्व अध्यक्ष लीलावती गिरी आदि. इनके अलावा अन्य कोई कहीं नहीं दिखे.
ओसामा शहाब की आंतरिक पीड़ा पर अफसोस जताने की बजाय तेजस्वी प्रसाद यादव ने उस बयान को अपने अहं से जोड़ शहाबुद्दीन परिवार से दूरी बना ली. इसका असर हुआ कि उस दारुण दुख में भी राजद के नेता दिल्ली से सीवान तक दूर-दूर ही रहे. सीवान के वैसे नेता शहाबुद्दीन के शोकमग्न परिजनों के दुख के आंसू पोंछने आगे अवश्य आये जिनकी राजनीति उनके (शहाबुद्दीन) ‘इकबाल’ पर टिकी थी.
स्वाभाविक था गुस्सा आना
ऐसी अनेक बातें हैं, जो शहाबुद्दीन समर्थकों में गुस्से के उफनाने का आधार बनी हुई है. आपस की चर्चाओं में वे इन्हें सार्वजनिक भी कर रहे हैं. लोगों की समझ है कि राजद नेतृत्व के इस अवांछित व्यवहार पर ओसामा शहाब को गुस्सा आना स्वाभाविक था. शहाबुद्दीन भले ही उस वक्त राजद में कुछ नहीं थे. पार्टी से ओसामा शहाब का जुड़ाव नहीं था. पर, कभी ‘माय’ का आधार स्तंभ रहे शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब (Heena Shahab) तो राजद की उपाध्यक्ष थीं. कम से कम इस नाते तो पति की मौत पर पार्टी की सहानुभूति की अपेक्षा रखती ही थीं. लालू प्रसाद (Lalu Prasad) अस्वस्थ थे. राबड़ी देवी (Rabri Devi) उनकी तीमारदारी में लगी थीं. मीसा भारती (Misa Bharti) और तेजस्वी प्रसाद यादव भी दो मिनट के लिए समय नहीं निकाल पाये. जबकि दोनों उस समय दिल्ली में ही थे. अस्पताल में कोरोना (Corona) का खतरा हो सकता था. कब्रिस्तान में उनकी कब्र पर मिट्टी डालने में तो कोई खतरा नहीं था? कम से कम दूर से ही देख लेते तो शहाबुद्दीन की आत्मा को शांति और ओसामा शहाब के दुखे दिल को थोड़ा ही सही, सुकून मिल जाता.
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मिल गया अलग राह बनाने का संकेत
तेजस्वी प्रसाद यादव ने ऐसा नहीं कर शहाबुद्दीन परिवार से दूरी बना ली. ऐसी कि राजद की राजनीति (Politics) को अब शहाबुद्दीन परिवार के साथ की जरूरत नहीं. हकीकत में अब वैसा दिख रहा है. शहाबुद्दीन की प्रथम पुण्य तिथि पर लालू-राबड़ी परिवार (Lalu-Rabri Family) करीब-करीब निर्विकार रहा. हाल के राज्यसभा और विधान परिषद के चुनावों में शहाबुद्दीन परिवार की पूरी तरह उपेक्षा कर राह अलग बना लेने का संकेत दे दिया गया. इसका असर गोपालगंज (Gopalganj) के उपचुनाव पर पड़ा. शहाबुद्दीन परिवार के प्रभाववाले क्षुब्ध मत एआईएमआईएम (AIMIM) के खाते चले गये. राजद उम्मीदवार की हार हो गयी. प्रतिक्रिया इस रूप में हुई कि हीना शहाब को राजद के सांगठनिक पद से मुक्त कर एक तरह से ‘दल निकाला’ दे दिया गया. नवगठित राष्ट्रीय कार्यकारिणी, केन्द्रीय संसदीय बोर्ड और प्रदेश संसदीय बोर्ड किसी में जगह नहीं दी गयी. विश्लेषकों का मानना है कि शहाबुद्दीन परिवार (Shahabuddin Family) भी इस तथ्य को बखूबी समझ रहा है कि राजद (RJD) को अब उसकी जरूरत नहीं है. इसके बावजूद अनुकूल समय का इंतजार कर रहा है. अलगाव के बाद संभावित राजनीतिक ठांव व उसके परिणाम-दुष्परिणाम का आकलन-विश्लेषण कर रहा है. पर, कोई सुकूनदायक विकल्प नहीं दिख रहा है.
अगली कड़ी…
तब भी खंडित नहीं हुई निष्ठा हीना शहाब और ओसामा की