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जी कृष्णैया प्रकरण: आनंद मोहन के खिलाफ षड्यंत्र के पीछे लालू प्रसाद?

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तापमान लाइव ब्यूरो
01 मई , 2023
PATNA : नियम और कानून की बात अपनी जगह है, आनंद मोहन (Anand Mohan) और उनके परिजनों के इस तर्क में दम दिखता था कि पूर्व सांसद की समय पूर्व रिहाई के मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार(Chief Minister Nitish Kumar) राजनीति कर रहे थे. अधिसंख्य समर्थकों का तो यहां तक मानना रहा कि रिहाई इस वजह से नहीं हो रही थी कि जेल से बाहर आने पर वह राज्य की राजनीति की दिशा बदल दे सकते हैं. वह दिशा नीतीश कुमार के लिए मुफीद नहीं मानी जा रही थी. लेकिन, एक तबके की समझ ठीक इसके विपरीत थी. यह कि इस पूरे षड्यंत्र के पीछे राजद (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad)  का हाथ है. ‘सामाजिक न्याय’ के ‘आतंक काल’ में सवर्णों के तमाम ‘संभ्रांत नेता’ दुबक गये थे. आक्रामक अंदाज में आनंद मोहन सवर्ण समाज की पीड़ा को अभिव्यक्ति देने लगे थे. एकलौता सवर्ण नेता थे जो तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को उन्हीं की भाषा और शैली में उन्हें खुली चुनौती दे रहे थे. जानकारों की मानें, तो लालू प्रसाद इतने खौफजदा हो गये थे कि आनंद मोहन की अकड़ ढीला करने की योजना बनायी जाने लग गयी थी. वह तो पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर (Ex Prime Minister Chandrashekhar ) के हस्तक्षेप से आनंद मोहन की जान बच गयी. इस तबके को मलाल इस बात का है कि आनंद मोहन का परिवार उसी लालू प्रसाद की पार्टी और परिवार को मजबूत बनाने में जुटा हुआ है. इसे आनंद मोहन परिवार की राजनीतिक विवशता भी मानी जा सकती है. वैसे, राजनीति के लिए यह अचरज की कोई बात नहीं है. यहां रिश्ते ऐसे ही बनते और बिगड़ते रहते हैं.

बन गये हीरो
इस हकीकत को नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि जी कृष्णैया (G Krishnaiah) की हत्या के बाद के हालात ने आनंद मोहन को खास तबके के लोगों का हीरो बना दिया था. वैशाली (Vaishali) संसदीय उपचुनाव में लालू प्रसाद के तमाम तिकड़मों एवं उपक्रमों को छिन्न-भिन्न कर आनंद मोहन

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की पत्नी लवली आनंद (Lovely Anand) विजेता बन गयी थीं. लवली आनंद का मुकाबला क्षत्रिय समाज के ‘सिरमौर’ समझे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंहा (Ex Chief Minister Satyenendra Narayan Sinha) की पत्नी किशोरी सिन्हा (Kishori Sinha) से हुआ था. सवर्ण (Sawarna) जातियों के अकल्पनीय व अविश्वसनीय धु्रवीकरण में उलझ किशोरी सिन्हा मात खा गयी थीं. लवली आनंद की इस जीत के


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साथ ही आनंद मोहन की चर्चा लालू प्रसाद के विकल्प के रूप में होने लगी. जी कृष्णैया की हत्या के मामले में फंसाये जाने से उस चर्चा को मजबूती मिली. बाद में हालात बदल गये. उस दौरान जो लोग उनके साथ थे, एक-एक कर अलग हो गये.

भटकते-भटकते…
वैशाली का वह राजनीतिक प्रयोग आगे नहीं बढ़ सका. फिर आनंद मोहन कभी लालू प्रसाद के साथ दिखे तो कभी रामविलास पासवान (Ramvilas Paswan) के साथ तो कभी नीतीश कुमार के साथ. उस क्रम में कांग्रेस से भी जुड़ाव हुआ. यहां तक कि उनकी ऊर्जा पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (Ex Chief Minister Jitanram Manjhi)  की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा को भी मजबूत बनाने में खपी. इस भटकाव से उनकी पत्नी लवली आनंद की राजनीति को कहीं स्थायी ठांव नहीं मिला. 2020 के विधानसभा चुनाव में जुड़ाव राजद से हो गया. पुत्र चेतन आनंद (Chetan Anand) को शिवहर (Sheohar) और लवली आनंद को सहरसा (Saharsa) से उम्मीदवारी मिली. इस दांव ने अरसे बाद राजनीति की मुख्य धारा में वापसी करा दी. लवली आंनद सहरसा में शिकस्त खा गयीं, पर पुत्र चेतन आनंद शिवहर से राजद के विधायक बन गये. इससे आनंद मोहन की रिहाई के अभियान को काफी मजबूत राजनीतिक ताकत का साथ मिल गया. वही ताकत उनकी समय पूर्व रिहाई का आधार बन गयी. (समाप्त)

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